Sunday 31 December 2023

बढ़े कदम संसार में - एक गीत

 

विगत वर्ष से अनुभव लेकर, बढ़े कदम संसार में।
नये साल संकल्प करें हम, दीप जले हर द्वार में।।

कार्य योजना बने वर्ष की, क्या करना इस साल में।
लक्ष्य किये अपने निर्धारित, पूर्ण करे हर हाल में।।
संकल्प दिलाते जोश हमेशा, रखना सदा विचार में।
विगत वर्ष से अनुभव लेकर, बढ़े कदम संसार में।।

सब्ज-बाग झूठे दिखलाते, फँसना नहीं दुराव में।
श्रम से चमन खिलाये उनके, रहे सदा बर्ताव में।।
सबका साथ निभाने का ही, रिश्ता हो व्यवहार में।
विगत वर्ष से अनुभव लेकर, बढ़े कदम संसार में।।

नहीं निराशा में दिन बीते, हर पल बीते काम में
संकल्पों को पूरा करने, कमी न हो अंजाम में।।
सुधिमन से हम नये वर्ष में, बहे सुगम रस धार में।
विगत वर्ष से अनुभव लेकर, बढ़े कदम संसार में।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday 24 December 2023

चकोर सवैया

 

सूरज की किरणें धरती पर खेल रहीं अब सागर संग।
ताल-नदी-सरसी जल में उतरा करने रवि शीतल अंग॥
उर्ध्वमुखी किरणें अति हर्षित दीपित पर्वत-वृक्ष-मतंग।
अंचल भूधर का निखरा बिखरा धरती पर स्वर्णिम रंग॥1॥

मौसम के परिवर्तन से चलती रहती यह सृष्टि तरंग।
वृक्ष कलेवर को बदलें तज पल्लव पीत-विवर्णित-भंग॥
फूल खिलें कब रंग-बिरंग सदैव सचेत अनादि अनंग।
रोज चले रुकता न कभी ऋतु-काल नियामक अंग पतंग॥2॥

निर्झर-सी कल-नाद करे बहती सरि की अविराम तरंग।
पर्वत-जंगल से गुजरी हिय वारिधि से अभिसार-उमंग॥
पेड़-नदी-नभ-सूरज से प्रतिबिंबित है सरि रंग-बिरंग।
निर्मल दर्पण-सी सरिता हिय से करती सब मोह असंग॥3॥

*** कुन्तल श्रीवास्तव

Sunday 17 December 2023

पौष माघ के तीर - एक गीत

 

बींध रहे हैं नग्न देह को, पौष-माघ के तीर,
भीतर-भीतर महक रहा पर,ख्वाबों का कश्मीर।

काँप रही हैं गुदड़ी कथड़ी, गिरा शून्य तक पारा,
भाव कांगड़ी बुझी हुई है, ठिठुरा बदन शिकारा,
मन की विवश टिटहरी गाये, मध्य रात्रि में पीर।

नर्तन करते खेत पहनकर, हरियाली की वर्दी,
गलबहियाँ कर रही हवा से, नभ से उतरी सर्दी,
पर्ण पुष्प भी तुहिन कणों को, समझ रहे हैं हीर।

बीड़ी बनकर सुलग रहा है, श्वास-श्वास में जाड़ा,
विरहानल में सुबह-शाम जल, तन हो गया सिंघाड़ा,
खींच रहा कुहरे में दिनकर, वसुधा की तस्वीर।

*** भीमराव 'जीवन' बैतूल

Sunday 10 December 2023

संग तुम्हारे - एक गीत

संग तुम्हारे हमने सुभगे, छप्पन वर्ष बिताए।
तुम्हें देख कर ऐसा लगता,अभी ब्याह कर लाए।।

तेरे नैनों का महाकाव्य, पढ़ते जीवन बीता।
हृदय-सिंधु का प्रेम-कोष कब, हुआ तुम्हारा रीता।।
जीवन-सर के सरस सलिल में, मनहर कंज खिलाए।
संग तुम्हारे हमने सुभगे , छप्पन वर्ष बिताए।।

खिले प्रसून सदा मन- कानन, रहती सतत बहारें।
'चंद्र-सरोज' सुभग वनमाली, जीवन बाग सॅंवारें।।
जहाॅं कहीं भी घिरी घटाऍं, आशा-दीप जलाए।
संग तुम्हारे हमने सुभगे, छप्पन वर्ष बिताए।।

