गीता ज्ञान भले तुम गा लो, धर्म युद्ध करना होगा।
यहाँ पराजय नहीं मृत्यु तक, अपनों से लड़ना होगा॥
सम्मुख कौन खड़ा है रण में, पीछे कौन हमारा है।
दोनों ओर भविष्य अनिश्चित, असि ही एक सहारा है॥
मारो - मरो विकल्प एक ही, जीवन लेकर आता है।
क्रोध शोक का शोधन सुख तो, कायर नर भी पाता है॥
न्याय- धर्म के दुर्गम पथ पर, स्वत्व छोड़ चलना होगा।
गीता ज्ञान भले तुम गा लो, धर्म युद्ध करना होगा॥
कौन युवा अभिमन्यु यहाँ है, कौन विदुर- सा सद्वक्ता।
कौन कर्ण-सा ऋणी मित्र है, कौन कृष्ण -सा अनुमन्ता॥
अनुचित लिप्सा धृतराष्ट्रों की, निज संतति ही खाती है।
ओस चाट पलने वाले को, वर्षा - ऋतु कब भाती है॥
क्षुद्र स्वार्थ से ऊपर उठकर, मुख से सच कहना होगा।
गीता ज्ञान भले तुम गा लो, धर्म युद्ध करना होगा॥
नईं कोंपलें मर जाती हैं, वृद्ध वृक्ष की छाया में।
श्रेष्ठ बीज भी गल जाता है, धरती की नम काया में॥
धर्म भेष धर दुर्बलताऍं, पगडंडी से आती हैं।
करुणा -दया -अहिंसा -मैत्री, षट् रस भोजन पाती हैं॥
जो जगकर सोयें हैं सोयें, सोये को उठना होगा।
गीता ज्ञान भले तुम गा लो, धर्म युद्ध करना होगा॥
डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.
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