Sunday, 6 July 2025

अभी अभी बही बयार सावनी सुहावनी

 

अभी अभी बही बयार सावनी सुहावनी।
झरी झरी पराग सी सुगंध शीत स्रावनी॥

निहारिका बिछी अनंत पात पात फंद में।
खिली कली निशांत पुष्प शब्द शब्द छंद में।
अलभ्य वाण साध कामदेव का वितान है।
अकाम भाव में निमग्न प्रेम गीत गान है।
प्रणम्य चेतना जगी प्रदीप्त ज्योति पावनी।
अभी अभी बही बयार सावनी सुहावनी।

उजास पंथ यामिनी प्रशांत रम्य चंद्रिका।
घनी घटा छटी छटी सचेत नेह तंत्रिका।
मयंक की विकीर्ण रश्मियां सुधा प्रसाद दे।
विदेह स्नेह में पगे विहाग राग नाद दे।
धरा लगे हरी भरी बहार कुंज छावनी।
अभी अभी बही बयार सावनी सुहावनी।

किवाड़ खोल छोर से सुवर्ण आभ झाँकती।
उड़ेलती प्रभा सुश्वेत आरती उतारती।
मिटा तमिस्र श्रांत हो स्वभाव में स्व कर्म है।
भरी अगाध कामना चुनें सुस्वल्प धर्म है।
अनन्य जीवनी सजी जगी लगी लुभावनी।
अभी अभी बही बयार सावनी सुहावनी॥

*** सुधा अहलुवालिया

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