'चंद्र' बधाई देता खुद को, पाकर साथ तुम्हारा।
शक्ति बिना शिव सदा अधूरा, कुछ भी नहीं हमारा।।
सुख का सागर जहाँ लहरता, कैसे शोक सताए।
संग तुम्हारे हमने सुभगे, छप्पन वर्ष बिताए।।

*** चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'

Sunday 3 December 2023

प्रेम पगी बगिया में कोई - गीत

 

मधुर मधुर अनुगूँज भरे जो, अनहद छेडे़ तान।
प्रेम पगी बगिया में कोई, गीत लिखे उन्वान।

नाच उठे मन सुधबुध खोकर,
रोम-लोम को भेद।
अमिट छाप से सरस करे तन,
मिटा हृदय के खेद।
कातर मन को मिल जाता है, जैसे ये अनुदान।
प्रेम पगी बगिया में कोई, गीत लिखे उन्वान।

प्रेम प्रकृति की अनुपम रचना,
मिलन-विरह उद्वेग।
खड़ी वासना कठिन डगर है,
छद्म भरे अतिरेक।
दीन-हीन छल कुटिल कामना, पंथ नहीं आसान।
प्रेम पगी बगिया में कोई, गीत लिखे उन्वान।

लता प्रेम की शाख धरे ज्यों,
गाए मन अवधूत।
जोगन काया निर्गुण निर्मल,
भावी व्यथा न भूत।
लिखे प्रगल्भा सजग लेखनी, भ्रमर-सुमन के गान।
प्रेम पगी बगिया में कोई, गीत लिखे उन्वान।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Sunday 26 November 2023

माँ भवानी - एक गीत

 

माँ भवानी जगत जननी बेटियों में वास तेरा।
नव स्वरूपा कंज बदना भद्रकाली न्यास तेरा।

कामिनी शिवगामिनी तनु दामिनी जग स्वामिनी तू।
लावनी अति पावनी शुचि छावनी मधु यामिनी तू।
शक्ति रूपा मृदुल आभा सुहागन मुख हास तेरा।
नव स्वरूपा कंज बदना भद्रकाली न्यास तेरा।

धारती संवेदना का अंश नारी है धरा पर।
जन्म देती पालती शिशु विषमताओं को हरा कर।
पा गई करुणा सहज नारी सुभग आभास तेरा।
नव स्वरूपा कंज बदना भद्रकाली न्यास तेरा।

मातु मेरी गंगजल निर्मल, बलाओं से बचाती।
सालती संस्कार मन में ज्योति अंतस की सजाती।
है दिया उपहार माँ का भक्त मैं हूँ दास तेरा।
नव स्वरूपा कंज बदना भद्रकाली न्यास तेरा।

*** सुधा अहलुवालिया

Sunday 19 November 2023

ईश्वर - मुक्तक द्वय

 

ज़िन्दगी की राह जब दुख दर्द से हो चिप चिपा,
याद करते हैं उन्हें फिर, माँगते उनकी कृपा,
एक एकाकार मानो, या हज़ारों रूप दो,
ईश की परिकल्पना में, गूढ़ चिंतन है छिपा।
भक्ति का सित अश्रु भर कर आँख रूपी दीप में,
प्रेम बाती नित जलाऊँ तम घिरे हिय द्वीप में
हे प्रभो मन द्वार सँकरा हो गया भव कीच से,
भाव द्रव तू रिक्त उर में डाल दे रख कीप में।

*** शशि रंजन 'समदर्शी'

Sunday 12 November 2023

दीपोत्सव त्योहार - गीत

 

त्रयोदशी से पाँच दिवस का, दीपोत्सव त्योहार।
तन-मन होगा स्वच्छ तभी जब, मन से मिटे विकार।।

ज्योतिर्मय कर दीपक अपना,सदा करे सद्कर्म।
अंधकार में खुद रहकर भी, सदा निभाये धर्म।।
नहीं प्रदूषित करें नगर को, होगा तब उपकार।
त्रयोदशी से पाँच दिवस का, दीपोत्सव त्योहार।।

मन के दूर विकार सभी हो, तभी तमस का नाश।
दीनों के घर करें उजाला, फैले ख़ूब प्रकाश।।
आतिश बाज़ी छोड़ दीन को, बाँटें कुछ उपहार।
त्रयोदशी से पाँच दिवस का, दीपोत्सव त्योहार।।

