Sunday 25 December 2022

कुरुक्षेत्र है जीवन अपना - एक गीत

 

कुरुक्षेत्र है जीवन अपना, कदम-कदम पर महासमर है।
लाक्षागृह है भवन हमारे, इन्द्रप्रस्थ यह नया नगर है॥
पाण्डुर वर्ण ज्ञान से बोझिल, जन्म अंधता का वर बल है,
अंधे का सहचर भी अंधा, अनुचर उसका छल में खल है,
बल शत भागों में बॅंटकर भी, लेता है छल का आश्रय ही,
पंच प्राण रह अडिग धर्म में, बसते हैं विधि वश अरण्य ही,
भीषण व्रत धारे संन्यासी, मठ के बन्दी सिले अधर है।
कुरुक्षेत्र है जीवन अपना, कदम-कदम पर महासमर है॥
नीति उपेक्षित खड़ी द्वार पर, भीगे नयन न्याय नत मुख है,
चीर हरण के सभी समर्थक, सिंहासन का सबको दुख है,
हाथ पसारे खड़ा पुरोहित, मौनी गुरु का गौरव हत है,
सब खाते सौगंध सत्य की, दिखता नहीं कर्म में सत है,
भेद न जान सका जल-थल का, दोषी निर्मल स्वच्छ डगर है।
कुरुक्षेत्र है जीवन अपना, कदम-कदम पर महासमर है॥
जहाँ लाभ संभाव्य वहीं हम, वहीं धर्म की नींव सुदृढ़ है,
वही मार्ग है शास्त्र प्रमाणित, जहाँ स्वार्थ हित वचन अदृढ़,
धर्म-न्याय की पीट डुगडुगी, महारथी बन खड़े युद्ध में,
घेर मारते हैं बालक को, फिर श्रद्धा-विश्वास बुद्ध में,

बरस रहा जल स्रोत सूखते, गल से बहती गरल नहर है।
कुरुक्षेत्र है जीवन अपना, कदम-कदम पर महासमर है॥
~~~~~~~~~~~
डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

Sunday 18 December 2022

नदी किनारे - एक गीत

 

नदी किनारे सुंदर कुटिया, सन्त बसाते हैं।
कुदरत के ये दृश्य मनोहर, हमें लुभाते हैं।।

हिमगिरि से निकली ये नदिया, सतत यहाँ बहती।
कितनी मोहक धरा देश की, तपोभूमि लगती।।
सूर्य रश्मियों से चमके पर्वत, खूब सुहाते हैं।
कुदरत के ये दृश्य मनोहर, हमें लुभाते हैं।।

शांत मनोरम जगह देखकर, सबके नयन खिले।
नदी किनारे खड़े वृक्ष से, ठण्डी छाँव मिले।।
सम्मोहित पुष्पों से सुरभित, धरा सजाते हैं।
कुदरत के ये दृश्य मनोहर, हमें लुभाते हैं।।

स्निग्ध छुअन ये नीर दिलों में, नदियों का अर्चन।
चन्दन सा मन भरे हिलोरे, करता काव्य-सृजन।।
जहाँ सुखद उल्लास बरसता, हमें रिझाते हैं।
कुदरत के ये दृश्य मनोहर, हमें लुभाते हैं।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday 11 December 2022

कभी न होगी हार - दोहे

 

आज सूचना-तंत्र के, जर्जर सारे तार।
बिकी देश की मीडिया, बिके सभी अख़बार॥1॥

कठपुतली सब हो गये, लोकतंत्र आधार।
चौथा खम्भा देश का, करता अब व्यापार॥2॥

सच्ची ख़बरों के सभी, बन्द हुए अब द्वार।
दरवाजे पर है खड़ा, तगड़ा चौकीदार॥3॥

धन शाहों का तंत्र पर, देख बढ़ा अधिकार।
लोकतंत्र लुंठित हुआ, कुंठित वाणी धार॥4॥

ख़बरों की लेने ख़बर, जागेगा संसार।
कलमकार के कलम की, कभी न होगी हार॥5॥

भ्रष्ट व्यवस्था पर सदा, करता तीखे वार।
पत्रकार जो हो निडर, होता पहरेदार॥6॥

समाचार सच दे सदा, जिसे देश से प्यार।
पाना सच्ची सूचना, जनता का अधिकार ॥7॥
🌸
कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र.

