Sunday 30 September 2018

यश या अपयश


बाज़ार में बिकते हैं आज
कीर्ति-ध्वज
यश-पताकाएं,
जितनी चाहें
घर में लाकर
सजा लें,
कुछ दीवारों पर टांगे
कुछ गले में लटका लें
नामपट्ट बन जायेंगे
द्वार पर मढ़ जायेंगे
पुस्तकों पर नाम छप जायेंगे
हार चढ़ जायेंगे
बस झुक कर
कुछ चरण-पादुकाओं को
छूना होगा
कुछ खर्चा-पानी करना होगा
फिर देखिए
कैसे जीते-जी ही
अपनी ही मूर्तियों पर
आप
अपने-आप ही हार चढ़ायेंगे।

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*** कविता सूद ***

Sunday 23 September 2018

कुछ दोहे



राज काज का चल रहा, जैसे तैसे काम। 
साधन का टोटा बहुत, कर से त्रस्त अवाम॥
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महँगाई का कुछ मिला, तोड़ नहीं जब हाय।
ध्यान हटाने को करें, नेता रोज उपाय॥ 
***
बाबा सोचे आजकल, नई नई नित युक्ति। 
उनको लक्ष्मी प्राप्त हो, भक्त जनों को मुक्ति॥ 
***
वही पुराने टोटके, साड़ी दारू नोट। 
देकर सभी चुनाव में, नेता मांगे वोट॥ 
***
सत्तर सालों बाद भी, निर्धन है मजबूर। 
मिटे ग़रीबी युक्ति वह, अब तक सबसे दूर॥ 
***
फिर घर घर जाने लगे, नेता देख चुनाव। 
किस विधि अबकी वोट का, पार करें दरियाव॥ 
***
ऐसा करें उपाय सब, शिक्षा बढे अपार। 
लक्ष्मी स्वयं पधार कर, दस्तक दें नित द्वार॥ 
***
*** गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' ***

Sunday 16 September 2018

अंजाम/परिणाम/नतीजा एवं समानार्थी शब्द



जो भला था कर ही डाला काम का सोचा नहीं
ज़िन्दगी में फिर किसी परिणाम का सोचा नहीं
*****
तय नतीजे पर पहुँचने का इरादा कर लिया
और छेड़ी जंग तो आराम का सोचा नहीं
*****
इस अकेली जान के थे सामने जब इम्तहां
बोलते दिल को सुना इहलाम का सोचा नहीं
*****
हर जगह तो तुम ही तुम थे और मैं विस्मय भरा
ढूंढने किस ओर जाता धाम का सोचा नहीं
*****
कौन सी धुन पे टिके हो दर्द इतना झेल कर
छेड़ती है मय मुझे इक ज़ाम का सोचा नहीं
*****
दायरे फैले हुए हैं सब सवालों के यहाँ
हल तलाशे और हर आयाम का सोचा नहीं
*****
खो के उसमें सुख मिला है वो मेरी पहचान अब
वो मुझे जैसे पुकारे नाम का सोचा नहीं

 
*** मदन प्रकाश ***

Sunday 9 September 2018

सार छंद


1-
झरनों में झरझर बहता है, कलकल करता पानी।।
और साथ में हरियाली भी, देती नई रवानी।।
माँ जैसी ही गोद प्रकृति की,लगती अतिशय प्यारी।
कितनी सुंदरतम मनभावन, सुषमा इसकी न्यारी।।
2-
रंग-बिरंगे पुष्प अनोखे, लता पत्र फल सारे।
कुदरत की सौगात मिली जो, बिखरे यहाँ नजारे।।
कहते वेद पुराण संत यह, ऋषि मुनि ज्ञानी ध्यानी।
ईश्वर की महिमा से निकले, पत्थर में भी पानी।।
3-
हमसे ही अनमोल सम्पदा, रखी न गई सँभाली।
धरती के भण्डारण को भी, किया हमीं ने खाली।।
मंगल ग्रह पर खोज लिया पर, मिला न हमको पानी।
छेड़छाड़ हो बंद प्रकृति से, और न हो मनमानी।।
4-
भाँति-भाँति के जीव-जंतु हैं, अगणित सर सरिताएँ।
तपोभूमि भारत की धरती, इसकी खुशी मनाएँ।।
मानव से जब मिली चुनौती, क्रोध प्रकृति को आया।
अपने अवरोधों का खुद ही, उसने किया सफाया।।
 
***हरिओम श्रीवास्तव***

Sunday 2 September 2018

एक गीत - नदियाँ



कल-कल करती नदियाँ गाती, माँ सम लोरी गान।
गरल पान करके भी नदियाँ, करती सुधा प्रदान।।


नदियों से ही नहरें निकलें, जिनसे सिंचित खेत।
ऊपजाऊ मिट्टी भी देखो, नदियों की ही रेत।।
कंकड़-पत्थर सभी यहाँ पर, सरिता के सोपान।
गरल पान करके भी नदियाँ, --------------।।


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नाले पोखर नहर सभी ही, नदियों की सौगात।
सागर को सरिता का पानी, मिलता है दिन-रात।।
बिन नदियों के नही जीविका, माने सभी किसान।
गरल पान करके भी नदियाँ, --------------------।।


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बिन श्रम के सरिता का पानी, कुदरत की ही भेंट।
नहा नदी में मनुज सदा ही, ले थकान को मेट।।
नदी किनारे शहर बसे है, खिलें जहाँ उद्यान।
गरल पान करके भी नदियाँ, -----------------।।


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*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

  शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी। किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी। ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई। बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई...