Sunday 11 July 2021

एक नग़मा



आरज़ू हर बशर की अजी कम कहाँ
ख्व़ाहिशों का समंदर, किनारा नहीं
मौत देती कहाँ चंद साँसे कभी
ज़िंदगी को मिले फ़िर सहारा नहीं

इम्तिहान-ए-वफ़ा हमको मंजूर है
हुस्न-ए-शय पर भला क्यों वो मग़रूर है
आज़माइश ज़रूरी नहीं इश्क़ में
ये मुहब्ब्त को मेरी गवारा नहीं

है तमन्ना मुलाकात फ़िर हो वहाँ
चाँदनी रात में हम मिले थे जहाँ
चाँद उतरा ज़मीं पर उसी रोज़ था
खो गया चाँद अब वो नज़ारा नहीं

आज 'सूरज' सिसकता रहा रात भर
लब पे ख़ामोशियाँ एक अंजाना डर
ख़ुद से ज़्यादा किया था जिसे प्यार वो
होश में आएगा अब दुबारा नहीं

सरदार सूरजपाल सिंह
कुरुक्षेत्र।

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