Sunday 4 December 2022

बीती ताहि बिसारि दे

 

बीती ताहि बिसार दे, मत कर उसको याद।
बुरा समय अब जा चुका, सुख है इसके बाद।
सुख है इसके बाद, सुनहरे सपने देखो।
हो भविष्य निर्माण, सोच कर निश्चय लेखो।
मन में करो प्रतीति, मान लो बाजी जीती।
जियो खुशी से मीत, भूल सब बातें बीती।।

बीती ताहि बिसार दे, वर्तमान को देख।
सोच-समझ कर पाँव रख, ऊँची-नीची रेख।
ऊँची-नीची रेख, धरातल नहीं एक-सा।
आस-पास का दृश्य, मिले नहि कहीं एक-सा।
बसी हृदय में चाह, नहीं रह जाए रीती।
चढ़ो नए सोपान, भूल पहले की बीती।।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

Sunday 27 November 2022

मारो चौका-छक्का - गीत

 

जीवन की गाड़ी को कोई, आकर देगा धक्का,
नहीं किसी के इंतिज़ार में, बैठो भोला कक्का।

जब तक हाथ-पांव चलता है, रुपया-पैसा जोड़ो,
बेटा-बेटी बसे शहर में, उनकी आशा छोड़ो।
जाम न होने देना कोई, निज गाड़ी का चक्का,
नहीं किसी के इंतिज़ार में, बैठो भोला कक्का।

एक पिता का हाल बताऊं, खटिया पर था लेटा,
डांट रहा था किसी बात पर, उसको लंपट बेटा।
कुछ कहते बन नहीं रहा था, मैं था हक्का-बक्का,
नहीं किसी के इंतिज़ार में, बैठो भोला कक्का।

शौक करो कुछ अपने पूरे, गाना-वाना गाओ,
नहीं ढोल तो थाली-लोटा, कुछ तो आज बजाओ।
सुबह उठो, कुछ खेलो-कूदो, मारो चौका-छक्का,
नहीं किसी के इंतिज़ार में, बैठो भोला कक्का।

नहीं बुढ़ापे को तुम कोसो, मत बीमारी पालो,
आने वाले हर संकट को, साहस से तुम टालो।
खेतों में अब फसल उगाओ, ज्वार, बाजरा, मक्का,
नहीं किसी के इंतिज़ार में, बैठो भोला कक्का।

*** राजकुमार धर द्विवेदी

Sunday 20 November 2022

मन के मीत - गीत

 


दिल के सच्चे मन के अच्छे, मेरे मन के मीत।
दिल से मुझे चाहते हो तुम, होने लगा प्रतीत।।

नवल प्रेम रस फूट पड़ा है, जबसे नैना चार।
प्रिय से दूर रहो अब मत तुम, करता हृदय पुकार।।
मन वीणा सम झंकृत होकर, बजा रहा संगीत।

स्वप्नों का संसार लिए हूँ, प्रीति रीति का ज्ञान।
जग-जीवन का भार लिए हूँ, पथ की है पहचान।।
सफर हमारा कट जायेगा, गाकर मधुमय गीत।

फूलों की चाहत सबको है, नहीं शूल से बैर।
मंजिल पाने को जब चलते, कंटक चुभते पैर।।
हम सुख-दुख के साथी होंगे, हार मिले या जीत।
दिल के सच्चे मन के अच्छे, मेरे मन के मीत।
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ठा. सुभाष सिंह, कटनी, म. प्र.

