Sunday 29 April 2018

दोहावली - सफर/यात्रा


 
जन्म हुआ जीवन शुरू, और मौत अंजाम।
जन्म-मरण के बीच ही, होता सफर तमाम।।


घड़ी ठहर जा इक घड़ी, क्यों चलती इठलाय।
सुन कर हँस बोली घड़ी, जो ठहरा पछताय।।


सफर कहाँ वादा करे, मंजिल मिल ही जाय।
नेक कर्म मझधार से, साहिल तक ले जाय।।


जीवन रेत समान है, जाने कब झर जाय।
दबे पाँव सँग मौत है, साँस ठहर ना जाय।।


सैर-सपाटा कर लिए, यात्रा चारो धाम।
महायात्रा शेष अभी, भज लो सीताराम।।


  *** सतीश मापतपुरी ***

Sunday 22 April 2018

नदी का किनारा


 

सभी को सुहाता नदी का किनारा
हमें भी लुभाता नदी का किनारा 


कई याद मेरी दफन हैं यहाँ पर
वही सब दिखाता नदी का किनारा 


गये वक्त की याद जब छल छलाए
दिलासा दिलाता नदी का किनारा 


जिसे ज़िन्दगी में नहीं याद आया
मरे तब बुलाता नदी का किनारा 


कई "चन्द्र" संगम हुये ज़िन्दगी के
चिता भी सजाता नदी का किनारा


*** चन्द्र पाल सिंह ***

Sunday 15 April 2018

कुण्डलिया छंद




 (1)

धोखा मक्कारी ठगी, आज पा रहे मान।
जो इनमें जितना निपुण, वह उतना गुणवान।।
वह उतना गुणवान, झूठ जिसके रग-रग में।
दगाबाज ठग धूर्त, फलें फूलें इस जग में।।
हुआ सफलता मंत्र, आज का यही अनोखा।
करते हैं अब राज, ठगी मक्कारी धोखा।।
 

(2)
 

जाना है जग छोड़कर, जीवन है दिन चार।
सद्कर्मों से ही सदा, होता है भव पार।।
होता है भव पार, धर्म ही एक सहारा।
छूठ कपट छल दम्भ, सत्य से हरदम हारा।।
विधि का यही विधान, कर्मफल सबको पाना।
धन वैभव यश कीर्ति, यहीं सब कुछ रह जाना।।


***हरिओम श्रीवास्तव***

Sunday 8 April 2018

मेरी चाहत



मुरझाये-से तप रेत में हैं चाहतों के गुल खिले
इस बार थोड़ी छांव लाना धूप से राहत मिले


ये ऊंट भी है पूछता अब करवटें लूँ किस तरफ
किन मंज़िलों तक यूँ चलेंगें उम्र ढोते काफिले 


ज्यों रोटियों सँग बांधकर दे दी तुम्हें गुड़ की डली
वैसी ही मीठी याद की इक पोटली मुझको मिले


छौने बड़े तुमको मिलेंगे लौटकर तुम देखना
मेरा समय थमकर मगर अपनी जगह शायद हिले 


फिर बांसुरी की तान अपनी छोड़ जाओ द्वार पर
कानों में बस गूंजें तुम्हारी आहटों के सिलसिले


*** मदन प्रकाश ***

Sunday 1 April 2018

सुषमा अति न्यारी



काशमीर सुषमा अति न्यारी
मन हरसै लखि केसर क्यारी

फूलहिं सुमन विविध विधि बागा
सुचि गृह बहहिं अनेक तड़ागा


पुष्प वाटिका सोहति नीकी
सुषमा अमर पुरी लगि फीकी
बहु बिधि फलहिं सेव अंजीरा
देखि छटा मन धरहि न धीरा


बाग निशात लगे मन भावन
दृश्य मनोहर हिम गिरि पावन
डल की छटा देखि हरषाई
सबहि रहे निज नयन जुड़ाई


मोहहि शाली मार बगीचा
लगे बिछे हैं पुष्प गलीचा
मुगल बाग की शोभा न्यारी
मन हरि लेत सुमन हर क्यारी


*** चन्द्र पाल सिंह ***

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...