Sunday 17 March 2024

रस्म-ओ-रिवाज - एक ग़ज़ल

 

रस्म-ओ-रिवाज कैसे हैं अब इज़दिवाज के
करते सभी दिखावा क्यूँ रहबर समाज के

आती न शर्म क्यूँ ज़रा माँगे जहेज़ ये
बढ़ते हैं भाव रोज़ ही राजाधिराज के

ख़ुद आबनूस हैं तो क्या दुल्हन हो चाँद सी
नख़रे बड़े अजीब हैं मिर्ज़ा-मिज़ाज के

बारात की न पूछें नशा ख़ूब है किया
नागिन का नाच नाचें तनुज नाग-राज के

शादी का भोज थाली से नाली में जा रहा
ज़िंदा ग़रीब कैसे रहें बिन अनाज के

बेटी न बोझ सर पे क्यूँ कर्ज़ा उठा लिया
लड़की का बाप मर रहा क्यूँ बिन इलाज के

'सूरज' नक़ल न रास रईसों की आएगी
शादी, विवाह बन गये मसले क्यूं लाज के

सूरजपाल सिंह
कुरुक्षेत्र।

Sunday 10 March 2024

विनती सुनो हमारी - एक गीत

 

हे शिव शंकर औघड़ दानी, विनती सुनो हमारी।

उग्र महेश्वर हे परमेश्वर, शिव शितिकंठ अनंता।
हे सुरसूदन हरि कामारी, महिमा वेद भनंता‌।‌‌।
रुद्र दिगंबर हे त्रिपुरांतक, प्रभु कैलाश बिहारी।
हे शिव शंकर औघढ़ दानी, विनती सुनो हमारी।।

अष्टमूर्ति कवची शशि शेखर,देव सोमप्रिय नाथा।
गंगाधर अनंत खटवांगी, चरण धरूॅं निज माथा।।
अनघ भर्ग सर्वज्ञ अनीश्वर, विश्वेश्वर रहा निहारी।
हे शिव शंकर औघड़ दानी, विनती सुनो हमारी।।

पंच वक्त्र श्रीकंठ शिवा प्रिय, तारक हे कैलाशी।
व्योमकेश हे विष्णू वल्लभ, जगत पिता सुख राशी।।
शोक हरो प्रभु सकल विश्व के, सारा जगत दुखारी।
हे शिव शंकर औघड़ दानी, विनती सुनो हमारी।।

*** चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'
All reac

Sunday 3 March 2024

जीवन तो अनमोल है - दोहा छंद

जीवन तो अनमोल है, इसके लाखों रंग।
पहचाना जिसने इसे, उसने जीती जंग।।1।।

जीवन तो अनमोल है, मिले न यह दो बार।
कब आया यह लौट कर, जी भर जी लो यार।।2।।

जीवन तो अनमोल है, बीत न जाए व्यर्थ ।
अच्छे कर्मों से इसे, देना शाश्वत अर्थ।।3।।

जीवन तो अनमोल है, इसके अनगिन रूप।
इसके आँचल में पले, निर्धन हो या भूप।।4।।

जीवन तो अनमोल है, रखो इसे संभाल ।
बहुत कठिन है जानना, इसका अर्थ विशाल।।5।।

जीवन तो अनमोल है, रखना इसका मान।
देना इसकी गंध को, एक नई पहचान।।6।।

जीवन तो अनमोल है, सुख - दुख इसके तीर।
एक तीर पर कहकहे, एक तीर पर पीर।।7।।

*** सुशील सरना

Sunday 25 February 2024

मुक्तक

 

ममता की सागर है माता, पिता समन्दर धीरज के।
संतति पुष्प खिले हैं सुन्दर, हृद-पुष्कर में नीरज के।
लहरें उठती हैं ममता की, माँ के हृदय समंदर में-
मकरंद सुगंध लुटाते हैं, पावन निर्मल क्षीरज के॥1॥

इन्द्रनील मणि-सा समुद्र यह, कहलाता रत्नाकर है।
रत्नों की है खान नीरनिधि, मुक्ता-मणि का आकर है।
भू-मंडल में विस्तृत अतुलित, पारावार विपुल जल का-
वारिद की प्यास बुझाता है, यह वारिधि करुणाकर है॥2॥

पौराणिक है कथा पुरानी, क्षीरोदधि के मंथन की।
मंदर पर्वत वासुकी नाग, दोनों के गठबंधन की।
चौदह रत्नों में पहला था, कालकूट...अमरित अंतिम-
पान किया देवों ने उनका, जय हरि-हर शुभ-चंदन की॥3॥

कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र.

