Sunday 26 April 2020

बल के कितने रूप

 
बल के कितने रूप धरा पर, कर प्रयास मैं बतलाऊँ।
सतबल के क्या-क्या प्रभाव हैं, कहिये कैसे समझाऊँ।


तनबल मनबल मतिबल भुजबल
कर प्रयास जो पाते हैं,
जो नित इनको पुष्ट बनाते
जीत सदा हथियाते हैं,
धनबल के वे मालिक बनते, इनके कितने गुण गाऊँ
सतबल के क्या-क्या प्रभाव हैं, कहिये कैसे समझाऊँ


छलबल से बढ़ता है दलबल
जिसकी महिमा न्यारी है,
पद मिलता रुतबा भी मिलता
झुकती दुनिया सारी है,
कैसे-कैसे क्या-क्या घटता, मुँह से क्या मैं कह जाऊँ
सतबल के क्या-क्या प्रभाव हैं, कहिये कैसे समझाऊँ


ऊपर से नीचे को बहता
हर नदिया का जलबल है,
नाद करे ऊपर जो कलकल
नीचे वैसी कलकल है,
सोच रहा सतबल की धारा, ऊपर से नीचे लाऊँ
सतबल के क्या-क्या प्रभाव हैं, कहिये कैसे समझाऊँ


कुछ बल को मैं जान चुका हूँ
पर सारे बल ज्ञात नहीं,
घात करें सारे बल छुप-छुप
पर ये खाते मात नहीं,
हर मन में बल पड़े हुए हैं, किस-किस को मैं गिनवाऊँ
सतबल के क्या-क्या प्रभाव हैं, कहिये कैसे समझाऊँ


*** अवधूत कुमार राठौर ***

Sunday 19 April 2020

वीर (आल्हा) छंद


नीलाम्बर रक्ताभ हो रहा, सूरज अस्ताचल को जाय।
बादल के सँग आँख मिचौली, हर प्राणी के मन को भाय।।

शीतल किरणें सूर्य देव की, निरख निरख मन खुश हो जाय।
मलयाचल से पवन देव जी, देखो मंद-मंद मुस्काय।।


दिव्य क्षितिज की छटा निराली, स्वर्ग सुखों का देती भान।
इसी छटा को देख-देख कर, ऋषि-मुनि सब करते गुणगान।।

नीले-पीले बादल सारे, सबके मन को रहे लुभाय।
कविगण इसका वर्णन करते, संध्या देवि रही मुस्काय।।


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*** मुरारि पचलंगिया ***

Sunday 12 April 2020

पंचचामर/नराच/नागराज छन्द

 
विभो! कृपा रहे सदा न आधि हो न व्याधि हो।
न भोगजन्य रोग हो शिवा ऋतम् समाधि हो।।
न काम क्रोध मोह हो न द्रव्य जन्य रोग हो।
सदैव साथ हो खुशी विपत्ति से वियोग हो॥1॥


समस्त विश्व हे प्रभो! विषाणु की चपेट में।
बिमारियाँ अनेक हैं मनुष्य है लपेट में।।
वसुन्धरा दुखी हुई यहाँ विषाणु राज है।
मनुष्य है डरा हुआ निरुद्ध द्वार आज है॥2॥


सभी यहाँ ग्रसे गये असह्य आज वेदना।
समाप्त धैर्य हो रहा न शेष आज चेतना।।
तुम्हें पुकारते समस्त जीव-जन्तु उन्मना।
हरे! हरो दुरूह दुःख अंध छा रहा घना॥3॥


करें बचाव प्राण का हमें असीम शक्ति दो।
बचाव हेतु जीव के प्रतीति* और भक्ति दो।। (*विश्वास /ज्ञान)
मनुष्य स्वस्थ हों समस्त रोग से विमुक्ति दो।
विवेक का प्रकाश हो विचार धैर्य युक्ति दो॥4॥


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कुन्तल श्रीवास्तव, मुम्बई.

Sunday 5 April 2020

दायरे में वक़्त के


ज़िन्दगी जीते हुए चाहे भरम ही पाल रख
दायरे में वक़्त के सिमटी ख़ुशी सम्भाल रख


कौन जाने कब कहानी का कथानक ख़त्म हो
जी भी रख हल्का ही अपना और कम जंजाल रख


क्यों समय को कोसना उसकी सधी रफ़्तार है
शर्त है पाबन्दगी की तो ये आदत डाल रख


अनसुनी अनहोनियों में काल का है रथ अभी
युग इसे भी हाँक लेगा हौसला हर हाल रख 


मन रमा एकांत में आनन्द देती साधना
मीत तू भी इन पलों से रूह की लय-ताल रख


  *** मदन प्रकाश ***

छंद सार (मुक्तक)

  अलग-अलग ये भेद मंत्रणा, सच्चे कुछ उन्मादी। राय जरूरी देने अपनी, जुटे हुए हैं खादी। किसे चुने जन-मत आक्रोशित, दिखा रहे अंगूठा, दर्द ...