करे सभी घर वैभव लक्ष्मी, ख़ुशियों की बरसात।
गोवर्धन दिन मिले कृष्ण से, रक्षा की सौगात।।
भाई दूज बहन भाई से, करे प्रेम इजहार।
त्रयोदशी से पाँच दिवस का, दीपोत्सव त्योहार।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday 5 November 2023

जाना तो उस पार - एक गीत

 

मैं का मद ऐसा सर चढ़ता, इठलाते बल खाते हैं।
जाना तो उस पार सभी को, समझ नहीं क्यों पाते हैं।।

तेरा- मेरा तू-तू मैं-मैं, जग इसमें ही हारा है।
बीच भंवर में डगमग नैया, कोसों दूर किनारा है।।
माँझी की कोई कब सुनता, निज पतवार चलाते हैं।
जाना तो उस पार सभी को, समझ नहीं क्यों पाते हैं।।

जिसको देखो उलझा है वह, इस दुनिया के मेले में।
कोई रोता बीच सड़क पर, रोते कई अकेले में।।
ईश्वर का यह खेल समझ लो, नासमझे पछताते हैं।
जाना तो उस पार सभी को, समझ नहीं क्यों पाते हैं।।

कितना भी बलशाली कोई, जीवन आना-जाना है।
आशा और निराशा का यह, सारा ताना-बाना है।।
मानव रूप मनुज क्यों पाया, क्या खुद को समझाते हैं!
जाना तो उस पार सभी को, समझ नहीं क्यों पाते हैं।।

*** विश्वजीत शर्मा 'सागर'

Sunday 29 October 2023

ऋतु अति हरसित

 

निशि अरु दिवस दिखत अति सुख कर।
उदित अरुण झट चल कर पथ पर।

सखि न इधर रुक उस थल पर चल।
ऋतु पिय मिलन सरस मधु उस पल।

मधुकर सरिस मधुर रस भर-भर।
हृदय-हृदय मिल बतरस कर-कर।

सुभग मनहरण चितवत हरियल।
जस विलसत सर खिलत कमल दल।

शुक पिक भ्रमत नचत अति हरसित।
विकसत सुमन नलिन सखि सर सित।

कुहु-कुहु कह पिक सबहि मन हरति।
प्रमुदित जन-मन विहँसत निरखति।

रमण करत मन थकित न धक-धक।
ऋतु अति सुभग हरत मन भरसक।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा ***

Sunday 22 October 2023

आदिशक्ति

 

आदिशक्ति स्वरूप माता सिद्धदात्री पावनी तू।
शैलपुत्री कालरात्री स्कंदमाता लावनी तू।

कात्यायनी अरिहंतनी कुष्मांडा सिंहवाहिनी।
रक्तबीजाश्वरी माता ब्रम्हचारिणी उपासिनी।
अष्टभुज आयुध सजाए शक्तिरूपा कामिनी तू।
आदिशक्ति प्रबुद्ध माता सिद्धदात्री पावनी तू।

माँ शिवानी त्रिपुरसुंदरि मुण्ड माला साजते हैं।
पाँव बिछुआ हाथ कंगन कर्ण किंकिण बाजते हैं।
सुर असुर ध्यावें अहर्निश वत्सला माँ सावनी तू।
आदिशक्ति स्वरूप माता सिद्धदात्री पावनी तू।

लाल चूनर में सजी माँ नथ हिले ज्यों पवि दमकती।
चन्द्रमुख बीड़ा रचाए घाघरा लहरी गमकती।
है वृहत भवसिन्धु माया धूप जीवन छावनी तू।
आदिशक्ति स्वरूप माता सिद्धदात्री पावनी तू।

*** सुधा अहलुवालिया

Sunday 15 October 2023

चामर छंद - प्रदत्त चित्र पर

 

कीच में पला बढ़ा सुनेह नीर का मिला।
प्राप्त पात का सुसंग श्वेत पद्म है खिला।।
अंबु-अंक शुभ्र कंज ताल मध्य शोभता।
शांति का प्रतीक स्निग्ध नैन सर्व लोभता।।

कंज पंक - अंबु से सदैव राग त्यागता।
सत्य शुभ्र पद्म-सा तभी विवेक जागता।।
स्वेत अब्ज-सा चरित्र स्निग्ध सर्व कीजिये।
सत्य निष्ठ कर्म निर्विकार मान लीजिए।।

*** चंद्रपाल सिंह "चंद्र"

Sunday 8 October 2023

वृद्ध मानसिकता

 