Sunday 18 February 2024

बेबस सारे महानगर - गीत

 

फँसी जाम में सड़कें सारी, बेबस सारे महानगर।
घण्टों लगते घर जाने में, दुर्घटना का लगता डर।।

छात्र घूमतें रात-रात भर, नहीं काल से वे डरते।
वाहन दौड़े फर्राटे भर, हवा संग बातें करते।।
गली-गली में आवारा से, कुत्ते घूमें खूब निडर।
घण्टों लगते घर जाने में, दुर्घटना का लगता डर।।

कृषक बने मजदूर शहर में, आखिर क्यों मजबूर हुए।
बेबस होकर गाँव निवासी, आज गाँव से दूर हुए।।
मन तो बसा हुआ गाँवों में, मजबूरी में करे सफर।
घण्टों लगते घर जाने में, दुर्घटना का लगता डर।।

ताल-तलैया निर्झर उपवन, मिले वही पर हरियाली।
हरे-भरे खेतों का स्वागत, करे सूर्य की नित लाली।।
देश प्रेम का बीज जहाँ पर, वही बसाये अपना घर।
घण्टों लगते घर जाने में, दुर्घटना का लगता डर।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday 11 February 2024

मुक्तक - प्रदत्त शब्द - पूजा, अर्चन, इबादत

 

पूजन करते लोग सब, खुश होवें भगवान,
बदले में हमको मिले, मुँह माँगा वरदान,
अजब सोच के लोग हैं, करें दिखावा रोज -
मर्म धर्म का तज रहे, कैसे ये इंसान।।

दस पैसे की बूँदियाँ, चढ़ा देव को भोग ,
बदले में ये माँगते, सुंदरतम संयोग,
स्वार्थ भरा संसार यह, देखो चारों ओर -
भारत भू पर क्यों बना, ऐसा यह दुर्योग।।

यह तो पूजा है नहीं, कहो इसे व्यापार,
ऐसे लोगों की सखे, पूजा है धिक्कार,
बदली सबकी सोच है, समझाए अब कौन -
पूजन जब निष्काम हो, करें देव स्वीकार।।

पूजा की थाली लिए, आए भक्त हजार,
ईश दिखावे को कभी, करें नहीं स्वीकार,
आडम्बर सब छोड़ कर, करें ईश का ध्यान -
प्रतिफल इसका है सुखद, मिल जाते करतार।।

पूजा का उद्देश्य हो, लें हम उनसे ज्ञान,
जनहित के सब काम कर, बने मनुष्य महान,
अंतर्यामी ईश हैं, जान रहा हर बात -
बिन माँगे भी वह करे, पूरे सब अरमान।।

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मुरारि पचलंगिया

Sunday 4 February 2024

धैर्य से सोच कर कर्म करते रहें - एक गीत

 

धैर्य से सोच कर कर्म करते रहें।
धर्म में ज्ञान की ज्योति भरते रहें।
कुछ मनन हम करें कुछ जतन हम करें,
राग बिगड़े नहीं जग चमन हम करें।
बावली पद्म की ज्यों लुभाती हमें,
भौँर की गूँज सुरभित बुलाती हमें।
पुष्प मकरंद से बोल झरते रहें।

शीघ्रता में किये कर्म बिगड़े कई,
क्रोध की आग में बाग उजड़े कई।
खेत चुँग जाएंगे खग अगर देर की,
क्यों घृणा में तपन राख की ढेर की।
मन विमल हो शुचित पाँव धरते रहें।

वाद संवाद में उर्मि का लास हो,
आस विश्वास में ईश का वास हो।
जय पराजय सहज प्रेरणा सिन्धु है,
भाव गुन लें समझ लें सुधा इन्दु है।
ग्लानि में अक्ष नम बिन्दु हरते रहें।
धैर्य से सोच कर कर्म करते रहें॥

*** सुधा अहलुवालिया

रस्म-ओ-रिवाज - एक ग़ज़ल

  रस्म-ओ-रिवाज कैसे हैं अब इज़दिवाज के करते सभी दिखावा क्यूँ रहबर समाज के आती न शर्म क्यूँ ज़रा माँगे जहेज़ ये बढ़ते हैं भाव...