Sunday 30 October 2022

धारा - ताटंक छंद

 

हिमखंडो का स्वेद नहीं तू, और न है कोई नारी।
हिरणी जैसी चंचल नदिया, सींच रही धरती सारी।।
फसलों की श्वासें है तुझसे, तुझसे जीवन है सारा।
तू ही गंगा तू ही जमुना, तू ही पावन ‌है धारा।।1।।

तेरे तट पर बसा नगर हर, कितना वैभवशाली है।
और पंथ पर तेरे फैली, हर डग पर हरियाली है।।
पशु पक्षी वन मानव सारे, तुझसे ‌ जीवन पाते हैं।
प्यास बुझाने तट पर तेरे, दूर दूर से ‌ आते हैं।।2।।

किन्तु दशा कर डाली कैसी, निष्ठुर मानव ने तेरी।
क्षण क्षण क्षरण हुआ जाता है, पल पल होती है देरी।।
हुई विषैली जल की धारा, मुक्ति तुझे ही पाना है।
सोये मानव मन को नदिया, अब तो तुझे जगाना है।।3।।

डाॅ. देवनारायण शर्मा

Sunday 23 October 2022

दीपोत्सव - दोहे

 

मंगलमय त्योहार यह, रघुवर चरणों प्रीत।
अंत आसुरी वृत्ति का, अच्छाई की जीत।।

वर्ष चतुर्दश बाद जब, लौटे प्रभु निज धाम।
अवधपुरी हर्षित हुई, निरखत छवि अभिराम।।

दीप अवलियाँ सज गईं, उल्लासित संसार।
जगमग वसुधा सिंधु में, ज्योति पुंज जलधार।।

दीप-माल झिलमिल करे, बहती ज्योति तरंग।
पावन पर्व प्रकाश का, मन उत्साह उमंग।।

रात्रि अमावस की तदपि, उजियारा चहुँ ओर।
अँधियारा निर्बल हुआ, चला न उसका जोर।।

घर-घर में मिष्ठान सँग, बने बहुत पकवान।
खील बताशे भोग ले, करते मंगल गान।।

मंगलमयि दीपावली, गणपति लक्ष्मी पूज।
पंचदिवस त्योहार के, अंतिम भाई दूज।।

सभी
बधाई
दे रहे, बाँट रहे उपहार।
शुभाशीष शुभकामना, मिल देते परिवार।।

डॉ. राजकुमारी वर्मा

Sunday 16 October 2022

मेरे चंदा - एक गीत

 



चंदा दो आशीष पिया को,उदित भाग्य ध्रुवतारा हो।
ज्योतिर्मय हो कर्मक्षेत्र अब, धर्मक्षेत्र उजियारा हो।

जीवन ऐसा चले कि जैसे, झरने की निर्मल धारा।
हृदय भाव हों पुलकित-पुलकित,मृदुल बोल का जयकारा।
चार सुखो के धारी हों अरु, जीवन सफल हमारा हो।
चंदा दो आशीष पिया को, उदित भाग्य ध्रुवतारा हो।

सपनों की फुलझड़ियाँ चमकें, मधु स्मृतियाँ बनीं रहें।
पति सेवा में हरदम चंदा, बाँहें मेरी तनीं रहें।
ओ चाँद तेरी चाँदनी का,अद्भुत यहाँ नजारा हो।
चंदा दो आशीष पिया को,उदित भाग्य ध्रुवतारा हो।

गर नीर बहें तो परदुख में, प्रभु सेवा में लगी रहूँ।
कष्ट समय में भी चंदा मैं, पति से कुछ भी नहीं कहूँ।।
मेरे घर में प्यारे चंदा, कभी नहीं अँधियारा हो।
चंदा दो आशीष पिया को, उदित भाग्य ध्रुवतारा हो।
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@ सर्वाधिकार सुरक्षित
ठा. सुभाष सिंह, कटनी, म.प्र.

Sunday 9 October 2022

विजय गीत

 

विजय हमेशा मिलती उसको, जिसको मन में होती आस ।
विजय पताका फहरे उसकी, दृढ़ता से जो करें प्रयास ।।
 
एकलव्य सी जिसमें दृढ़ता, समझो जीत उसी के द्वार ।
मन में जीते जीत बताते, मन के हारे मानो हार ।।
अगर लक्ष्य कर ले निर्धारित, तभी लक्ष्य पर रहता ध्यान।
अर्जुन जैसी मिले सफलता, बढ़ता जाता तब विश्वास ।।
 
अपनी करनी पार उतरनी, यहीं सोच खुद करते काम ।
यत्न स्वयं को करें धैर्य रख, वहीं लक्ष्य को दें अंजाम ।।
सर्वश्रेष्ठ देना ही मकसद, नहीं देखता वह परिणाम ।
नहीं भाग्य के रहें भरोसे, करता रहता सतत विकास ।।
 
शूल बिछे पथ पर जो चलता, बढ़ने को करता संघर्ष ।
जब पहुँचे गंतव्य जगह पर, मन में होता भारी हर्ष ।।
कर्म बोध का भान जिसे हो,कभी न डिगते उसके पाँव ।
जीते जो अपने बल बूते, उसके मन होता उल्लास ।।
 
*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

 

Sunday 2 October 2022

विजय पर्व - एक गीत

 

विजय पर्व संदेश लाता रहा है।
सदा ही हमें ये जगाता रहा है।

बहुत सो लिए अस्मिता आज खोकर।
स्वयं के लिए शूल ही मात्र बो कर।
अभी जाग जाओ न देरी हुई है।
प्रचुर सम्पदा देख तेरी हुई है।

हमें सुध उसी की दिलाता रहा है।
विजय पर्व संदेश लाता रहा है।

उगे हैं दिशाओं-दिशाओं दशानन।
किया जिंदगी को कठिन क्षण व प्रति क्षण।
चलो आसुरी वृत्तियां हम भगाएँ।
वरण कर उचित न्याय की नीति लाएँ।

सदा शौर्य के गीत गाता रहा है।
विजय पर्व संदेश लाता रहा है।

न भयभीत होना गिरे हो अगर तुम।
घनेरे तिमिर में घिरे हो अगर तुम।
भरो नेह सत्वर सु-आशा दिए में।
जलाओ निराशा न लाओ हिये में।

हमें राह उज्ज्वल दिखाता रहा है।
विजय पर्व संदेश लाता रहा है।

दशहरा मनाएं दिवाली सजाएँ।
प्रफुल्लित हृदय से खुशी फिर मनाएँ।
अभी आज ही शक्ति पहचान लें हम।
करें दूर अवसाद का जो घिरा तम।

हमें यह हमीं से मिलाता रहा है।
विजय पर्व संदेश लाता रहा है।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...