एक बोझिल मन
थका हारा सा बार बार
चला जाता है अतीत में
कुछ गड़े मुर्दे उखाड़ने
कुछ पुरानी यादें ताज़ा करने
कुछ पुरानी बातों को दोहराने
कुछ पुराने फलसफों से
रुबरु होने
ताकि अतीत के झरोखे से
मन की पीड़ा को स्वर देने की
एक मुकम्मल कोशिश की जा सके
हाँ ,यह तो तय है कि इस तरह बोझिल मन की बातें
सुनी जा सकती हैं/समझी जा सकती हैं
और तदनुकूल उपाय किए जा सकते हैं/हाँ यह मेरा अनुभव है कि
बोझिल मन के किसी कोने में दबी कुछ
अपेक्षाएं बार बार
बाहर आने को अकुलाती हैं
वे नहीं चाहतीं है कि
इस आपा धापी में कुछ ऐसा हो जाये जो
आगे के लिए नासूर बन जाये और फिर
भुगतनी परे ताजिंदगी
एक किस्म की कुंठा/एक किस्म की पीड़ा
जिसका इलाज महंगा
होने के साथ साथ
लाईलाज भी हो
क्या वृद्ध मानसिकता इसी को कहते हैं?

*** राजेश कुमार सिन्हा

Sunday 1 October 2023

गांधी जयन्ती - विशेष

 

गांधी जयन्ती आज, आज बन्द राज काज॥
राष्ट्रपिता राष्ट्र शान, विश्व सकल करे मान॥1॥

सत्य कर्म राष्ट्र धर्म, जीवन का समझ मर्म।
मोह लोभ छोड़ राग, चल पड़े डर को त्याग॥2॥

सत्य अहिंसा विशेष, शस्त्र धार सत्व वेष।
राह चुना असहयोग, जग में चकित थे लोग॥3॥

हुआ नहीं रक्तपात, विजयी हुआ कृश गात।
याद करें वही रात, शासक को मिली मात॥4॥

गांधी के तीन मंत्र, मान हुए हम स्वतंत्र।
प्रिय हमें है गणतंत्र, भारत का लोकतंत्र॥5॥

गांधी जयन्ती धूम, उत्सव मनायें झूम।
सत्य प्रेम दया धर्म, अपना लें मान कर्म॥6॥

कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र.

Sunday 24 September 2023

थके नयन

 

निशा के श्यामल कपोलों पर
साँसों ने अपना आधिपत्य जमा लिया।
झींगुरों की लोरियों ने
अवसाद की अनुभूतियों को सुला दिया।
स्मृतियाँ किसी खिलौने की भाँति
बेबसी के पलों को बहलाने का
प्रयास करने लगीं।

आँखों की मुंडेरों पर
बेबसी की व्यथा तरल हो चली।
आँखों के बन्द करने से कब दिन ढला है।
मुकद्दर का लिखा कब टला है।
मृतक कब पुनर्जीवित हुआ है।
प्रतीक्षा की बेबसी के सभी उपचार
किसी रेत के महल से ढह गए।

थके नयन
विफलता के प्रहारों को सह न सके,
प्रतीक्षा की विफल रात्रि आँखों में कट गई।
बेबसी स्मृति शूलों पर करवटें बदलती रही।
दृगजल कपोल पृष्ठ पर
बेबस पलों की व्यथा लिख गए।

*** सुशील सरना

Sunday 17 September 2023

"युग्म शब्द" - जन्म-मरण (दोहे)

 

जन्म-मरण संसार में, निस-दिन का है काम।
आज जन्म जिसने लिया, कल जाये प्रभु धाम॥1॥

जीव-जन्म बन्धन सदा, मरण क्षणिक है मुक्ति।
जन्म-मरण से मुक्ति की, मानव खोजे युक्ति॥2॥

फल वैसे मिलते उसे, जिसके जैसे कर्म।
मुक्ति मार्ग कैसे मिले, नहीं निभाये धर्म॥3॥

मानवता का धर्म ही, जिसने दिया बिसार।
स्वर्गलोक की कामना, किया न लोकाचार॥4॥

जन्म दिया जिसने तुम्हें, उसे गये थे भूल।
आज मृत्यु के द्वार पर, तुम्हें चुभेंगे शूल॥5॥