Sunday 13 November 2022

चाहत - एक मुक्तक

 

भारत माता की चाहत है, अब कुछ ऐसे बालक हों।
धर्म-कर्म को हृदय बसायें, प्रण के जो प्रतिपालक हों।।
उत्साही बलवान रहें जो, माता के सब कष्ट हरें।
परशुराम श्रीराम भीम हों, कुछ अर्जुन उद्दालक हों।।

*** विश्वजीत शर्मा 'सागर'

Sunday 6 November 2022

मेरी हड्डियाँ बचीं - एक ग़ज़ल

 



ग़ुज़र चुका जो कल यहाँ वही कहानियाँ बचीं
ज़बीं पे अनुभवों की अब लिखी नुमाइयाँ बचीं

थी ख्वाहिशें बिता सकूँ कुछेक पल सुकूँ भरे
न ही जिए न मर सके नफ़स की बेड़ियाँ बचीं

जो भी दिया है ज़ीस्त ने मैं जा रहा हूँ छोड़ कर
निभा रही हैं साथ अब भी मेरी हड्डियाँ बचीं

न फिक़्र अब कोई यहाँ न तो किसी से है ग़िला
अमूल्य तज़्रुमों की देन आज झुर्रियाँ बचीं

छड़ी सी संग संग जो मेरे चली सदैव हैं
ख़िरद की रहबरी को बस यही तज़ल्लियाँ बचीं

सदाकतों की खोज में ही चल रहे थे ये क़दम
सवाल हल न हो सके अजब पहेलियाँ बचीं

है ज़िन्दगी से प्यार तो जहां से सारे प्यार कर
यही सबक मिला यहाँ यही रसाइयाँ बचीं
🌸
कुन्तल श्रीवास्तव
(शब्दार्थ : ज़बीं- ललाट/मस्तक, नफ़स- श्वाँस, ज़ीस्त- जीवन, ग़िला- शिकायत, तज़्रुमों- तज़ुर्बों/अनुभवों, ख़िरद- मेधा/ज्ञान, रहबरी- दिशानिर्देश/साथ, तज़ल्लियाँ- प्रकाश-पुंज/ईश्वरीय नूर, सदाक़तों- सच्चाइयों/सत्य, सबक- शिक्षा/पाठ, रसाइयाँ- कौशल)

Sunday 30 October 2022

धारा - ताटंक छंद

 

हिमखंडो का स्वेद नहीं तू, और न है कोई नारी।
हिरणी जैसी चंचल नदिया, सींच रही धरती सारी।।
फसलों की श्वासें है तुझसे, तुझसे जीवन है सारा।
तू ही गंगा तू ही जमुना, तू ही पावन ‌है धारा।।1।।

तेरे तट पर बसा नगर हर, कितना वैभवशाली है।
और पंथ पर तेरे फैली, हर डग पर हरियाली है।।
पशु पक्षी वन मानव सारे, तुझसे ‌ जीवन पाते हैं।
प्यास बुझाने तट पर तेरे, दूर दूर से ‌ आते हैं।।2।।

किन्तु दशा कर डाली कैसी, निष्ठुर मानव ने तेरी।
क्षण क्षण क्षरण हुआ जाता है, पल पल होती है देरी।।
हुई विषैली जल की धारा, मुक्ति तुझे ही पाना है।
सोये मानव मन को नदिया, अब तो तुझे जगाना है।।3।।

डाॅ. देवनारायण शर्मा

Sunday 23 October 2022

दीपोत्सव - दोहे

 

मंगलमय त्योहार यह, रघुवर चरणों प्रीत।
अंत आसुरी वृत्ति का, अच्छाई की जीत।।

वर्ष चतुर्दश बाद जब, लौटे प्रभु निज धाम।
अवधपुरी हर्षित हुई, निरखत छवि अभिराम।।

दीप अवलियाँ सज गईं, उल्लासित संसार।
जगमग वसुधा सिंधु में, ज्योति पुंज जलधार।।

दीप-माल झिलमिल करे, बहती ज्योति तरंग।
पावन पर्व प्रकाश का, मन उत्साह उमंग।।

रात्रि अमावस की तदपि, उजियारा चहुँ ओर।
अँधियारा निर्बल हुआ, चला न उसका जोर।।

घर-घर में मिष्ठान सँग, बने बहुत पकवान।
