Sunday, 5 May 2024

श्रम पर दोहे

 

श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म।
श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।।

ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर वसंत।
वर्षा ऋतु से प्रिय जगत, श्रम से प्रिय गृह कंत।।

श्रम जीवन के वृक्ष को, सिंचित करता श्वेद।
फल छाया पल्लव सुमन, देकर हरता खेद।।

श्रम जीवन का मूल धन, श्रम जीवन का ब्याज़।
श्रम जीवन का घोंसला, श्रम नभ की परवाज़।।

सकल जगत के जीव सब, पहने श्रम का हार।
अपने-अपने पथ चले, फल देता दातार।।

कर्म हीन विधि हीन नर, रचता गृह फल हीन।
भाग्य हीन बन घूमता, मन वाणी धन दीन।।

श्रम श्रद्धा विश्वास है, श्रम ही साधन साध्य।
श्रम के बल से प्रकट हो, फल रूपी आराध्य।।

डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

No comments:

Post a Comment

माता का उद्घोष - एक गीत

  आ गयी नवरात्रि लेकर, भक्ति का भंडार री। कर रही मानव हृदय में, शक्ति का संचार री॥ है प्रवाहित भक्ति गङ्गा, शिव-शिवा उद्घोष से, आज गुंजित गग...