Sunday 27 August 2023

कलाधर घनाक्षरी छंद

 

अंग-अंग में जड़े हुए अनेक रंग पुष्प, शृंग से बने किरीट शीश धारती।
देश-प्रांत में मनोहरी हरीतिमा विखेर, जीव-जंतु हेतु नित्य नीर-क्षीर वारती।।
मंद संदली समीर गा रही विहान गीत, सिंधु-उर्मियाॅं सदैव पाद-सी पखारती।
जन्मभूमि स्वर्ग के समान 'चंद्र' देख नित्य, मुक्त कंठ से करे नमामि मातु भारती।।

*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

Sunday 20 August 2023

गीत - यह तो प्रभु की माया है

 

जग सच्चा या झूठा बोलो, समझ कौन यह पाया है।
पड़ो न इस पचड़े में मानव, मरघट ने समझाया है।।

बचपन में सुंदर लगता था, तब कहते यह जग सच्चा।
खेल-कूद में जग को झूठा, नहीं समझता था बच्चा।।
राग-द्वेष जब बढ़ा हृदय में, भरमायी तब काया है।
जग सच्चा या झूठा बोलो, समझ कौन यह पाया है।।

कहीं द्वार पर सुख के बदले, घड़ी दुखों की आ जाये।
लगे भयावह मिथ्या यह जग, दुख की बदली जब छाये।।
सच्चा-झूठा भेद समझ मन, यह तो प्रभु की माया है।
जग सच्चा या झूठा बोलो, समझ कौन यह पाया है।।

सच मानो तो मिथ्या जग ने, मानव मन को भरमाया।
झूठा तो चञ्चल मानव मन, गीता में ये समझाया।।
झूठ संगठित सच पर हावी, जग में रहता आया है।
जग सच्चा या झूठा बोलो, समझ कौन यह पाया है।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Saturday 12 August 2023

 

झूम कहे ये सावन बाबुल, झूलन की रितु आई।
भरि भरि लोचन पीहर पाती, पढ़ती ज्यों पुरवाई।

सखी सहेली सहज सुनातीं, ढुरि-ढुरि अँगना कजरी।
कँगना नूपुर झूमें झुमका, रिमझिम बरसे बदरी।
लेकर आयी राखी खुशियाँ, वीरन सजे कलाई
झूम कहे ये सावन बाबुल, झूलन की रितु आई।

भूल न पाऊँ बाबुल गलियाँ, मात-पिता की छाया
बचपन की अठखेली यादें, मौन हृदय ललचाया।
भरी उमंगे तन-मन जागे, कोमल ज्यों तरुणाई।
झूम कहे ये सावन बाबुल, झूलन की रितु आई।

उलझ-सुलझ के नैतिकता के, बुनकर नीड़ सयाने।
निभा रहे परिपाटी जग की, सहते युग के ताने।
बटछाया में "लता" सयानी, जीवन सधा बधाई।
झूम कहे ये सावन बाबुल, झूलन की रितु आई।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Sunday 6 August 2023

धर्म की विस्मृत कथाएँ - एक गीत

अर्थ देता काम को शुभकामनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ

व्यर्थ है श्रुति,शास्त्र के आख्यान सारे
संस्कृति ने सभ्यता के युद्ध हारे
कह रहे प्रक्षिप्त हैं सारी किताबें
अब लिखो तुम दानवों ने देव मारे

लुट गई घर में जगी संवेदनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ

राम केवल कल्पना है सत्य मानो
किंतु, रावण के दहन को पाप जानो
हैं असत्य प्रमाण बिखरे पत्थरों के
मौन होकर वक्ष पर अब उदर तानो

राह में हैं रक्तरंजित भावनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ

गल्प लगती आज पौराणिक कहानी
ह्रास संस्कृति पर यहाँ छलका न पानी
स्वर्ण लंका में बताओ कौन पापी?
द्वार पर याचक खड़े हैं पाप दानी

लोभ रचता लाभ की सब प्रार्थनाएँ
हो गई हैं धर्म की विस्मृत कथाएँ
~~~~~~~
डॉ. मदन मोहन शर्मा

सवाई माधोपुर, राज. 

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...