Sunday 28 April 2024

मैं गीत लिखती हूँ धरा के - एक गीत

 

हाँ सुनो मैं गीत लिखती हूँ धरा के।
हम सभी को जो दुलारे मुस्करा के।।

रुप की रानी चहकती सी लगे जो,
रजनीगंधा सी महकती ही रहे जो,
गुल‌मोहर टेसू की केसरिया दुशाला,
सतरंगी रंग में मचलती सी लगे जो,
चहचहाती भोर सी इस उर्वरा के।
हाँ सुनो मैं गीत लिखती हूँ धरा के।।

जिसके आँचल में टँके फसलों के मोती,
हर नयन में नित नये जो स्वप्नन बोती,
गोद में जिसके है गंगा की रवानी,
मुग्ध करती ओढ़ कर चूनर ये धानी
खिलखिलाकर झूमती विश्ववंभरा के।
हाँ सुनो मैं गीत लिखती हूँ धरा के।।

जिसके आँगन में चहकती हैं फ़िज़ायें,
जन्म लेती नित नयी संभावनायें,
जिसमें इठलाती हुयी नदियों की सरगम,
जलतरंगों का मधुर संगीत अनुपम,
गुनगुनाकर छेड़ती स्वर उस स्वरा।
हाँ सुनो मैं गीत लिखती हूँ धरा के।।

*** प्रतीक्षा तिवारी
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Sunday 21 April 2024

रीति निभाने आये राम - गीत

 

त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम।
निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।।

राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल सा हो मन भाव।
करे आचरण यदि मर्यादित , रहे न मन में कहीं दुराव।
राम राज्य आदर्श सभी का, सत्य बताने आये राम।
निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।।

कठिनाई का करें सामना, वन वन भटके सीता राम।
ऊँच-नीच का भेद मिटाने, करे मित्रता सबसे राम।
श्रद्धा से छलकाकर आँसू, कलुष मिटाने आये राम।
निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।।

चेतन और अचेतन जग में, कण कण व्यापे जो संसार।
जीवन का शुभ मन्त्र राम है, अखिल सृष्टि के है आधार।
राम नाम से पत्थर तिरते, मन्त्र सिखाने आये राम।
निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday 14 April 2024

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

 

शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।
किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी।

ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई।
बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई।
अमा रात्रि भी नहीं भर्त्सना योग्य कहीं।
भले पूर्णिमा खिले ज्योत्स्ना पूर्ण वहीं।
कवियों हित होना है मण्डन शेष अभी।
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।

उषा मधुर मुस्कान बिखेरे जग के हित।
अरुण रंग लालिमा लुटाए लेकिन मित।
अमृत वेला आनन्दित कर दे मन को।
नवल जागरण और संचरण दे तन को।
भासमान दिनकर का वन्दन शेष अभी।
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।

फूलों से मकरन्द अभी है चुआ नहीं।
सम्प्रति अक्षत रहे किसी ने छुआ नहीं।
पारदर्शिता तुहिन कणों से झाँक रही।
शुचिता पावनता की कीमत आँक रही।
अमल धवल शुचि प्रेम निमज्जन शेष अभी।
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

Sunday 7 April 2024

वह मित्र होता है - गीत

 

मान देता है सदा जो हर घड़ी वह मित्र होता है।
पुष्प मन से गंध चुन मन सींच दे वह इत्र होता है।

बिम्ब अपना सा लगे जब अन्य की स्वर साधना लय में।
जब किसी के आचरण में निज प्रभा घुलने लगे मय में।
शुद्ध निश्छल भाव से मन में पिघल कोई बुला जाए।
है सखा विपदा पड़े तो उस घड़ी में पास आ जाए।
मौन रह मन की उदासी में उतर नव चित्र होता है।
बालपन में माँ सखा बन करुण रस को सींचती रहती।
मौन भाषा हो पिता की युवानी भी रीझती रहती।
दोस्त हो जाते युगल मन प्रेरणा निज नेह को सेते।
जीवनी की नाव सुख दुख की लहर के मध्य में खेते।
भावना हो प्रीति प्लावित आचरण सुपवित्र होता हैं।

पेड़ पौधे नदी पोखर झील झरने निर्मल दिशाएं।
उच्च शिखरों पर घुमड़ते खण्ड बादल मंजुल हवाएं।
पक्षियों की चहचहाहट पालतू पशु दोस्त से होते।
ये न हों तो जीवनी में हम मनस संवेदना खोते।
मेल से हैं गीत के रँग मित्र गुण सुचरित्र होता है।
मान देता है सदा जो हर घड़ी वह मित्र होता है।

*** सुधा अहलुवालिया

मैं गीत लिखती हूँ धरा के - एक गीत

  हाँ सुनो मैं गीत लिखती हूँ धरा के। हम सभी को जो दुलारे मुस्करा के।। रुप की रानी चहकती सी लगे जो, रजनीगंधा सी महकती ही रह...