मन-मन्दिर में तुझे बिठाऊँ, अभिलाषा यह मेरी।
सुबह-सबेरे मन का आँगन, अच्छी तरह बुहारा।
कोना-कोना धोकर हे प्रभु, तुझको आन पुकारा।
धूप जला अब करूँ आरती, करना नहीं अबेरी।
दो नैनों के दीप जलाऊँ, करूँ अर्चना तेरी।
रोली-चावल चन्दन-टीका, ली पुष्पों की माला।
घी-लोबान अगरु ले सुरभित, हवन कुंड में डाला।
शुचि-पावन पथ किया जतन से, अब मत करना देरी।
दो नैनों के दीप जलाऊँ, करूँ अर्चना तेरी।
कब से स्वप्न सजाये मैंने, अभिनन्दन हो तेरा।
महक उठे घर-आँगन मेरा, जब हो नाथ बसेरा।
आकर नाथ मिटा दो अब तो, जनम-जनम की फेरी।
दो नैनों के दीप जलाऊँ, करूँ अर्चना तेरी।
डॉ. राजकुमारी वर्मा
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