Sunday 26 June 2022

ख़ुशी/आनंद पर दोहे

 

खुशी हृदय का भाव है, रहती सब के पास।
नहीं मिले बाजार में, क्रय का व्यर्थ प्रयास।।

प्रेम पूर्ण व्यवहार है, खुशियों का आधार।
स्वार्थ हीन सत्कर्म से, लेती हैं आकार।।

धन वैभव सम्मान में, व्यर्थ खुशी की खोज।
पीर परायी जो हरे, उसको मिलती रोज।।

नहीं किसी को कष्ट दें, सुख का करें प्रबंध।
मानव मन की तृप्ति से, खुशियों का अनुबंध।।

खुशी/शोक नित बाॅंटता, जो कुछ जिसके पास।
सुरभि विखरती पुष्प की, जैसे बिना प्रयास।।

*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

Sunday 19 June 2022

ताक़त - आल्हा छंद

 

 


शारीरिक ताक़त के बल पर, करो न हरगिज़ अत्याचार।
जो भी आया है दुनिया में, सबको जीने का अधिकार।
शक्ति भरोसे पा लो चाहे, धन दौलत सब अपरंपार।
किन्तु दिखाकर ताक़त सुन लो, कभी नहीं पाओगे प्यार। 
 
ताक़त कलम अगर बन जाये, तो बदले भू का इतिहास।
राजनीति के चतुर खिलाड़ी, को भी है इसका अहसास।
शाम दाम छल दण्ड भेद से, फ़तह हुए कितने दरबार।
जिनसे उनकी परम मिताई, बन बैठे वै ही सरदार। 
 
जिसकी लाठी भैंस उसी की, किस्सा जाने सकल जहान।
किसी किसी को ही बख़्शा है, ईश्वर ने ऐसा वरदान।
सहनशीलता और मृदुलता, हैं बल की असली पहचान।
क्षुद्र मानसिक परसंतापी, को मिलता हरदम अपमान। 
 
तन की ताक़त गौण रही है, बुधि बल का होता सम्मान।
संत विवेकानन्द ज्ञान से, सकल विश्व में बने महान।
ईश्वर ने दी है जो ताक़त, उससे करो लोक कल्याण।
अपने हित से ऊपर उठकर, करो देश का नव निर्माण। 
 
कृष्ण कुमार दूबे

Sunday 12 June 2022

ग्रीष्म ऋतु

 

है चरम पर ताप तपती ग्रीष्म ऋतु झुलसा रही है।
खग विहग संसृति तृषित राका अनल बरसा रही है।
आँधियों का है बवंडर बूँद का रिमझिम छलकना।
श्वास औ प्रति श्वास बाधित स्वेद कण कण का ढलकना।
बावरी पुरवाइ विरहिन का मनस तरसा रही है।
खग विहग संसृति तृषित राका अनल बरसा रही है।

ताल पोखर बावली सलिला विरह में नागरी सी।
शांत लहरें नीर उथला रिक्त जीवन गागरी सी।
शुष्क जीवन सिलवटें चुप वीशिका दरसा रही है।
खग विहग संसृति तृषित राका अनल बरसा रही है।

शान्त हलचल मौन कलरव नीड़ में है दुबक बैठा।
सूर्यरथ है अग्नि रोपे व्योम पर आछन्न ऐंठा।
पात झरते नग्न डाली कोकिला सरसा रही है।
खग विहग संसृति तृषित राका अनल बरसा रही है।
*
*** सुधा अहलुवालिया




Sunday 5 June 2022

'सूफ़ी नगमा'

 


ढूँढते फिर रहे दरबदर हम जिसे,
वो हमीं में है हम को ख़बर ही नहीं।
मन्दिरों-मस्जिदों में मिलेगा न वो,
बन्दगी में हमारी असर ही नहीं।।

फ़ितरत-ए-सानिया ऐब लाखों भरे,
बात क्यूँ वो सुनेगा हमारी भला।
रोज़ रोज़ा किया नाम उसका लिया ,
पाप करते रहे हमको डर ही नहीं।।

राम अल्लाह सतगुरु सभी नाम ये,
तुमको अच्छा लगे जो पुकारो वही।
एक ईश्वर सभी में समाया हुआ,
देख लें हम ख़ुदा वो नज़र ही नहीं।।

सागरों पर्वतों में न ढूँढो उसे,
काशी काबा में कब तक रहोगे फँसे।
मन के भीतर ज़रा झाँक लें हम अगर,
नूर उसका हमारा इतर ही नहीं।।

चाँद 'सूरज' ज़मीं आसमाँ में वही,
झील झरने की धारा में बहता वही।
ज़र्रा ज़र्रा उसी का बनाया हुआ,
सच इधर भी वही है उधर ही नहीं।।

*** सूरजपाल सिंह

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...