खील बताशे भोग ले, करते मंगल गान।।

मंगलमयि दीपावली, गणपति लक्ष्मी पूज।
पंचदिवस त्योहार के, अंतिम भाई दूज।।

सभी
बधाई
दे रहे, बाँट रहे उपहार।
शुभाशीष शुभकामना, मिल देते परिवार।।

डॉ. राजकुमारी वर्मा

Sunday 16 October 2022

मेरे चंदा - एक गीत

 



चंदा दो आशीष पिया को,उदित भाग्य ध्रुवतारा हो।
ज्योतिर्मय हो कर्मक्षेत्र अब, धर्मक्षेत्र उजियारा हो।

जीवन ऐसा चले कि जैसे, झरने की निर्मल धारा।
हृदय भाव हों पुलकित-पुलकित,मृदुल बोल का जयकारा।
चार सुखो के धारी हों अरु, जीवन सफल हमारा हो।
चंदा दो आशीष पिया को, उदित भाग्य ध्रुवतारा हो।

सपनों की फुलझड़ियाँ चमकें, मधु स्मृतियाँ बनीं रहें।
पति सेवा में हरदम चंदा, बाँहें मेरी तनीं रहें।
ओ चाँद तेरी चाँदनी का,अद्भुत यहाँ नजारा हो।
चंदा दो आशीष पिया को,उदित भाग्य ध्रुवतारा हो।

गर नीर बहें तो परदुख में, प्रभु सेवा में लगी रहूँ।
कष्ट समय में भी चंदा मैं, पति से कुछ भी नहीं कहूँ।।
मेरे घर में प्यारे चंदा, कभी नहीं अँधियारा हो।
चंदा दो आशीष पिया को, उदित भाग्य ध्रुवतारा हो।
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@ सर्वाधिकार सुरक्षित
ठा. सुभाष सिंह, कटनी, म.प्र.

Sunday 9 October 2022

विजय गीत

 

विजय हमेशा मिलती उसको, जिसको मन में होती आस ।
विजय पताका फहरे उसकी, दृढ़ता से जो करें प्रयास ।।
 
एकलव्य सी जिसमें दृढ़ता, समझो जीत उसी के द्वार ।
मन में जीते जीत बताते, मन के हारे मानो हार ।।
अगर लक्ष्य कर ले निर्धारित, तभी लक्ष्य पर रहता ध्यान।
अर्जुन जैसी मिले सफलता, बढ़ता जाता तब विश्वास ।।
 
अपनी करनी पार उतरनी, यहीं सोच खुद करते काम ।
यत्न स्वयं को करें धैर्य रख, वहीं लक्ष्य को दें अंजाम ।।
सर्वश्रेष्ठ देना ही मकसद, नहीं देखता वह परिणाम ।
नहीं भाग्य के रहें भरोसे, करता रहता सतत विकास ।।
 
शूल बिछे पथ पर जो चलता, बढ़ने को करता संघर्ष ।
जब पहुँचे गंतव्य जगह पर, मन में होता भारी हर्ष ।।
कर्म बोध का भान जिसे हो,कभी न डिगते उसके पाँव ।
जीते जो अपने बल बूते, उसके मन होता उल्लास ।।
 
*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

 

Sunday 2 October 2022

विजय पर्व - एक गीत

 

विजय पर्व संदेश लाता रहा है।
सदा ही हमें ये जगाता रहा है।

बहुत सो लिए अस्मिता आज खोकर।
स्वयं के लिए शूल ही मात्र बो कर।
अभी जाग जाओ न देरी हुई है।
प्रचुर सम्पदा देख तेरी हुई है।

हमें सुध उसी की दिलाता रहा है।
विजय पर्व संदेश लाता रहा है।

उगे हैं दिशाओं-दिशाओं दशानन।
किया जिंदगी को कठिन क्षण व प्रति क्षण।
चलो आसुरी वृत्तियां हम भगाएँ।
वरण कर उचित न्याय की नीति लाएँ।

सदा शौर्य के गीत गाता रहा है।
विजय पर्व संदेश लाता रहा है।

