Sunday 25 March 2018

पीयूषवर्ष छंद


1-


भीष्म सा मत आप, प्रण करना कभी।
जाँच लें गुण-दोष, पथ चलना तभी।।
हो प्रतिज्ञाबद्ध, पछताना पड़े।
ज्यों पितामह भीष्म, बेबस हो लड़े।।


2-


क्यों कहें हम आज, प्रण करना कभी।
राष्ट्रहित में कार्य, यह कर लें अभी।।
दृढ़ करें संकल्प, मिलकर हम सभी।
रह सके अक्षुण्ण, आजादी तभी।।


3-


दूध माँ का धन्य, हो पाए तभी।
देश के रक्षार्थ, प्रण लेना कभी।।
हो परस्पर मेल, हृदय विशाल हों।
भारती के लाल, एक मिसाल हों।।


4-


हौसला हो साथ, मंजिल तब मिले।
और दृढ़ संकल्प, से पर्वत हिले।।
हो इरादा नेक, जब बढ़ना तभी।
प्राप्त होगा लक्ष्य, प्रण करना कभी।।


***हरिओम श्रीवास्तव***

Sunday 18 March 2018

मेरी अभिलाषा






जन्म सभी लेते धरती पर,पलते अपनी ही माटी में।
विकसित होते, पढ़ते, बढ़ते, अपनी अपनी परिपाटी में।।



सबकी अभिलाषा होती है, कुछ ऐसा कर जाएँ जग में।
नाम अमर हो जाए उनका, याद सदा रह जाएँ जग में।।


कवि चाहे लेखन से अपने, कालजयी रचना दे जाए।
गायक चाहे सुर से अपने, गायन कुछ अद्भुत कर जाए।।


सैनिक चाहे युद्ध लड़े वह, दुश्मन की छाती चढ़ जाए।
या तो विजय पताका फहरे, या घर लिपट तिरंगा आए।।


मेरी अभिलाषा बस इतनी, काम दूसरों के मैं आऊँ।
हर मुख बस मुस्काता देखूँ, सबके दिल में जगह बनाऊँ।।


मिट्टी में तो सब मिलते हैं, मैं फिर से जीवित रह पाऊँ।
अंग दान कर दूँ सब अपने, औरों को जीवन दे जाऊँ।।


***** अशोक श्रीवास्तव

Sunday 11 March 2018

तुम कब समझोगे?

 


पुरुष! तुम कब समझोगे,
कि हम हाड़-मांस के पुतले नहीं,
जो तुम्हारे उपभोग के लिए बने हैं,
अपितु तुम जैसे ही संवेदित,
जीते जागते मनुष्य हैं।


कब तक तुम अपनी कल्पनाओं के स्वरुप को
हम पर आरोपित करते रहोगे,
कब तक अपनी अपेक्षाओं, स्वगठित आदर्शों
और मिथ्या मर्यादाओं का भार
हम पर डालते रहोगे,
कब तक अपनी इच्छाओं की स्वर्ण-मंडित बेड़ी से
हमारे अस्तित्व को बाँध
हमें बहलाते रहोगे।


पुरुष, तुम कब समझोगे कि
हम न तो सीता बनना चाहते हैं
और न ही शूर्पणखा,
हम न तो आकाश में रहना चाहते हैं
और न ही पाताल में,
हम इसी धरती पर विचरना चाहते हैं
स्वतंत्र, उन्मुक्त, निडर
तुम्हारे संग
तुम्हारी ही तरह
मात्र एक व्यक्ति बनकर।
पुरुष, तुम कब समझोगे?


***** प्रताप नारायण

Sunday 4 March 2018

फागुन का रंग



फाग का रंग भाएगा तब ,
मधु मिलन की रात आएगी, हमारा चाँद हम पर,
चाँदनी बरसाएगा जब।


प्रीति का गुलाल प्रियतम चूनरी पर डाल देगा,
हरितिमा ला प्रकृति की जब जीवनी में साल देगा,
इन्द्र-धनुषी विविध रंगो की रंगोली गौर मुख पर,
भाव अंतस के मेरे स्व भाव में ले ताल देगा।


स्नेह का स्पर्ष मधुरिम फागुनी रस भाल पर दे,
प्रीति का अस्वाद घुल-मिल एक रस हो जाएगे जब,
फाग अंतस गाएगा तब।


रंगों का मिश्रण अनूठा श्याम रंग हो जाएगा मिल,
मौन मानस रंग-रस भर प्रीति में खो जाएगा खिल,
जब सिन्दूरी क्षितिज से आकर अरुण निज गात में ले,
श्वेत अंबर शीश पर दे रंग-रस घुल जाएगा हिल।


रैन में बन्दी हुए सौरभ उड़ेगे मन सुहासित,
बावली में कोकनद पर मधुप गुंजित गाएगा जब,
फाग मन हो जाएगा तब।


 ***** सुधा अहलूवालिया

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...