विजय पर्व संदेश लाता रहा है।
सदा ही हमें ये जगाता रहा है।
स्वयं के लिए शूल ही मात्र बो कर।
अभी जाग जाओ न देरी हुई है।
प्रचुर सम्पदा देख तेरी हुई है।
हमें सुध उसी की दिलाता रहा है।
विजय पर्व संदेश लाता रहा है।
उगे हैं दिशाओं-दिशाओं दशानन।
किया जिंदगी को कठिन क्षण व प्रति क्षण।
चलो आसुरी वृत्तियां हम भगाएँ।
वरण कर उचित न्याय की नीति लाएँ।
सदा शौर्य के गीत गाता रहा है।
विजय पर्व संदेश लाता रहा है।
न भयभीत होना गिरे हो अगर तुम।
घनेरे तिमिर में घिरे हो अगर तुम।
भरो नेह सत्वर सु-आशा दिए में।
जलाओ निराशा न लाओ हिये में।
हमें राह उज्ज्वल दिखाता रहा है।
विजय पर्व संदेश लाता रहा है।
दशहरा मनाएं दिवाली सजाएँ।
प्रफुल्लित हृदय से खुशी फिर मनाएँ।
अभी आज ही शक्ति पहचान लें हम।
करें दूर अवसाद का जो घिरा तम।
हमें यह हमीं से मिलाता रहा है।
विजय पर्व संदेश लाता रहा है।
*** डॉ. राजकुमारी वर्मा
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