Sunday 25 July 2021

कर्तव्य

 



मानव का कर्तव्य है, सहज निभाए फ़र्ज,
बहुत जरूरी है यही, करता हूँ मैं अर्ज,
बातों में मत टालना, मूल-मंत्र यह एक,
हम सबका दायित्व है, समझो सिर पर कर्ज।।

फ़र्ज निभाते वीर सब, हो जाते कुर्बान,
संकल्पित वे सब खड़े, अपना सीना तान,
दुश्मन जब सम्मुख मिले, देते सीना चीर,
मन में उत्कट भावना, बढ़े देश का मान।।

क्या अपना कर्तव्य है, रहे सदा यह ध्यान,
इसे निभाते वीर जो, पाते हैं सम्मान,
कष्टों से डरते नहीं, देते सबको साथ,
प्रतिफल इसका है सुखद, जग करता गुणगान।

*** मुरारि पचलंगिया *** 

Sunday 18 July 2021

पग-पग डगरिया



सींच गया माली प्रीतम सँवरिया।
प्रेम बेल बोकर पग पग डगरिया।
महक उठी क्यारी पवनौ दुलारे,
बेच रहा गंधी काँधे कँवरिया।
प्रेम बेल बोकर पग-पग डगरिया।

अंग - अंग बहके निबुआ रसीले।
जेवनौ न भावे तुम बिन छबीले।
प्रीत भरी जूठन लगे मनभावन,
षडरस फीको ये लागी बखरिया।
प्रेम बेल बोकर पग-पग डगरिया।

नेह लगाकर सावनी अमराई।
डँसन लगी रतियाँ खारी जुन्हाई।
अँगना खड़ी तके, सुधबुध बिसारे
कटे नहीं पलछिन साँझ दुपहरिया।
प्रेम बेल बोकर पग-पग डगरिया।

नैन हमारे ये दरश बिन तरसे।
कजरारी अँखिया मेघ जनु बरसे।
सीप बिना मोती, जलधि बिनु वारी,
प्यार भरीं बतियाँ सूनी अटरिया।
प्रेम बेल बोकर पग-पग डगरिया।

डॉ प्रेमलता त्रिपाठी 

Sunday 11 July 2021

एक नग़मा



आरज़ू हर बशर की अजी कम कहाँ
ख्व़ाहिशों का समंदर, किनारा नहीं
मौत देती कहाँ चंद साँसे कभी
ज़िंदगी को मिले फ़िर सहारा नहीं

इम्तिहान-ए-वफ़ा हमको मंजूर है
हुस्न-ए-शय पर भला क्यों वो मग़रूर है
आज़माइश ज़रूरी नहीं इश्क़ में
ये मुहब्ब्त को मेरी गवारा नहीं

है तमन्ना मुलाकात फ़िर हो वहाँ
चाँदनी रात में हम मिले थे जहाँ
चाँद उतरा ज़मीं पर उसी रोज़ था
खो गया चाँद अब वो नज़ारा नहीं

आज 'सूरज' सिसकता रहा रात भर
लब पे ख़ामोशियाँ एक अंजाना डर
ख़ुद से ज़्यादा किया था जिसे प्यार वो
होश में आएगा अब दुबारा नहीं

सरदार सूरजपाल सिंह
कुरुक्षेत्र।

Sunday 4 July 2021

चित्र चिंतन

 


चार चंद्र चंचल चपल, चकित चित्त सौगात।
नयन झरोखे में बसी, पूनम की वह रात॥1॥

इंदु व्योम आगोश में, प्रतिबिंबित था नीर।
हृदय सिंधु में तैरता, दूजा सरिता तीर॥2॥

नयन कंज तन चंपई, अधर सुधा रस सिक्त॥
दंत पंक्ति या चंचला, काम कांति अतिरिक्त॥3॥

कुंचित कुंतल व्याल से, अरुणिम युगल कपोल।
सुभग चंचु शुक नासिका, चंचल लोचन लोल॥4॥

निशा नागरी वस्त्र में, मुक्ता जड़े अनेक।
विटप चकित अवलोकते, हृदय प्रेम अतिरेक॥5॥

*** चन्द्र पाल सिंह "चन्द्र" ***

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...