Sunday 28 November 2021

 



नीर भरन को आ गईं, रहट चलत लखि कूप।
मनहर वेला प्रात की, भीनी - भीनी धूप।।

एक धरे घट शीश पर, दूजी कटि पर लीन्ह।
घट कटि रखने के लिए, बदन त्रिभंगी कीन्ह।।

याद पिया की आ गई, भूल गई घट नीर।
उँगली ठोड़ी पर रखे, लगती बड़ी अधीर।।

कल क्यों तुम आई नहीं, दिखती आज उदास।
डूब गई किस सोच में, भूल गई परिहास।।

दिल का दर्द उड़ेल दो, बैठो मेरे पास।
क्या बतलाऊँ आपसे, रोज डाँटती सास।।

*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

Sunday 21 November 2021

कब किसका सम्मान हुआ

 



दृढ़निश्चय संकल्प शक्ति से, संस्कृति का उत्थान हुआ।
दंभ क्रोध मिथ्या हठ कारण, कब किसका सम्मान हुआ।

कैकेयी हठ निमित्त था बस, काल दशानन का आया।
सिया स्वर्ण मृगतृष्णा झूठी, स्वयं मृत्यु को हर लाया।
भरी सभा में दशकंधर से, भाई का अपमान हुआ।
दंभ क्रोध मिथ्या हठ कारण, कब किसका सम्मान हुआ।

भीष्म प्रतिज्ञा धारण करना, धर्म कहाँ बस बन्धन था।
दुर्योधन की ज़िद के आगे, ग्लानि युक्त वो क्रंदन था।
धर्मयुद्ध में हरि के सम्मुख,अविरत सत्य् प्रज्ञान हुआ।
दंभ क्रोध मिथ्या हठ कारण, कब किसका सम्मान हुआ।

दृढ़-निश्चय ध्रुव का देखा जब, नारद ने समझाया था।
नारायण-नारायण जप कर, अविचल पद को पाया था।
हिरण्यकशिपु वध हेतु ही तो, नृसिंह का आह्वान हुआ।
दंभ क्रोध मिथ्या हठ कारण, कब किसका सम्मान हुआ।

राज बाल व त्रिया हठ तीनों, युग-युग से चलते आए।
कलयुग में भी ये तीनों ही, भावों को छलते आए।
कभी किया था अपयश जिसका, कैसे फ़िर यशगान हुआ।
दंभ क्रोध मिथ्या हठ कारण, कब किसका सम्मान हुआ।

*** सरदार सूरजपाल सिंह *** कुरुक्षेत्र

Sunday 14 November 2021

धर्म युद्ध करना होगा

 



गीता ज्ञान भले तुम गा लो, धर्म युद्ध करना होगा।
यहाँ पराजय नहीं मृत्यु तक, अपनों से लड़ना होगा॥

सम्मुख कौन खड़ा है रण में, पीछे कौन हमारा है।
दोनों ओर भविष्य अनिश्चित, असि ही एक सहारा है॥
मारो - मरो विकल्प एक ही, जीवन लेकर आता है।
क्रोध शोक का शोधन सुख तो, कायर नर भी पाता है॥

न्याय- धर्म के दुर्गम पथ पर, स्वत्व छोड़ चलना होगा।
गीता ज्ञान भले तुम गा लो, धर्म युद्ध करना होगा॥

कौन युवा अभिमन्यु यहाँ है, कौन विदुर- सा सद्वक्ता।
कौन कर्ण-सा ऋणी मित्र है, कौन कृष्ण -सा अनुमन्ता॥
अनुचित लिप्सा धृतराष्ट्रों की, निज संतति ही खाती है।
ओस चाट पलने वाले को, वर्षा - ऋतु कब भाती है॥

क्षुद्र स्वार्थ से ऊपर उठकर, मुख से सच कहना होगा।
गीता ज्ञान भले तुम गा लो, धर्म युद्ध करना होगा॥

नईं कोंपलें मर जाती हैं, वृद्ध वृक्ष की छाया में।
श्रेष्ठ बीज भी गल जाता है, धरती की नम काया में॥
धर्म भेष धर दुर्बलताऍं, पगडंडी से आती हैं।
करुणा -दया -अहिंसा -मैत्री, षट् रस भोजन पाती हैं॥

जो जगकर सोयें हैं सोयें, सोये को उठना होगा।
गीता ज्ञान भले तुम गा लो, धर्म युद्ध करना होगा॥

डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

Sunday 7 November 2021

दीपावली

 


लंक विजय कर अवध में, लौटे श्री रघुवीर।
दुष्ट दलन कर के हरी, जनमानस की पीर॥1॥

रघुवर के सम्मान में, सजा अयोध्या धाम।
दीपोत्सव अभिव्यक्ति है, स्वागत है श्री राम॥2॥

नयी फसल का पर्व यह, पहुंचे घर में अन्न।
हंसी खुशी उल्लास है, जन जन हुए प्रसन्न॥3॥

जगमग है अट्टालिका, कुटिया तम का वास।
दीपोत्सव तब ही सफल, हो चहुँ ओर उजास॥4॥

मन का दीप जलाइए, प्रकटें सुंदर भाव।
सबको अपना मानिए, रखिए नहीं दुराव॥5॥

दीपोत्सव पर बांटिए,सबको अपना स्नेह।
मीठी बोली से भरें, सबके मन का गेह॥6॥

कोई नित भूखा रहे, कोई छप्पन भोग।
दीपोत्सव के पर्व पर, कैसा यह संयोग॥7॥

अशोक श्रीवास्तव, प्रयागराज

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...