Sunday 9 April 2023

खाली हाथों जाना - एक गीत

 



खाली हाथ जगत में आया, खाली हाथों जाना।
धर्म-कर्म की ओढ़ चुनरिया, नहीं पड़े पछताना।।

खुली बेड़ियाॅं छूट नर्क से, स्वर्ग-धरा पर आया।
सभी हॅंसे थे पर तू रोया, देख जगत की माया।।
भूल गया है वापस जाना, कुछ दिन यहाॅं ठिकाना।
खाली हाथ जगत में आया, खाली हाथों जाना।।

यौवन का मदिरालय छलका, मृगतृष्णा ने घेरा।
भोग-रोग के संग प्यास ने, डाल दिया है डेरा।।
मन-तुरंग ने सोच लिया जो, उसे वही है पाना।
खाली हाथ जगत में आया, खाली हाथों जाना।।

गई बहारें पतझड़ आया, फीके लगें नज़ारे।
काया-माया साथ न देती, छूटे सभी सहारे।।
हंस उड़ा तज मानसरोवर, रूठ गया जब दाना।
खाली हाथ जगत में आया, खाली हाथों जाना।।

*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

No comments:

Post a Comment

श्रम पर दोहे

  श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म। श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।। ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर व...