शाश्वत जीवन मृत्यु है, शाश्वत यही प्रसंग।
क्षणभंगुर जग जानते, पर न मोह हो भंग॥6॥

मोह-द्वेष का त्याग ही, जीव-मुक्ति आधार।
ईश-चरण अनुरक्ति से, जन्म-मरण उद्धार॥7॥


कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र

Monday 11 September 2023

जन-जन के श्याम बिहारी - एक गीत




चित्त-चोर सब कहें गोपियाँ, जन-जन के श्याम बिहारी।
मुग्ध करे मन बजा मुरलिया, सबके वह कृष्ण मुरारी।।

नटखट कान्हा कहे यशोदा, मिट्टी खाकर झुठलाते।
मुँह खुलवाती जब कान्हा से, मुँह में ब्रहमांड दिखाते।।
माखन चोर कहें सब सखियाँ, जाती उनपर बलिहारी।
मुग्ध करे मन बजा मुरलिया, सबके वह कृष्ण मुरारी।।

नित्य दही माखन की हाँडी, सखियाँ छीके पर टाँके।
फिर कान्हा की बाँट निहारे, ओट लिए छुपकर झाँके।।
सन्त-पुरोधा जपते कहकर, केशव माधव गिरिधारी।
मुग्ध करे मन बजा मुरलिया, सबके वह कृष्ण मुरारी।।

मधुवन में आ कृष्ण-राधिका, जब आकर रास-रचाते।
ब्रह्मा शिव भी भेष बदलकर, उन्हें देख मन हर्षाते।।
जिसे त्रिलोकी नाथ कहे सब, वह चक्र सुदर्शन धारी।
मुग्ध करे मन बजा मुरलिया, सबके वह कृष्ण मुरारी।। 

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Monday 4 September 2023

फलित साधना ध्यान से - एक गीत

 



शिवसंकल्प लिए अभिमंत्रित, शुद्ध हृदय आह्वान से।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।

श्रेष्ठ सदा ही संस्कृति अपनी
भ्रमित करे मनस्वार्थ है।
प्राणदायिनी मंत्र ऋचाएँ,
पुण्य पंथ परमार्थ है।

भस्मीभूत करें कटुता को, दूर रहें व्यवधान से।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।
चंचल माया के खेमें में
लगी होड़ दिन रात है।
जग व्यापी तृष्णा जो ठहरी,
झरते उल्कापात है।

यज्ञ भस्म से शुद्ध दिगंतर, करिए जन कल्याण से।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।
प्राच्य अंशु से सुखदा संचित,
योग भोग अविकार हों।
धन धान्य से भरी बखारियाँ,
स्वप्न सभी साकार हों।

पंचभूत से निर्मित काया, हित जीवन अनुदान से ।
स्वाहा स्वधा धूम्र विभूषिता, फलित साधना ध्यान से।

डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Sunday 27 August 2023

कलाधर घनाक्षरी छंद

 

अंग-अंग में जड़े हुए अनेक रंग पुष्प, शृंग से बने किरीट शीश धारती।
देश-प्रांत में मनोहरी हरीतिमा विखेर, जीव-जंतु हेतु नित्य नीर-क्षीर वारती।।
मंद संदली समीर गा रही विहान गीत, सिंधु-उर्मियाॅं सदैव पाद-सी पखारती।
जन्मभूमि स्वर्ग के समान 'चंद्र' देख नित्य, मुक्त कंठ से करे नमामि मातु भारती।।

*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

Sunday 20 August 2023

गीत - यह तो प्रभु की माया है

 

जग सच्चा या झूठा बोलो, समझ कौन यह पाया है।
पड़ो न इस पचड़े में मानव, मरघट ने समझाया है।।

बचपन में सुंदर लगता था, तब कहते यह जग सच्चा।
खेल-कूद में जग को झूठा, नहीं समझता था बच्चा।।
राग-द्वेष जब बढ़ा हृदय में, भरमायी तब काया है।
जग सच्चा या झूठा बोलो, समझ कौन यह पाया है।।

कहीं द्वार पर सुख के बदले, घड़ी दुखों की आ जाये।
लगे भयावह मिथ्या यह जग, दुख की बदली जब छाये।।
सच्चा-झूठा भेद समझ मन, यह तो प्रभु की माया है।
जग सच्चा या झूठा बोलो, समझ कौन यह पाया है।।

सच मानो तो मिथ्या जग ने, मानव मन को भरमाया।
झूठा तो चञ्चल मानव मन, गीता में ये समझाया।।
झूठ संगठित सच पर हावी, जग में रहता आया है।
जग सच्चा या झूठा बोलो, समझ कौन यह पाया है।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...