Sunday 30 July 2023

मत्तगयंद सवैया छंद

 


श्यामल पंकज रूप मनोरम
कुंचित केश सुहाय रहे हैं।
मोर पखा शिर हार गले शुचि
कोटि मनोज लजाय रहे हैं।
भूमि धरे मुरली मन मोहन
माखन खाय गिराय रहे हैं।
आवत देखि यशोमति ऑंगन
कंज यथा मुसकाय रहे हैं।।
*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

Sunday 23 July 2023

साजन तुम हो छलिया - एक गीत

 


आवन कह के भी ना आये, मनमोहन मन बसिया।
जाओ तुमसे मैं ना बोलूँ, साजन तुम हो छलिया॥

सर्दी बीती गर्मी बीती, अब आयी ऋतु वर्षा।
रिमझिम-रिमझिम बरसे सावन, सबका जियरा हर्षा॥
सखियों सँग जब झूलूँ झूला, हो उन्मन मन रसिया।
जाओ तुमसे मैं ना बोलूँ, साजन तुम हो छलिया॥1॥

तुम हो झूठे कान्हा! सारी, बात तुम्हारी झूठी।
चाहे बातें लाख बनाओ, अब है राधा रूठी॥
पल-पल राह निहारत बीते, निर्मोही सब रतिया।
जाओ तुमसे मैं ना बोलूँ, साजन तुम हो छलिया॥2॥

मिथ्या सारे वचन तुम्हारे, सुन-सुन कर मैं हारी।
सत्य-असत्य न जाना-परखा, यह दिल तुम पर वारी॥
यह सावन भी बीता जाये, आये नहि साँवरिया
जाओ तुमसे मैं ना बोलूँ, साजन तुम हो छलिया॥3॥

कुन्तल श्रीवास्तव
कोलाबा, मुम्बई.

Sunday 16 July 2023

सच्चा-झूठा - गीत

 


सच्चा-झूठा भाव धरे मानव जीता है।
धर्म कर्म परमार्थ नेह मानस गीता है।

सत्य झूठ की रेख स्वयं ही गढ़ते हैं हम।
नित्य कसौटी नव्य पटल पर कढ़ते हैं हम।
आँखों देखी बात कभी झूठी हो जाती।
झूठी बातों में सच्ची घटना खो जाती।
श्वेत श्याम पतवार नाव डगमग नीता है।
सच्चा-झूठा भाव धरे मानव जीता है।
सच्ची-झूठी चालों में जीवन खो जाता।
एक झूठ सौ झूठी बेलों को बो जाता।
काँधो पर ले बोझ बुद्धि चक्कर खाती है।
कुंठित पथ पर विकृत भावों की थाती है।
सत्य पद्म किंजल्क पवन लय में प्रीता है।
सच्चा-झूठा भाव धरे मानव जीता है।

सत्य शूल बन चुभ जाए वह सत्य गरल है।
देता जीवन त्राण झूठ वह सुधा तरल है।
स्वार्थ विरत हो झूठ सत्य कहलाता है वह।
करुणा कान्हा की सुनीति सहलाता है वह।
सत्य प्रवेता अश्व मनों के रजु सीता है।
सच्चा-झूठा भाव धरे मानव जीता है॥

*** सुधा अहलुवालिया

Sunday 9 July 2023

एक गीत - सुखद लगे परिवेश

 


मेघदूत यायावर लेकर, ख़ुशियों का संदेश।
शृंग पार से आया न्यासी, सुखद लगे परिवेश।

श्वेत-श्याम में उलझे नैना, कजरी के शृंगार।
चहुँदिक डोले बादल छौने, क्या मधुबन क्या थार।
दूब दूब पर मोती मानिक, भरे धरा के गोद,
पाकर आँचल को हुलसाये, अम्बर से सित धार।
उमड़ घुमड़ नभ से कजरारी, रही सँवारे केश।
-------------सुखद लगे परिवेश -------------

सावन-भादों की हरियाली, चंचल लगे अधीर।
घन घोर घटा घननाद घने, चमके चपला तीर।
तीज सावनी हर हर बम बम, शिव भक्तों के धाम,
पर्व सुखद हो रक्षाबंधन, कवच हमारे वीर।
नभ से आतुर चंदा झाँके, चैन नहीं लवलेश।
-------------सुखद लगे परिवेश -------------

सरस हो उठी बोझिल अवनी, जन-जन में उल्लास।
नभ से थल तक अनुपम रचकर, वैभव चातुर्मास।
मधुर मधुर अम्लान साधना, हृदय भरे अनुराग,
नित आये प्रभु सुखद सबेरा, लता करे अरदास।
थिरक उठे पग मन मयूर के, विनय सुनों भुवनेश।
-------------सुखद लगे परिवेश -------------

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Sunday 2 July 2023

पर्व/त्योहार/ईद - दोहे

 

धर्म और त्योहार हैं, भारत की पहचान।
हैं अनेक पर एकता, सबका ही सम्मान।।

सबके अपने पर्व हैं, दें उमंग उत्साह।
तमस दूर मन का करें, हो प्रकाशमय राह।।

समरस जीवन तो कभी, आया करे न रास।
मात्र एक त्योहार ही, कर देते दिन खास।।

नव उमंग उल्लास नव, नवल नवल परिधान।
बर्फी खीर सेवइयां, भिन्न भिन्न मिष्ठान्न।।

गले मिलें फिर प्रेमवश, देते हैं उपहार।
पास सिमटकर आ गया, हो जैसे संसार।।

प्रेम और रिश्ते तभी, होते हैं मजबूत।
मात्र एक त्योहार ही, हैं प्रत्यक्ष सबूत।।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...