Sunday 25 June 2023

एक बाल-गीत

 

काली-काली बदली छाई।
बरखा आई, बरखा आई।।
खुशियों की सौगातें लाई।
बरखा आई, बरखा आई।।

गरमी से तन मन थे सूखे।
खेत पड़े थे बंजर रूखे।।
कहीं नहीं दिखता था पानी।
गरमी को कोसे थी नानी।।
लेकिन आज सभी हर्षाये।
चुन्नू मुन्नू नाच दिखाये।।
ताली पीटें बापू - माई।
बरखा आई, बरखा आई।।

जल से ही तो जीवन चलता।
बरखा से सागर भी पलता।।
आओ हम सब पेड़ लगायें।
जिनसे बादल दौड़े आयें।।
बरखा भी बादल से आती।
हरियाली भी तब मुस्काती।।
चीं-चीं करती चिड़ियाँ भाई।
बरखा आई, बरखा आई।।

काली-काली बदली छाई।
बरखा आई, बरखा आई।।
खुशियों की सौगातें लाई।
बरखा आई, बरखा आई।।

*** विश्वजीत 'सागर'

Sunday 18 June 2023

ज़ख्म पुराना बोलेगा - एक गीत

 

डर लगता हर ज़ख्म पुराना बोलेगा,
जब भी मेरा दर्द निमाणा बोलेगा।

कोसों तक चलने की हिम्मत वाले हैं,
कब देखे तलवों ने कितने छाले हैं।
मंज़िल को पाने की इस ठानी ज़िद में,
पाँवों के भी ये अंदाज़ निराले हैं।
साथ निभाता दिल मरजाणा बोलेगा!
जब भी मेरा दर्द निमाणा बोलेगा।

जिन धागों को बुनकर जोड़ा नाता था,
लम्हों की तकली पर उनको काता था।
चुन चुन कर उनमें थे सारे ख़्वाब गढ़े,
रेशा रेशा रंग नए लहराता था।
साख हुनर की ताना बाना बोलेगा,
जब भी मेरा दर्द निमाणा बोलेगा।

लब चुप हैं कुछ कहने का ये वक़्त नहीं,
कितना कुछ है शब्दों में जो व्यक्त नहीं।
क्या क्या टूटा क्या क्या पीछे छूट गया,
अंकित है सब कुछ स्मृतियों में त्यक्त नहीं।
सन्नाटे को तोल सयाणा बोलेगा,
जब भी मेरा दर्द निमाणा बोलेगा।

*** मदन प्रकाश सिंह

Sunday 11 June 2023

एक गीत - जीवन-नौका पार


कर्म-क्षेत्र संसार यह, कर्म यहाँ व्यापार।
सत्य सोच से हो सके, जीवन-नौका पार॥

करो काम जब भी नया, हिय में करो विचार।
नहीं अधूरा छोड़ना, करना जतन हजार॥
आयेंगे व्यवधान सौ, हल करना हर बार।
आलस लालच तज मृषा, दो सन्मति को धार॥
डाँड चलाये बिन फँसे, नाव सदा मँझधार।
सत्य सोच से हो सके, जीवन-नौका पार॥
सही सोच से सर्वदा, जग का हो उद्धार।
जग के हित में ही बसा, जगती का विस्तार॥
न्याय-धर्म की राह ही, जीवन का सुख-सार।
सबके हित के ध्यान से, मिल जाये संसार॥
दिल में सदा ख़याल हो, मिले मुक्ति का द्वार।
सत्य सोच से हो सके, जीवन-नौका पार॥

कुन्तल श्रीवास्तव,

डोंबिवली, महाराष्ट्र। 

Sunday 4 June 2023

एक गीत - रंग बदलते देखा

 

आज जगत को पल-पल हमने, रंग बदलते देखा है।
नहीं रही बन्धुत्व भावना, सत्य सहमते देखा है।।

अपने-अपने स्वार्थ सभी के, मन में भेद हुए गहरे।
सीमाओं पर तनातनी हैं, है दिन-रात जहाँ पहरे।।
काले नाग विषैले जिनको, जहर उगलते देखा है।
नहीं रही बन्धुत्व भावना, सत्य सहमते देखा है।।

बुद्ध सरीखे संदेशों का, समझे कोई मोल नहीं।
ग्रन्थ भरे हैं उपदेशों से, उनका कोई तोल नहीं।।
अपनों के हाथों अपनों को, सबने छलते देखा है।
नहीं रही बन्धुत्व भावना, सत्य सहमते देखा है।।

लक्ष्मण रेखा समझे दुनिया, क्यों सीमा को पार करे।
विश्व शांति के लिए जरूरी, आपस में सत्कार करे।।
हिरोशिमा शमशान बनी थी, चमन उजड़ते देखा है।
नहीं रही बन्धुत्व भावना, सत्य सहमते देखा है।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...