न भयभीत होना गिरे हो अगर तुम।
घनेरे तिमिर में घिरे हो अगर तुम।
भरो नेह सत्वर सु-आशा दिए में।
जलाओ निराशा न लाओ हिये में।

हमें राह उज्ज्वल दिखाता रहा है।
विजय पर्व संदेश लाता रहा है।

दशहरा मनाएं दिवाली सजाएँ।
प्रफुल्लित हृदय से खुशी फिर मनाएँ।
अभी आज ही शक्ति पहचान लें हम।
करें दूर अवसाद का जो घिरा तम।

हमें यह हमीं से मिलाता रहा है।
विजय पर्व संदेश लाता रहा है।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

Sunday 25 September 2022

"सबके दाता राम" - एक गीत

 

सत्य वचन कह गये मलूका, सबके दाता राम,
चाकर बन मत रहना जग में, करना प्रभु का काम।

छिपी गूढ़ता इन बातों में, होता यह आभास,
कर्म करो तुम अपना भाई, बनना नहीं ख़बास।
नहीं गुलामी करो किसी की, कितना भी हो खास,
बन सकते तो बन कर रहना, केवल प्रभु का दास।

ज्ञानी जी की इन बातों को, समझ न भाई आम,
सत्य वचन कह गये मलूका, सबके दाता राम।

अजगर की फुर्ती तुम देखो, जब वह करे शिकार,
भोजन हित पंक्षी को देखो, मिहनत करे अपार।
होता है श्रम का फल मीठा, जान रहा संसार,
करो अगर निष्काम कर्म तो, देता फल दातार।

सच्चे सौदे का मिलता है, सुन्दर समुचित दाम,
सत्य वचन कह गये मलूका, सबके दाता राम।

मन में रख विश्वास राम का, जब हम करते कर्म,
आत्मशक्ति संवर्धन होता, है जीवन का मर्म।
जीव जन्तु पादप गण सब ही, कुदरत की संतान,
जन्म मृत्यु सब उनके कर में, राम रखे सब ध्यान।

भटक जाय यदि भक्त मार्ग से, प्रभु लेते कर थाम,
सत्य वचन कह गये मलूका, सबके दाता राम।

*** शशि रंजन 'समदर्शी'

Monday 19 September 2022

निज भाषा - सरसी छंद

 

निज भाषा के द्वारा मानव, खोले मन का द्वार।
व्यक्त विचारों को करने का, भाषा है आधार।।
आज विश्व में होती सब की, भाषा से पहचान।
किसी देश की भाषा से ही, हो विकास अनुमान।।

अंग्रेजी की चकाचौंध में, हिंदी से हम दूर।
उच्च ज्ञान के हित अंग्रेजी, पढ़ने को मजबूर।।
निज भाषा में सभी पढ़ाई, देना है अंजाम।
बने राष्ट्र की भाषा हिंदी, तभी बनेगा काम।।

***चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

Sunday 11 September 2022

एक गीत - और न कोई चाह


जगा हृदय विश्वास लेखनी, सहज लगेगी राह।
नेक समर्पण चाहत अपनी, और न कोई चाह।

ज्ञानी ध्यानी विज्ञ चिरंतन, करते आये शोध।
इक नैया में करें सवारी, भार बने जो बोध।
आशा छोड़ निराशा भर दें, व्यर्थ विगत उर दाह
नेक समर्पण चाहत अपनी, और न कोई चाह।

एक नदी दो अलग किनारे, धारा देती जोड़़।
उठती गिरती लहरें देकर, तरल विरल इक मोड़।
कड़ी न टूटे उम्मीदों की, सुंदर हो निर्वाह।
नेक समर्पण चाहत अपनी, और न कोई चाह।

खोल नयन प्रिय रहें नहीं अब, भाग्य भरोसे सुप्त।
