Sunday 25 October 2020

दशहरा

 


अभी अभी
एक सामूहिक कार्यक्रम में
रावण को जलवा कर आया था
तभी मार्ग के घुप अंधेरे में
अट्टहास करते रावण को पाया था।

न जाने कहाँ से आ टपका मरदूद
वही दस शीश
वही भुजाएँ बीस
चेहरों पर जलाए जाने की
न कोई शर्म न कोई लज्जा मौजूद।

बेशर्मों की तरह खिखिया रहा था
राक्षस राक्षसों की तरह चिंचिया रहा था |

अरे अरे, ये क्या
टूट टूट उसके शीश अपने आप
बढ़ते गए, निकलते गए
रक्तबीज की तरह,
धीरे धीरे अनगिनत शीश
अनगिनत भुजाएँ 
बढ़ा रहा वह पापी
अपनी देह को कर विग्रह।

और उसने
अपने आगोश में
समेट लिया पूरा विश्व
सब तरफ रावण ही रावण दिखने लगे
एक अकेला राम
किसी एक कोने में
सिकुड़ा से
पड़ा देखता रहा यह करतब,
कलयुगी जनता को
सूनी सूनी आंखों से
निहारता रहा वो अब तब।

हे राम
अब क्या करूँ
कहाँ से लाऊँ इतने राम
जो करें रावण का काम तमाम
अब तो पृथ्वी पर
राम की खेती ही बंद हो गयी
बस रावण ही उग रहे हैं
कौवे खेतों को चुग रहे है।

*** सुरेश चौधरी ***

Sunday 18 October 2020

आपदा पर दोहे

 


विपदा की आहट कहाँ, देती पूर्वाभास।
जीव भ्रमित बेबस दिखे, कालचक्र का वास॥

जटिल आपदा-काल ये, सहसा मारे दंश।
अजब घनेरा ढाहता, घोर दुखों का अंश॥

बुद्धि-ज्ञान अंधा हुआँ, खोया मन का चैन।
तारे दिन में दिख रहे, विपदा काली-रैन॥

अंतस भेदन हो रहा, आफत का हो अंत।
राह बड़ी दुष्कर हुई, जिह्वा काटे दंत॥

मुख में बंदी हो गए, मीठे-मीठे बोल।
हाथों की मुट्ठी बँधी, आँख-फटी मन-खोल॥

विकट समस्या आ पड़ी, त्वरित कहाँ उपचार।
धीरे-धीरे उतरता, मानस संचित खार॥

दाँतों में उँगली दबी, हाथ मले बेचैन।
ईश्वर कुछ तो कीजिए, त्राहिमाम के बैन॥

*** सुधा अहलूवालिया ***

Sunday 11 October 2020

खेल-खेल में



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सरसी छंद
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[1]

खेल-खेल में कर देते हैं, बच्चे घर का काम।
मिल जाता है मात-पिता को, भी थोड़ा आराम

मेल-जोल से हो जाता है, यह घर सुख का धाम।
दुख-सुख में सब साथ खड़े हों, संकट हटें तमाम।।
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[2]

खेल-खेल में बच्चे सीखें, कम्प्यूटर भी आज।
वृद्धों को तो मुश्किल लगता, करना इस पर काज

बच्चे सिखा रहे हैं उनको, इस पर करना काम

खेल-कूद की यही उम्र है, करें नहीं विश्राम।।
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[3]

[मुक्तक]
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खेल-खेल में करें खिलाड़ी, दुनिया भर में नाम,
मिल जाती है धन-दौलत भी, अच्छा है यह काम, 
तन-मन हो जाता ताकतवर, यदि कर लें अभ्यास,
अच्छा भोजन बहुत ज़रूरी, खाएँ फल-बादाम।।
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[4]

[मुक्तक]
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खेल-खेल में हो जाता है, कभी किसी से प्यार,
बिना विचारे मन कर लेता, है सब कुछ स्वीकार,
नई जवानी में मत लाँघो, मर्यादा की रेख,
कदम बढ़ाओ सोच-समझ कर, क्षमा नहीं इस बार।।
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रीता ठाकुर
अमेरिका

Monday 5 October 2020

भरोसा हार जाता है

 


विजय झूठे की हो जाती है सच्चा हार जाता है

यहीं तो व्यक्ति का सच पर भरोसा हार जाता है

शिकारी जब जगा देता है मन में भूख दानों की
कपट के जाल में फँसकर परिन्दा हार जाता है

जिसे विश्वास होता है कि सच का पक्षधर है वो
अदालत में वही अक्सर मुक़दमा हार जाता है

ये क़ुदरत दम्भ सबका तोड़ देती है इसी कारण
ग्रहण के दिन उजाले का फरिश्ता हार जाता है

न देखा है कभी भी छद्म ज्यादा देर तक टिकते
चमक सूरज की पड़ते ही कुहासा हार जाता है

ग़ज़ल हर दिल लुभाए सोच है 'अनमोल' की इतनी
अनेकों बार उसका ये इरादा हार जाता है

*** अनमोल शुक्ल "अनमोल" ***

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...