Sunday 26 August 2018

खेल-कूद - एक कविता

 


खेल-कूद जीवन का ऐसा गहना होता है
जहाँ हार को स्वस्थ हृदय से सहना होता है 


मिली विजय श्री तुम्हें बधाई तुम बेहतर खेले
प्रतिस्पर्धी से ये हँसकर कहना होता है 


धैर्य नहीं खोना होता है कभी पराजय पर
हर हालत में अनुशासन में रहना होता है 


खुशी मनानी अलग बात है गर्व न मन में हो
जब जब कोई हार विजय का पहना होता है


चोट अगर लग जाए तो मानो ख़ुद की ग़लती
लेकिन प्रतिद्वन्द्वी से कहाँ उलहना होता है


खेल निखरता है जिससे वो मंत्र बताता हूँ
आदर देकर गुरु चरणों को गहना होता है


*** अनमोल शुक्ल 'अनमोल'

Sunday 19 August 2018

स्वतन्त्रता दिवस


नमन करे शत-शत उनको दिल
जिनके कारण अपना भारत
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तम को हमसे दूर भगाकर
एक नई वे अलख जगाकर
सोचो तो किसकी खातिर वे
झूले फाँसी पर मुस्काकर

नमन करे शत-शत उनको दिल
जिनके कारण अपना भारत
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सूरज से वे आँख मिलाकर
आज़ादी हमको दिलवाकर
सौंपा हमको वतन हमारा
चले गए इक दीप जलाकर

नमन करे शत-शत उनको दिल
जिनके कारण अपना भारत
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सीने पर गोली को खाकर
लड़ते थे वे ज़ख़्म छुपाकर
मिली शहादत उनको तब ही
हमने देखा नया दिवाकर

नमन करे शत-शत उनको दिल
जिनके कारण अपना भारत
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*** गुरचरण मेहता "रजत"

Sunday 12 August 2018

किसके सम्मुख - एक कविता


अपना जीवन, अपने दुखड़े,
अपने सुख।
इनका ढोल बजाएँ अब
किसके सम्मुख।।


ढिबरी की अपनी लौ
भले ज़रा मद्धिम,
पर अपनी आँखों में
तेज बहुत बाकी।
अपने रस के पात्र सभी
भर ही देगा
वो, जो दुनिया की
मधुशाला का साकी।।


तुमको जो थोड़ा-थोड़ा-सा
दीख रहा,
यह अपनी पुस्तक का
बस केवल आमुख।।


हमने रंगों को भी
सब स्वीकार किया,
चाहे चटख रहे हों,
चाहे धूसर ही।
अपने मन के खेतों में
सपने बोए,
चाहे वे उर्वर हों
चाहे ऊसर ही।।


दीख रहे हैं
तुमको बहुत तरोताज़ा,
दुख के जल से
धोकर लाए अपना मुख।।


हमने अपना ज्ञान
नहीं रक्खा खुद तक,
नई पीढ़ियों को दी
परम्परा आगे।
कितने भी कमजोर रहे
पर थामे हैं,
हम अपने जीवन की
साँसों के धागे।।


थमने दिया न
अपना भी संगीत कभी,
चाहे झेले हैं
मौसम के सारे रुख़।।


इस दुनिया में
घर-घर माटी के चूल्हे,
इनमें अपना भी है एक
तुम्हें पर क्या।
हम जितना मिल जाता
उसमें ही खुश हैं,
हमने तुमसे माँगी नहीं
बहुत सुविधा।।


तुम अपनी ये आँखें
जरा बंद कर लो,
तुमसे देखा अगर नहीं
जाता है दुख।।


*** पंकज परिमल ***

Sunday 5 August 2018

ख़ता/ग़लती/भूल


ख़ता का पुतला होता है बशर की जात समझो सब
ख़ता करना अगरचे है बुरी इक बात समझो सब

ख़ता करता नहीं इंसान वो भगवान हो जाता
अगर मिलता कोई ऐसा उसे सौगात समझो सब

ख़ता होती अगर अनजाने में तो माफ़ की जाये
ख़ताएँ जानकर करता उसे बदजात समझो सब

ख़ता गर एक ही करता मुसल्सल बारहा इन्सां
यक़ीनन जुर्म की करता है वह शुरुआत समझो सब

ख़ता की कोशिशें हरगिज़ न हो आओ अहद कर लें
ख़ता की जान कर ख़ुद पर कुठाराघात समझो सब

ख़ता होगी समझिये फिर सज़ा भी कुछ मिलेगी ही
सज़ा का दायरा मुमकिन बुरे हालात समझो सब

ख़ताओं से 'तुरंत' अब से हमेशा के लिए तौबा
ग़मों की चाहिए हमको नहीं बरसात समझो सब

*** गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी
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श्रम पर दोहे

  श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म। श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।। ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर व...