Sunday 12 May 2024

जग-सराय में रैन बसेरा - एक गीत

 

जग-सराय में रैन बसेरा, प्रात यहाँ से जाना।
धर्म-कर्म की चादर ओढ़े, नहीं पड़े पछताना।।

खुली बेड़ियाँ गर्भ-नर्क की, स्वर्ग-धरा पर आया।
ख़ुश थे सभी मगर तू रोया, देख जगत की माया।।
भूल गया घर वापस जाना, कुछ दिन यहाँ ठिकाना।
जग-सराय में रैन बसेरा, प्रात यहाँ से जाना।।

यौवन का मदिरालय छलका, मृग तृष्णा ने घेरा।
भोग-रोग के संग तृषा ने, डाल दिया तन डेरा।।
मन-तुरंग नव भरे उड़ानें, सोच लिया जो पाना।
जग-सराय में रैन बसेरा, प्रात यहाँ से जाना।।

गई बहारें पतझड़ आया, फीके लगें नजारे।
काया-माया साथ न देती, झूठे सभी सहारे।।
हंस उड़ा तज मानसरोवर, रूठ गया जब दाना।
जग-सराय में रैन बसेरा, प्रात यहाँ से जाना।।

*** चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'

Sunday 5 May 2024

श्रम पर दोहे

 

श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म।
श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।।

ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर वसंत।
वर्षा ऋतु से प्रिय जगत, श्रम से प्रिय गृह कंत।।

श्रम जीवन के वृक्ष को, सिंचित करता श्वेद।
फल छाया पल्लव सुमन, देकर हरता खेद।।

श्रम जीवन का मूल धन, श्रम जीवन का ब्याज़।
श्रम जीवन का घोंसला, श्रम नभ की परवाज़।।

सकल जगत के जीव सब, पहने श्रम का हार।
अपने-अपने पथ चले, फल देता दातार।।

कर्म हीन विधि हीन नर, रचता गृह फल हीन।
भाग्य हीन बन घूमता, मन वाणी धन दीन।।

श्रम श्रद्धा विश्वास है, श्रम ही साधन साध्य।
श्रम के बल से प्रकट हो, फल रूपी आराध्य।।

डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

जग-सराय में रैन बसेरा - एक गीत

  जग-सराय में रैन बसेरा, प्रात यहाँ से जाना। धर्म-कर्म की चादर ओढ़े, नहीं पड़े पछताना।। खुली बेड़ियाँ गर्भ-नर्क की, स्वर्ग...