आशा नित्य जगानी होगी, स्वप्न न होगें लुप्त।
बंद मुष्टिका रेत रुके कब, "लता" भरें मत आह।
नेक समर्पण चाहत अपनी, और न कोई चाह।


*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी 

Sunday 4 September 2022

क्षमा पर्व

 


वाणी से कर दे क्षमा, वही नेक इंसान ।
नत-मस्तक होता वही, बनता सदा महान ।।
बनता सदा महान, वृक्ष ऊपर उठ झुकता ।
करता रहे घमण्ड, किसी की वह कब सुनता ।।
हुआ किसी को कष्ट, भले कोई हो प्राणी ।
क्षमा करेंगे आप, सभी सुन मेरी वाणी ।।

भूषण मानव का क्षमा, वीरों की पहचान ।
कायर करता घात है, वीर क्षमा का दान ।।
वीर क्षमा का दान, करे उसकी सज्जनता ।
दीन-हीन को लूट, दिखाते कुछ दुर्जनता ।।
मिले भूल से कष्ट, नहीं दो उसको दूषण ।
सन्तों का सन्देश, क्षमा मानव का भूषण ।।

भूले भटके ही सही, दिया अगर हो घात ।
क्षमा मुझे करना जरा, भूल पुरानी बात ।।
भूल पुरानी बात, मधुर सम्बन्ध बनाएं ।
कटुता के ये भाव, दिलों से आज हटाएं ।।
करने मेल-मिलाप, प्रेम का झूला झूले ।
क्षमा पर्व पर आज, चलो अब कटुता भूले ।।
 
 *** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday 28 August 2022

झूठ, अच्छा लगता है

 

नहीं, नहीं रहने दो
सच और झूठ की ये तकरार
सत्य जब उजागर होता है तो आघात देता है
और झूठ जब उजागर होता है
तो शर्मिंदगी का शूल देता है
फिर क्यूँ मुझे
अपने सच और झूठ का स्पष्टीकरण देते हो
सच कहूँ यदि आघात ही सहना है तो
मुझे ये झूठ अच्छा लगता है
कम से कम मौन पलों में
स्नेह का आवरण तो नहीं हटता
कोई स्वप्न मेघ तो नहीं फटता
स्पर्शों की आँधी सत्य के चौखट पर
लहू लुहान तो नहीं होती
रहने दो मुझे सच का निर्मम चेहरा मत दिखाओ
मुझे तुम्हारा स्निग्ध झूठ बड़ा प्यारा लगता है
जी लेने दो मुझको
बंद पलकों के नशीले झूठ में
सच ये झूठ मुझे सच लगता है
झूठ नहीं
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*** सुशील सरना

Sunday 21 August 2022

"श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष आयोजन

 



मोहिनी ये मूर्ति प्यारी! मोरपंखी-मोहना।
मोहता है रूप मोहे हे मनोहारी-मना।
मोहिनी डारो नहीं माधुर्य का हे माधवा...
मोहना! मोहे न मोहो मोह ना! हे मोहना॥

गोप-ग्वालों को तजा गोपाल गायों को भुला।
गो-कुलों की ग्वालिनों को त्याग राधा को रुला।
क्यों बसाई द्वारिका क्यों छाँव अद्री की तजा...
छोड़ कान्हा बाँसुरी को क्यों गये झूला झुला?

हूँ सलोने साँवरे श्रीकृष्ण की मैं साँवरी।
प्रीति में आकंठ डूबी जानती ना दाँव री।
दर्श दो गोविंद! आओ नैन प्यासे हैं हरी...
बावरी मीरा बनी मैं छोड़ सारे छाँव री॥

कुन्तल श्रीवास्तव,
डोंबिवली, महाराष्ट्र।

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...