Sunday 30 April 2023

कैसी दूरी - दोहे

 



अपनों से दूरी बनी, मिला गैर का साथ।
आफत में कोई नहीं, मलो बैठ कर हाथ।।

रखकर जीवन पाक ही, काम करें कुछ नेक।
अच्छे को अपनाइए, ग़लत दीजिए फेक।।

कैसे होती दूरियांँ, रही याद जो पास।
यादों की जादूगरी, मधुर सभी अहसास।।

चाहे जितनी दूरियाँ, बने रहोगे खास।
हुई जनम भर के लिए, सजना तेरी दास।।

आज मशीनी काल है, दूरी मिटी तमाम।
करे वीडियो कॉल से, सभी ज़रूरी काम।।

*** साधना कृष्ण

Sunday 23 April 2023

पावन कन्या दान - एक गीत

 

लोक रीति अति सुन्दर संगम, वर-वधु ब्याह विधान।
धर्म-धरा-धृत नर-पुंगव कर, पावन कन्या दान।

छाजन बाजन लोक लुभावन, गीत उठे समवेत।
माँग सजा सिंदूरी सजनी, अनगढ़ ये संकेत।
भेज ससुर घर राजदुलारी, भीगे नैन अगाध,
रही स्वकीया सतत सनातन, धर्म धरा की आन
पावन कन्या दान।

सुता परायी रही जनम से, थाती जो अनमोल।
मिला न अधिकृत मान जगत में, चिंतन करिए तोल।
सृष्टि सुगम की रचना महती, राजा हो या रंक,
परिणय बंधन दो कुल जोड़े, इक दूजे का मान।
पावन कन्या दान।

बढ़ी निराशा हृदय निरंकुश, कर्म न विधि अनुकूल।
खुद को क्षमा नहीं करता मन, सप्तपदी को भूल।
बंध्या करना माँ का आँचल, ऐसी मति पर खेद,
नर से नर औ नारी तत्पर, खोकर निज पहचान।
पावन कन्या दान।

लोक रीति अति सुन्दर संगम, वर-वधु ब्याह विधान।
धर्म-धरा-धृत नर-पुंगव कर, पावन कन्या दान।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी

Sunday 16 April 2023

करूँ अर्चना तेरी - एक गीत

 

मन-मन्दिर में तुझे बिठाऊँ, अभिलाषा यह मेरी।
दो नैनों के दीप जलाऊँ, करूँ अर्चना तेरी।

सुबह-सबेरे मन का आँगन, अच्छी तरह बुहारा।
कोना-कोना धोकर हे प्रभु, तुझको आन पुकारा।
धूप जला अब करूँ आरती, करना नहीं अबेरी।
दो नैनों के दीप जलाऊँ, करूँ अर्चना तेरी।

रोली-चावल चन्दन-टीका, ली पुष्पों की माला।
घी-लोबान अगरु ले सुरभित, हवन कुंड में डाला।
शुचि-पावन पथ किया जतन से, अब मत करना देरी।
दो नैनों के दीप जलाऊँ, करूँ अर्चना तेरी।

कब से स्वप्न सजाये मैंने, अभिनन्दन हो तेरा।
महक उठे घर-आँगन मेरा, जब हो नाथ बसेरा।
आकर नाथ मिटा दो अब तो, जनम-जनम की फेरी।
दो नैनों के दीप जलाऊँ, करूँ अर्चना तेरी।

डॉ. राजकुमारी वर्मा

Sunday 9 April 2023

खाली हाथों जाना - एक गीत

 



खाली हाथ जगत में आया, खाली हाथों जाना।
धर्म-कर्म की ओढ़ चुनरिया, नहीं पड़े पछताना।।

खुली बेड़ियाॅं छूट नर्क से, स्वर्ग-धरा पर आया।
सभी हॅंसे थे पर तू रोया, देख जगत की माया।।
भूल गया है वापस जाना, कुछ दिन यहाॅं ठिकाना।
खाली हाथ जगत में आया, खाली हाथों जाना।।

यौवन का मदिरालय छलका, मृगतृष्णा ने घेरा।
भोग-रोग के संग प्यास ने, डाल दिया है डेरा।।
मन-तुरंग ने सोच लिया जो, उसे वही है पाना।
खाली हाथ जगत में आया, खाली हाथों जाना।।

गई बहारें पतझड़ आया, फीके लगें नज़ारे।
काया-माया साथ न देती, छूटे सभी सहारे।।
हंस उड़ा तज मानसरोवर, रूठ गया जब दाना।
खाली हाथ जगत में आया, खाली हाथों जाना।।

*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

Sunday 2 April 2023

श्रीराम नवमीं पर विशेष

 

मर्यादा पुरुषोत्तम ने,
जीना हमें सिखाया।
सच्चा जीवन बने त्याग से,
जी कर हमें दिखाया।।

महल त्याग वनवास लिया था,
पितु के वचन निभाए।
पैदल चल कर वन-वन घूमे,
कंद-मूल फल खाए।।

संतों का उद्धार किया था,
दुष्ट सभी थे मारे।
भिलनी के झूठे बेरों को,
सहज भाव स्वीकारे।।

वनवासी जनजाति वर्ग को,
हँस-हँस गले लगाया।
सबके हित में अपना हित है,
अपना धर्म बनाया।।

अपनाएँ आदर्श सभी हम,
स्वर्ग धरा पर आए।
रच कर *रामचरित-मानस* को,
तुलसी ने गुण गाए।।

यही सार है रामायण का,
पढ़, समझो सब भाई।
दृढ़ विश्वास रहे जो मन में,
मिलें हमें रघुराई।।

*** मुरारि पचलंगिया

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...