Sunday 26 November 2023

माँ भवानी - एक गीत

 

माँ भवानी जगत जननी बेटियों में वास तेरा।
नव स्वरूपा कंज बदना भद्रकाली न्यास तेरा।

कामिनी शिवगामिनी तनु दामिनी जग स्वामिनी तू।
लावनी अति पावनी शुचि छावनी मधु यामिनी तू।
शक्ति रूपा मृदुल आभा सुहागन मुख हास तेरा।
नव स्वरूपा कंज बदना भद्रकाली न्यास तेरा।

धारती संवेदना का अंश नारी है धरा पर।
जन्म देती पालती शिशु विषमताओं को हरा कर।
पा गई करुणा सहज नारी सुभग आभास तेरा।
नव स्वरूपा कंज बदना भद्रकाली न्यास तेरा।

मातु मेरी गंगजल निर्मल, बलाओं से बचाती।
सालती संस्कार मन में ज्योति अंतस की सजाती।
है दिया उपहार माँ का भक्त मैं हूँ दास तेरा।
नव स्वरूपा कंज बदना भद्रकाली न्यास तेरा।

*** सुधा अहलुवालिया

Sunday 19 November 2023

ईश्वर - मुक्तक द्वय

 

ज़िन्दगी की राह जब दुख दर्द से हो चिप चिपा,
याद करते हैं उन्हें फिर, माँगते उनकी कृपा,
एक एकाकार मानो, या हज़ारों रूप दो,
ईश की परिकल्पना में, गूढ़ चिंतन है छिपा।
भक्ति का सित अश्रु भर कर आँख रूपी दीप में,
प्रेम बाती नित जलाऊँ तम घिरे हिय द्वीप में
हे प्रभो मन द्वार सँकरा हो गया भव कीच से,
भाव द्रव तू रिक्त उर में डाल दे रख कीप में।

*** शशि रंजन 'समदर्शी'

Sunday 12 November 2023

दीपोत्सव त्योहार - गीत

 

त्रयोदशी से पाँच दिवस का, दीपोत्सव त्योहार।
तन-मन होगा स्वच्छ तभी जब, मन से मिटे विकार।।

ज्योतिर्मय कर दीपक अपना,सदा करे सद्कर्म।
अंधकार में खुद रहकर भी, सदा निभाये धर्म।।
नहीं प्रदूषित करें नगर को, होगा तब उपकार।
त्रयोदशी से पाँच दिवस का, दीपोत्सव त्योहार।।

मन के दूर विकार सभी हो, तभी तमस का नाश।
दीनों के घर करें उजाला, फैले ख़ूब प्रकाश।।
आतिश बाज़ी छोड़ दीन को, बाँटें कुछ उपहार।
त्रयोदशी से पाँच दिवस का, दीपोत्सव त्योहार।।

करे सभी घर वैभव लक्ष्मी, ख़ुशियों की बरसात।
गोवर्धन दिन मिले कृष्ण से, रक्षा की सौगात।।
भाई दूज बहन भाई से, करे प्रेम इजहार।
त्रयोदशी से पाँच दिवस का, दीपोत्सव त्योहार।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday 5 November 2023

जाना तो उस पार - एक गीत

 

मैं का मद ऐसा सर चढ़ता, इठलाते बल खाते हैं।
जाना तो उस पार सभी को, समझ नहीं क्यों पाते हैं।।

तेरा- मेरा तू-तू मैं-मैं, जग इसमें ही हारा है।
बीच भंवर में डगमग नैया, कोसों दूर किनारा है।।
माँझी की कोई कब सुनता, निज पतवार चलाते हैं।
जाना तो उस पार सभी को, समझ नहीं क्यों पाते हैं।।

जिसको देखो उलझा है वह, इस दुनिया के मेले में।
कोई रोता बीच सड़क पर, रोते कई अकेले में।।
ईश्वर का यह खेल समझ लो, नासमझे पछताते हैं।
जाना तो उस पार सभी को, समझ नहीं क्यों पाते हैं।।

कितना भी बलशाली कोई, जीवन आना-जाना है।
आशा और निराशा का यह, सारा ताना-बाना है।।
मानव रूप मनुज क्यों पाया, क्या खुद को समझाते हैं!
जाना तो उस पार सभी को, समझ नहीं क्यों पाते हैं।।

*** विश्वजीत शर्मा 'सागर'

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...