Sunday, 26 November 2017

अपना धर्म निभाते


मानसरोवर में सबको ही, सुंदर दृश्य लुभाता।
हंस हंसिनी विचरण करते, धवल रंग से नाता।।
सरस्वती के वाहन होकर, हंसा मोती चुगते।
शांत भाव के पक्षी है ये, खुले गगन में उड़ते।। 


प्रणय पंथ के सच्चे साथी, आपस में हर्षाये
शुभ ऊषा का पंथ निहारें, काली रात बिताये।।
इनकी मूरत लगती भोली, प्रीति निभाती जोड़ी।
सम्मोहित हो कविगण लिखते, बैठ वहाँ पैरोडी।।


प्रेमी ये हंसों की जोड़ी, दिल दरिया पैमाना।
ममता के सागर में बसते, इनका वही ठिकाना।
धरती अम्बर तीन लोक में, अपना धर्म निभाते।
हंस वाहिनी माँ कहलाती, जग में उन्हें घुमाते।।


***** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला 

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