Sunday 29 November 2020

धरा हुई है लाल क्रोध से

 


धरा हुई है लाल क्रोध से।
मानव के संकीर्ण शोध से।।
 
दोनों ही ध्रुव लगे पिघलने।
महाप्रलय भू चला निगलने।
डाली उसने वक्र दृष्टि अब,
लगा मनुज था जिसको छलने।।
 
जिसे न समझा आत्मबोध से।
धरा हुई है लाल क्रोध से।।1
 
आपस में ही तनातनी है।
जिधर रखो पग नागफनी है।
मानव के इस स्वार्थ सिद्धि में,
पीर धरा की हुई घनी है।।
 
कष्ट बढ़े हैं अनवरोध से।
धरा हुई है लाल क्रोध से।।2
 
पर्यावरण बचाना होगा।
वरना बस पछताना होगा।
आओ मिल संकल्प करें हम,
तब ही कल मुस्काना होगा।।
 
चलो रोंपते भूमि लोध* से
धरा हुई है लाल क्रोध से।।3
 
*लोध - एक पहाड़ी वृक्ष
 
*** भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल ***

Sunday 22 November 2020

सूर्य पर दोहे

 


जग को आलोकित करे, काश्यपेय भगवान।
कुछ दिनमणि कहते इसे, कुछ कहते दिनमान।।
 
भासित रवि की किरण से, होता है संसार।
यम, यमुना, शनि के पिता, आतप के आगार।।
 
षष्ठी कार्तिक शुक्ल की, महिमा अगम अपार।
सूर्यदेव का व्रत करे,  अब  सारा  संसार।।
 
अस्ताचलगामी हुए, रवि सिंदूर समान।
साँझ हुई तो घर चले, श्रमिकों से दिनमान।।
 
उदित तरणि को देख कर, विहँसे सारे लोग।
नमस्कार कर के हुए, मानव सभी निरोग।।
 
 *** वसंत जमशेदपुरी ***

Sunday 15 November 2020

दीपोत्सव

 


दीपोत्सव त्योहार है, मना रहे सब लोग।
लक्ष्मी पूजन कर सभी, खाते छप्पन भोग।।

लाखों दीपक जल रहे, देखो बनी कतार।
चमचम गलियाँ कर रही, कहीं नहीं अँधियार।।

आतिशबाजी हो रही, बच्चे आत्मविभोर।
दादाजी यों कह रहे, बंद करो यह शोर।।

बाजारों में रौनकें, सजे पड़े सब मॉल।
माता पूजन के लिए, सजा रही है थाल।।

नये वसन सब पहन कर, खुशी मनाते लोग।
बार-बार आता रहे, ऐसा सुखद सुयोग।।

जगमग झोंपड़ियाँ करें, श्रेष्ठ यही त्योहार।
धनपतियों का आज ही, बरसा इन पर प्यार।

आपस में सब बाँटते, भिन्न भिन्न उपहार।
सामाजिकता है बड़ी, बढ़ता इससे प्यार।।


*** मुरारि पचलंगिया ***

Sunday 8 November 2020

नारी

 


खो गये शब्द कहीं
रही अधूरी कविता मेरी
सहिष्णु बन
पीड़ा झेल रही नारी अभी।
 
ज़िंदगी के आईने में
दिख रही
छटपटाहट उसकी,
हो रहे खोखले रूप
देवी दुर्गा और शक्ति के
कुचल रहा विकृत समाज
उफनती भावनायें उसकी
कट जाते पंख उसके
और जंजीर पड़ती पाँव में
घुट जाती साँसे
कोख में माँ के कभी
है रौंदी जाती कभी
कहीं अधखिली कली।
 
धोखे फरेब मिलते उसे
प्यार के नाम से
बेच दी जाती कहीं
दलदल में
उम्र भर फँसने के लिये
स्वाहा कर दी जाती कहीं
दहेज की आग में
काँप उठती बरबस
असहिष्णुता भी
देख दशा नारी की।
 
*** रेखा जोशी ***

Sunday 1 November 2020

तीरथ करूँ हज़ार

 


छोड़ न पाऊँ मोह गठरिया,
तीरथ करूँ हज़ार।
रास न आये बोझिल बंधन,
व्यर्थ लगे शृंगार।

मन से मन का मेल न प्रीतम,
नहीं चातकी प्यास।
अगन लगाती चंद्र कौमुदी,
साँझ करे उपहास।
तुम्ही बताओ भगवन मेरे, भटक रही दिन रात।
कहाँ मिलोगे राम हमारे, पलक बिछाये द्वार।

छोड़ न पाऊँ मोह गठरिया,
तीरथ करूँ हज़ार।

हंस नहीं मैं मानस स्वामी,
नीर न क्षीर विवेक।
मूढ़ मना तृष्णा में फँस के,
कुंदन बने न नेक।
तपा रही अर्पण में काया, नीति रीति के काज।
नेहिल नइया पार लगाकर, दे दो जीवन सार।

छोड़ न पाऊँ मोह गठरिया,
तीरथ करूँ हज़ार।

मन उपवन में तुम्हें बसा लूँ,
राग नहीं अनुराग।
अर्थ न स्वारथ चाहत अपनी,
चूनर लगे न दाग।
प्रेम रंग में रच बस जाऊँ, और नहीं अवदान।
तृषित नयन को दे दो दर्शन, जाऊँ मैं बलिहार।

छोड़ न पाऊँ मोह गठरिया,
तीरथ करूँ हज़ार।
रास न आये बोझिल बंधन,
व्यर्थ लगे शृंगार।

*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी ***

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...