Sunday 30 June 2019

उनसे आँखें चार हुई थीं



पहली पहली बार हुई थीं
उनसे आँखें चार हुई थीं 


बिन मौसम ऋतुराज आ गया
महक उठी थीं मंद हवाएँ
भू से नभ तक पुष्प खिल उठे
लहक उठीं तरु की शाखाएँ 


आँखें उनकी सागर दिखतीं
नज़रें मधुर फुहार हुई थीं


कण-कण नवल कांति से चमका
नई-नई-सी लगीं दिशाएँ
देवलोक भू पर उतरा ज्यों
छाईं हिय पर मदिर घटाएँ


सभी कोशिशें चेतनता की
उस पल में बेकार हुई थीं 


शशि ने रजनी के आँचल में
सतरंगी तारे टाँके थे
भोर-ओट से उचक-उचक कर
स्वप्न सैकड़ों ही झाँके थे


परी कथाएँ बचपन की ज्यों
सारी ही साकार हुई थीं


*** प्रताप नारायण ***

Sunday 23 June 2019

जीवन के रंग


सात रंग है स्वप्न के, देखे कोई धीर।
चलाचली के जगत में, कोई एक कबीर॥


बोल दिया खुद चित्र ने, अपना पूरा नाम।
दर्पण मुझको ये कहे, कलमकार का काम॥


विधना ने जो लिख दिया, धरा उकेरे चित्र।
अपने रेखा चित्र को, खुद विस्तारो मित्र॥


जीव देह में रंग का, सुन्दर ये चितराम।
कूँची ने यूँ लिख दिया, जीवन है अभिराम॥


दुनियाँ बहुत विचित्र है, खींचे कितने चित्र।
तिलक करे तब आप के, मतलब निकले मित्र॥


*** जी.पी. पारीक ***

Sunday 16 June 2019

चरण सोरठा छन्द



देश हमारा भाव, टुकड़ा नहीं जमीन का।
इससे हमें लगाव, मूरत दिली यकीन का॥1॥


करें देश को याद, रहते जब परदेश हम।
रहें शाद आबाद, मुल्क करे सब दूर ग़म॥2॥


राष्ट्रगान है मान, राष्ट्र हमारा नेक है।
देश हमारी शान, भिन्न वेश ध्वज एक है॥3॥


जन्मभूमि है जान, उसके लिए मरें जियें।
बनें नेक इंसान, चषक एकता का पियें॥4॥


देश प्रेम का रोग, सिर पर चढ़ कर बोलता।
हृदय बसा यह योग, नहीं मृत्यु से डोलता॥5॥


भारत देश महान, ज्ञान गुणों से है भरा।
मातृभूमि पहचान, जाने सारी यह धरा॥6॥


सब लोकों में श्रेष्ठ, जन्मभूमि अरु मात है।
कहते इसको ज्येष्ठ, संस्कृति की यह बात है॥7॥


*** कुन्तल श्रीवास्तव ***

Tuesday 11 June 2019

परहित सरिस धर्म नहिं भाई




परहित सरिस धर्म नहिं भाई, ग्रन्थों लिखी नजीर सखे।
ताल-तलैया बहती नदिया, पीती कब निज-नीर सखे।।


पीर-परायी जिन आँखों में, बहती गंगा-नीर सखे।
नीर क्षीर में रमा रमा पति, मंदिर बना जमीर सखे।।
रोम रोम में कोटि-देवता, थान जमाकर रास करें,
भाग्य पढ़े क्या उसका गुनिया, हाथों लिखी लकीर सखे।।1।।


भाग्य बाँचने वाला अक्सर, मिलता सदा फकीर सखे।
कर्मवीर ही निज हाथों से, लिखता निज तक़दीर सखे।।
छेनी ले कर दान नेत्र जब, संगतराश करे प्रमुदित,
मंदिर में भगवन की तब-तब, मुस्काती तस्वीर सखे।।2।।


सदा स्वार्थवश स्वार्थी रमते, डाल पैर जंजीर सखे।
काक दृष्टि-सी भाती जिनको, अपनी ही जागीर सखे।।
मन में रखते राग-द्वेष वह, चेहरे पर स्मित गहरी,
पीर पराई सुई बराबर, दुख अपना शमशीर सखे।।3।।


*** गोप कुमार मिश्र ***

Sunday 2 June 2019

तब हो हृदय विभोर (सरसी छन्द आधारित गीत)


नयन मौन हो देख रहे हैं, घूम-घूम चहुँ ओर।
भरी दुपहरी सड़कों पर हैं, सन्नाटे का शोर।।


घायल की हो शीघ्र चिकित्सा, पहुँचाये पर कौन।
क्षणभर में ही चीखें सारी, धारण करती मौन।
रोगी वाहन नहीं पहुँचता, जब तक होती मौत।
देख तमाशा चलते बनते, सन्ध्या हो या भोर।
नयन मौन हो देख रहे हैं, ---- - - - - -


मौन शब्द की ताकत जानें, वहीं समझते अर्थ।
मौन साधना करें वही जो, करें न ऊर्जा व्यर्थ।
पौ फटते ही दौड़े वाहन, देते चुप्पी तोड़।
कुहू कुहू के शब्दों से ही, नाचे मन का मोर।
नयन मौन हो देख रहे हैं, - - - - - - -


बढ़ा प्रदूषण कोलाहल का, समाधान गम्भीर।
खो देता है धैर्य आदमी, चुभे शोर का तीर।
पर्यावरण प्रेम का हो जब, बढ़े जगत की शान।
स्वर्णिम हो अब पुनः सदी ये, तब हो हृदय विभोर।
नयन मौन हो देख रहे हैं, सन्नाटे का शोर।

नयन मौन हो देख रहे हैं, - - - - - - -

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला ***

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

  शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी। किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी। ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई। बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई...