Sunday 21 April 2024

रीति निभाने आये राम - गीत

 

त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम।
निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।।

राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल सा हो मन भाव।
करे आचरण यदि मर्यादित , रहे न मन में कहीं दुराव।
राम राज्य आदर्श सभी का, सत्य बताने आये राम।
निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।।

कठिनाई का करें सामना, वन वन भटके सीता राम।
ऊँच-नीच का भेद मिटाने, करे मित्रता सबसे राम।
श्रद्धा से छलकाकर आँसू, कलुष मिटाने आये राम।
निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।।

चेतन और अचेतन जग में, कण कण व्यापे जो संसार।
जीवन का शुभ मन्त्र राम है, अखिल सृष्टि के है आधार।
राम नाम से पत्थर तिरते, मन्त्र सिखाने आये राम।
निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday 14 April 2024

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

 

शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।
किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी।

ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई।
बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई।
अमा रात्रि भी नहीं भर्त्सना योग्य कहीं।
भले पूर्णिमा खिले ज्योत्स्ना पूर्ण वहीं।
कवियों हित होना है मण्डन शेष अभी।
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।

उषा मधुर मुस्कान बिखेरे जग के हित।
अरुण रंग लालिमा लुटाए लेकिन मित।
अमृत वेला आनन्दित कर दे मन को।
नवल जागरण और संचरण दे तन को।
भासमान दिनकर का वन्दन शेष अभी।
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।

फूलों से मकरन्द अभी है चुआ नहीं।
सम्प्रति अक्षत रहे किसी ने छुआ नहीं।
पारदर्शिता तुहिन कणों से झाँक रही।
शुचिता पावनता की कीमत आँक रही।
अमल धवल शुचि प्रेम निमज्जन शेष अभी।
शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

Sunday 7 April 2024

वह मित्र होता है - गीत

 

मान देता है सदा जो हर घड़ी वह मित्र होता है।
पुष्प मन से गंध चुन मन सींच दे वह इत्र होता है।

बिम्ब अपना सा लगे जब अन्य की स्वर साधना लय में।
जब किसी के आचरण में निज प्रभा घुलने लगे मय में।
शुद्ध निश्छल भाव से मन में पिघल कोई बुला जाए।
है सखा विपदा पड़े तो उस घड़ी में पास आ जाए।
मौन रह मन की उदासी में उतर नव चित्र होता है।
बालपन में माँ सखा बन करुण रस को सींचती रहती।
मौन भाषा हो पिता की युवानी भी रीझती रहती।
दोस्त हो जाते युगल मन प्रेरणा निज नेह को सेते।
जीवनी की नाव सुख दुख की लहर के मध्य में खेते।
भावना हो प्रीति प्लावित आचरण सुपवित्र होता हैं।

पेड़ पौधे नदी पोखर झील झरने निर्मल दिशाएं।
उच्च शिखरों पर घुमड़ते खण्ड बादल मंजुल हवाएं।
पक्षियों की चहचहाहट पालतू पशु दोस्त से होते।
ये न हों तो जीवनी में हम मनस संवेदना खोते।
मेल से हैं गीत के रँग मित्र गुण सुचरित्र होता है।
मान देता है सदा जो हर घड़ी वह मित्र होता है।

*** सुधा अहलुवालिया

Sunday 31 March 2024

जीवन की गाड़ी - एक गीत

 

चिंता और उदासी लादे, जीवन की गाड़ी चलती।
लेकिन अंतस गह्वर में तो, लौ आशा की ही जलती।।

थका मुसाफिर मंजिल ताके, चैन नहीं उसको आता।
पाँव बढ़ाता जब साहस से, सफल तभी वह हो पाता।।
कर्महीन तो बैठे - बैठे, मंजिल के सपने देखे।
दुर्गम होगा पथपर चलना, बात यही उसको खलती।।

जब भी आती दुख की आँधी, तहस-नहस सुख कर देती,
नेह -स्नेह की पावस आ कर, सहज हरितिमा भर देती।।
निर्विकार तकती आँखों में, तब सुधियाँ नर्तन करती,
दिन-दोपहरी चलते चलते, मृत्यु वरन करके पलती।।

अपने किये कराये का जब, गुणा - भाग मानव करता,
भयभीत हुआ वन में जैसे, कदम-कदम वह है रखता।
जीवन बन जाता तब योगी, श्वास-श्वास बनके मोती।
समझो मानव कर्म इसे ही, आशा कभी नहीं गलती।।
*** साधना कृष्ण

Sunday 24 March 2024

छंद सार (मुक्तक)

 

अलग-अलग ये भेद मंत्रणा, सच्चे कुछ उन्मादी।
राय जरूरी देने अपनी, जुटे हुए हैं खादी।
किसे चुने जन-मत आक्रोशित, दिखा रहे अंगूठा,
दर्द सभी का अपना होगा, सुधी बने प्रतिवादी।

कहें सयाने लोग अजूबे, अपनी विगत कहानी।
बीती बातें सीख पुरानी, लगती हुई रवानी।
मंत्र मुग्ध जो सुनता आया, सधे न सच्चा झूठा,
प्राणवान हो संस्कृति अपनी, नहीं चले मनमानी।

एक रंग में अभ्र गगन पर, कहते काले भूरे।
देगा पानी ये गुणधानी, नयन पारखी घूरे।
प्रकृति आपदा झेलें हम सब, परिवर्तन बलशाली,
सही मशवरे की अनदेखी, गिरते सुखद कँगूरे।
*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Sunday 17 March 2024

रस्म-ओ-रिवाज - एक ग़ज़ल

 

रस्म-ओ-रिवाज कैसे हैं अब इज़दिवाज के
करते सभी दिखावा क्यूँ रहबर समाज के

आती न शर्म क्यूँ ज़रा माँगे जहेज़ ये
बढ़ते हैं भाव रोज़ ही राजाधिराज के

ख़ुद आबनूस हैं तो क्या दुल्हन हो चाँद सी
नख़रे बड़े अजीब हैं मिर्ज़ा-मिज़ाज के

बारात की न पूछें नशा ख़ूब है किया
नागिन का नाच नाचें तनुज नाग-राज के

शादी का भोज थाली से नाली में जा रहा
ज़िंदा ग़रीब कैसे रहें बिन अनाज के

बेटी न बोझ सर पे क्यूँ कर्ज़ा उठा लिया
लड़की का बाप मर रहा क्यूँ बिन इलाज के

'सूरज' नक़ल न रास रईसों की आएगी
शादी, विवाह बन गये मसले क्यूं लाज के

सूरजपाल सिंह
कुरुक्षेत्र।

Sunday 10 March 2024

विनती सुनो हमारी - एक गीत

 

हे शिव शंकर औघड़ दानी, विनती सुनो हमारी।

उग्र महेश्वर हे परमेश्वर, शिव शितिकंठ अनंता।
हे सुरसूदन हरि कामारी, महिमा वेद भनंता‌।‌‌।
रुद्र दिगंबर हे त्रिपुरांतक, प्रभु कैलाश बिहारी।
हे शिव शंकर औघढ़ दानी, विनती सुनो हमारी।।

अष्टमूर्ति कवची शशि शेखर,देव सोमप्रिय नाथा।
गंगाधर अनंत खटवांगी, चरण धरूॅं निज माथा।।
अनघ भर्ग सर्वज्ञ अनीश्वर, विश्वेश्वर रहा निहारी।
हे शिव शंकर औघड़ दानी, विनती सुनो हमारी।।

पंच वक्त्र श्रीकंठ शिवा प्रिय, तारक हे कैलाशी।
व्योमकेश हे विष्णू वल्लभ, जगत पिता सुख राशी।।
शोक हरो प्रभु सकल विश्व के, सारा जगत दुखारी।
हे शिव शंकर औघड़ दानी, विनती सुनो हमारी।।

*** चंद्र पाल सिंह 'चंद्र'
All reac

Sunday 3 March 2024

जीवन तो अनमोल है - दोहा छंद

जीवन तो अनमोल है, इसके लाखों रंग।
पहचाना जिसने इसे, उसने जीती जंग।।1।।

जीवन तो अनमोल है, मिले न यह दो बार।
कब आया यह लौट कर, जी भर जी लो यार।।2।।

जीवन तो अनमोल है, बीत न जाए व्यर्थ ।
अच्छे कर्मों से इसे, देना शाश्वत अर्थ।।3।।

जीवन तो अनमोल है, इसके अनगिन रूप।
इसके आँचल में पले, निर्धन हो या भूप।।4।।

जीवन तो अनमोल है, रखो इसे संभाल ।
बहुत कठिन है जानना, इसका अर्थ विशाल।।5।।

जीवन तो अनमोल है, रखना इसका मान।
देना इसकी गंध को, एक नई पहचान।।6।।

जीवन तो अनमोल है, सुख - दुख इसके तीर।
एक तीर पर कहकहे, एक तीर पर पीर।।7।।

*** सुशील सरना

Sunday 25 February 2024

मुक्तक

 

ममता की सागर है माता, पिता समन्दर धीरज के।
संतति पुष्प खिले हैं सुन्दर, हृद-पुष्कर में नीरज के।
लहरें उठती हैं ममता की, माँ के हृदय समंदर में-
मकरंद सुगंध लुटाते हैं, पावन निर्मल क्षीरज के॥1॥

इन्द्रनील मणि-सा समुद्र यह, कहलाता रत्नाकर है।
रत्नों की है खान नीरनिधि, मुक्ता-मणि का आकर है।
भू-मंडल में विस्तृत अतुलित, पारावार विपुल जल का-
वारिद की प्यास बुझाता है, यह वारिधि करुणाकर है॥2॥

पौराणिक है कथा पुरानी, क्षीरोदधि के मंथन की।
मंदर पर्वत वासुकी नाग, दोनों के गठबंधन की।
चौदह रत्नों में पहला था, कालकूट...अमरित अंतिम-
पान किया देवों ने उनका, जय हरि-हर शुभ-चंदन की॥3॥

कुन्तल श्रीवास्तव.
डोंबिवली, महाराष्ट्र.

Sunday 18 February 2024

बेबस सारे महानगर - गीत

 

फँसी जाम में सड़कें सारी, बेबस सारे महानगर।
घण्टों लगते घर जाने में, दुर्घटना का लगता डर।।

छात्र घूमतें रात-रात भर, नहीं काल से वे डरते।
वाहन दौड़े फर्राटे भर, हवा संग बातें करते।।
गली-गली में आवारा से, कुत्ते घूमें खूब निडर।
घण्टों लगते घर जाने में, दुर्घटना का लगता डर।।

कृषक बने मजदूर शहर में, आखिर क्यों मजबूर हुए।
बेबस होकर गाँव निवासी, आज गाँव से दूर हुए।।
मन तो बसा हुआ गाँवों में, मजबूरी में करे सफर।
घण्टों लगते घर जाने में, दुर्घटना का लगता डर।।

ताल-तलैया निर्झर उपवन, मिले वही पर हरियाली।
हरे-भरे खेतों का स्वागत, करे सूर्य की नित लाली।।
देश प्रेम का बीज जहाँ पर, वही बसाये अपना घर।
घण्टों लगते घर जाने में, दुर्घटना का लगता डर।।

*** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

Sunday 11 February 2024

मुक्तक - प्रदत्त शब्द - पूजा, अर्चन, इबादत

 

पूजन करते लोग सब, खुश होवें भगवान,
बदले में हमको मिले, मुँह माँगा वरदान,
अजब सोच के लोग हैं, करें दिखावा रोज -
मर्म धर्म का तज रहे, कैसे ये इंसान।।

दस पैसे की बूँदियाँ, चढ़ा देव को भोग ,
बदले में ये माँगते, सुंदरतम संयोग,
स्वार्थ भरा संसार यह, देखो चारों ओर -
भारत भू पर क्यों बना, ऐसा यह दुर्योग।।

यह तो पूजा है नहीं, कहो इसे व्यापार,
ऐसे लोगों की सखे, पूजा है धिक्कार,
बदली सबकी सोच है, समझाए अब कौन -
पूजन जब निष्काम हो, करें देव स्वीकार।।

पूजा की थाली लिए, आए भक्त हजार,
ईश दिखावे को कभी, करें नहीं स्वीकार,
आडम्बर सब छोड़ कर, करें ईश का ध्यान -
प्रतिफल इसका है सुखद, मिल जाते करतार।।

पूजा का उद्देश्य हो, लें हम उनसे ज्ञान,
जनहित के सब काम कर, बने मनुष्य महान,
अंतर्यामी ईश हैं, जान रहा हर बात -
बिन माँगे भी वह करे, पूरे सब अरमान।।

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मुरारि पचलंगिया

Sunday 4 February 2024

धैर्य से सोच कर कर्म करते रहें - एक गीत

 

धैर्य से सोच कर कर्म करते रहें।
धर्म में ज्ञान की ज्योति भरते रहें।
कुछ मनन हम करें कुछ जतन हम करें,
राग बिगड़े नहीं जग चमन हम करें।
बावली पद्म की ज्यों लुभाती हमें,
भौँर की गूँज सुरभित बुलाती हमें।
पुष्प मकरंद से बोल झरते रहें।

शीघ्रता में किये कर्म बिगड़े कई,
क्रोध की आग में बाग उजड़े कई।
खेत चुँग जाएंगे खग अगर देर की,
क्यों घृणा में तपन राख की ढेर की।
मन विमल हो शुचित पाँव धरते रहें।

वाद संवाद में उर्मि का लास हो,
आस विश्वास में ईश का वास हो।
जय पराजय सहज प्रेरणा सिन्धु है,
भाव गुन लें समझ लें सुधा इन्दु है।
ग्लानि में अक्ष नम बिन्दु हरते रहें।
धैर्य से सोच कर कर्म करते रहें॥

*** सुधा अहलुवालिया

Sunday 28 January 2024

घर आये भगवान - एक गीत

 



बेशक सदियाँ बीत गई हों, लगी हुई भी अर्ज़ी थी।
घर आए भगवान ख़ुदा की, इसमें पूरी मर्ज़ी थी।।

घर आए भगवान राम अब, कृष्ण सदाशिव आएँगे,
राम लला को लाने वाले, भक्त इन्हें भी लाएँगे।
घोर तपस्या भक्तों की यह, व्यर्थ कहो क्यूँ जाएगी,
काशी मथुरा नगरी से भी, ख़बर ख़ुशी की आएगी।।

अफ़्वाहों पर नज़रें डालो, बातें कितनी फर्ज़ी थी,
घर आए भगवान ख़ुदा की, इसमें पूरी मर्ज़ी थी।।

धर्म, जाति की दीवारों से, मत अपना माथा फोड़ो,
हाथ बढ़ाओ मिल कर सारे, ये झूठे झगड़े छोड़ो।
राजनीति का खेल न खेले, वो कैसा फिर नेता है,
न्याय मिला कुछ देरी से पर, अंत भला सुख देता है।।

वहशी इंसानों की चालें, लालच था खुदगर्ज़ी थी,
घर आए भगवान ख़ुदा की, इसमें पूरी मर्ज़ी थी।।

ज़र्रे ज़र्रे में वो रहता, बात सभी ने है मानी,
राम खुदा में फ़र्क करे जो, छोड़ो फ़ितरत शैतानी।
मीठी स्वर लहरी में गाओ, 'देश’ राग कितना प्यारा,
धरती से अम्बर तक गूँजे, जय जय भारत का नारा।।

दफ़न करो मिट्टी में अब तो, जितनी कीना-वर्ज़ी थी,
घर आए भगवान ख़ुदा की, इसमें पूरी मर्ज़ी थी।।

*** सूरजपाल सिंह, कुरुक्षेत्र।

कीना-वर्ज़ी – वैर भाव रखना, दुश्मनी करना

Sunday 21 January 2024

बन जाए सब काम - एक गीत

 

भाल लगाए रोली चंदन, दर्शन कर श्री धाम।
राम-राम कह अलख जगे तो, बन जाए सब काम।

राम चरित की पावन गाथा, हम सब का आदर्श,
हरि अनंत की कथा सनातन, जीवन का प्रतिदर्श।
हिय कटुता की भेंट चढ़े मत, व्यर्थ सभी आलाप,
राम सरिस आदर्श पुत्र को, शत-शत करूँ प्रणाम।
राम-राम कह अलख जगे तो, बन जाए सब काम।

अनुपम शोभा दाशरथी की, कोमल कांति सु चित्त,
कर्म भूमि हित सधी प्रत्यंचा, अनुपम जीवन वृत्त
राम-राम मुख आ न सके जो, नहीं कटे संताप,
बढ़ते दुसह्य संताप कठिन, उनको दें विश्राम।
राम-राम कह अलख जगे तो, बन जाए सब काम।

रचते हैं श्रीराम जहाँ पर, स्वयमेव अनुभाव,
नारी का सम्मान लिए नित, बढ़ती जाए नाव।
राम रमैया गाए जा मन, सार्थक होगा जाप,
उपमानों के ढेर लगा जो, नहीं चले सियवाम।
राम-राम कह अलख जगे तो, बन जाए सब काम।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Sunday 14 January 2024

क्या जीवन को पाया है - एक गीत

 

क्या जीवन को सोचा तूने, क्या जीवन को पाया है,
जग जंगल में राह भटककर, राम नाम बिसराया है।

गुरु वशिष्ठ में कमियाँ देखी, कालनेमि की सेवा की,
कन्या हरण प्रेम को माना, निन्दा की हथलेवा की,
कहा कंस को नीति विशारद, उद्धव को कोरा ज्ञानी,
धर्म ध्वजा की वाहक गोपी, भरती दिखती हैं पानी।
पापार्जित वैभव को तूने, श्रम अर्जित बतलाया है,
क्या जीवन को सोचा तूने, क्या जीवन को पाया है।
रही मित्रता याद कर्ण की, दुर्योधन की चतुराई,
कोटि सुहृद शत बन्धु वधों का, कौन बता आताताई,
विनय कृष्ण की नीति विदुर की, दुनिया में किसने मानी,
आत्ममुग्ध यश लिप्सा रोगी, हो कुपथ्य की खुद ठानी।
समरांगण के बीच रसिक ने, मृत्यु गीत सुनाया है,
क्या जीवन को सोचा तूने, क्या जीवन को पाया है।
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डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.
हथलेवा= पाणिग्रहण संस्कार, कन्या का हाथ वर के हाथ में देना।

Sunday 7 January 2024

जीत का उद्गम - एक गीत

 

जीत का उद्गम सदा से हार है।
हार में ही जीत का इक द्वार है।।

मन की आशाएँ मिटाना मत कभी,
हार का सपना सजाना मत कभी।
कोशिशों से मन हटाना मत कभी,
ये चुनौती जीत का आधार है।।

इम्तिहानों में निखरती ज़िन्दगी,
आँधियों में ही संभलती ज़िन्दगी।
मुश्किलों में ही सँवरती ज़िन्दगी,
वक़्त का हर क्षण लगा दरबार है।।

असफलता में सफलता है छिपी,
और निराशा में भी आशा है छिपी।
दुख में भी ख़ुशियों की माला है छिपी,
हार देती जीत का उपहार है।।

जीत का उद्गम सदा से हार है।
हार में ही जीत का इक द्वार है।।

*** डॉ. आनन्द किशोर

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...