Sunday 25 April 2021

ख़ामोशी वाचाल हुई है

 


ख़ामोशी वाचाल हुई है,
सन्नाटों का यह संगीत।
मरघट सी चुप्पी ने छेड़ा,
शब्द रहित अनजाना गीत।
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करतल दोनों जुड़े हुए हैं,
वाणी में शामिल है क्रंदन।
मिलने जुलने का क्रम टूटा,
भूल गए हैं सब अभिनंदन।।
भीड़ सदाओं की रब के दर,
भेज रहा निशि दिन है जन जन।
श्याम बचाओ कहता कोई,
सुन पुकार मेरी रघुनंदन।।
हार रही है अब मानवता,
वबा* रही है हर पल जीत।
मरघट सी चुप्पी ने छेड़ा------
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अस्पताल में बिस्तर कम हैं,
हाहाकार मचा है पल पल।
पता नहीं है बेसुध मन को,
ढलक गया कब से है आँचल।।
अफरातफरी के आलम में,
कोई पड़ा हुआ है निश्चल।।
जेब चिकित्सा के ख़र्चों से,
लगे अधमरी सी या घायल।।
अपनों का आना वर्जित है,
कौन निभाए इन से प्रीत।
मरघट सी चुप्पी ने छेड़ा------
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कोई नहीं जानता है यह,
ऐसा हुआ भाग्य क्यों खोटा।
शम्शानों में लाशें इतनी,
पड़ा लकड़ियों का है टोटा।।
मातम को भी लोग न आते,
कर बैठे अपना दिल छोटा।
सीढ़ी कफ़न बेचने वाले,
बना रहे पैसा अब मोटा।।
खोया पिता किसी ने अपना,
और किसी ने मन का मीत।
मरघट सी चुप्पी ने छेड़ा------
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ख़ामोशी वाचाल हुई है,
सन्नाटों का यह संगीत।
मरघट सी चुप्पी ने छेड़ा,
शब्द रहित अनजाना गीत।
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी

Sunday 18 April 2021

कहानी



पढ़ सको तो पढ़कर देखो,
जिन्दगी की हर परत,
कोई न कोई कहानी है।
कल्पना की बैसाखियों पर,
यथार्थ की हवेलियों में,
शब्दों की खोलियों में,
दिल के गलियारों में,
टहलती हुई,
कोई न कोई कहानी है।
पत्थरों के बिछौनों पर,
लाल बत्ती के चौराहों पर,
बसों पर लटकी हुई,
रोटी के लिए भटकी हुई,
आँखों के बिस्तर पर बे-आवाज़,
कोई न कोई कहानी है।
सच पढ़ सको तो पढ़कर देखो,
हर बीता पल, हर छूटा मोड़,
आदि से अन्त तक इन्सान,
सिर्फ़
कहानी ही कहानी है।

*** सुशील सरना

Sunday 11 April 2021

मात अम्बिका



युद्ध भयंकर,
रक्तबीज रक्तबीज
रक्तबीज बना प्रलयंकर,
वीर्यवान रक्तबीज
दैत्य प्रधान रक्तबीज
गिरे मुंड मुंड धरा पर,
शोणित वेग जहाँ पर,
कुछ इधर गिरे कुछ उधर गिरे
पा स्पर्श रक्त का
भूमि पर अनगिन थे रक्तबीज
देवी प्रहार
अरि संहार,
भूमि लहू आच्छादित
दैत्य पर दैत्य उत्पादित,
घनघोर था मंजर
रुंड मुंड आ रहे नजर,
देवी चक्र
असुर ख़ंजर,
मण्डित विश्व सहस्त्र रक्तबीज
देवगण थे निराशित,
चंडिका चंडिका
काली चामुंडा
मुख विशाल
अक्ष लाल
रूप विकराल
जिह्वा बनी काल,
पी रही मात रक्त
करने असुर अशक्त,
काट काट शीश
रक्त विहीन दैत्य हुआ
देव दे रहे आशीष,
देवी चामुंडा कालिका ने,
रक्त भक्ष करते करते
वध रक्तबीज का किया
मात अम्बिका ने।।

सुरेश चौधरी

Sunday 4 April 2021

विकट राहें


 


 
बड़ी विकट राहें हैं लगती , जहाँ कहीं इस जीवन की।
कितनी साधें सूखी अब तक, मत पूछो अंतर्मन की।।
 
नील गगन का पाखी बनके, मन पंछी दौड़ा करता ।
समरांगन में निर्भीक बना, अपनी छाती चौड़ी करता।
पूछ हाल हारे योद्धा से, हृदयांगन के क्रन्दन की।
कितनी साधें सूखी अब तक, मत पूछो अंतर्मन की।।
 
आशातीत सफलता पाकर, लगते हैं सब इठलाने।
खुशियों की हलचल होती तो, सब लगते हैं इतराने।
स्रावित होती निष्प्राण सुरभि, मलय पवन में चंदन की।
कितनी साधें सूखी अब तक, मत पूछो अंतर्मन की।।
 
साहस बल से जीत सकोगे, इस अवनि और अंबर को।
विश्वास डोर की थाम तभी, लांघ सकोगे सागर को।
कर्मशील को नहीं जरुरत, नदी किनारे तर्पण की।
कितनी साधें सूखी अब तक, मत पूछो अंतर्मन की।।
 
पंकज सम इस जीवन की है, जड़े तैरती पानी में।
कितनी भूलें हो जाती हैं, मानव से नादानी में।
बैठ किन्तु नाविक तरिणी में, राग छेड़ता अर्पण की।
कितनी साधें सूखी अब तक, मत पूछो अंतर्मन की।।
 
*** साधना कृष्ण ***

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...