चार चंद्र चंचल चपल, चकित चित्त सौगात।
नयन झरोखे में बसी, पूनम की वह रात॥1॥
इंदु व्योम आगोश में, प्रतिबिंबित था नीर।
हृदय सिंधु में तैरता, दूजा सरिता तीर॥2॥
नयन कंज तन चंपई, अधर सुधा रस सिक्त॥
दंत पंक्ति या चंचला, काम कांति अतिरिक्त॥3॥
कुंचित कुंतल व्याल से, अरुणिम युगल कपोल।
सुभग चंचु शुक नासिका, चंचल लोचन लोल॥4॥
निशा नागरी वस्त्र में, मुक्ता जड़े अनेक।
विटप चकित अवलोकते, हृदय प्रेम अतिरेक॥5॥
*** चन्द्र पाल सिंह "चन्द्र" ***
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