जग को आलोकित करे, काश्यपेय भगवान।
कुछ दिनमणि कहते इसे, कुछ कहते दिनमान।।
भासित रवि की किरण से, होता है संसार।
यम, यमुना, शनि के पिता, आतप के आगार।।
षष्ठी कार्तिक शुक्ल की, महिमा अगम अपार।
सूर्यदेव का व्रत करे, अब सारा संसार।।
अस्ताचलगामी हुए, रवि सिंदूर समान।
साँझ हुई तो घर चले, श्रमिकों से दिनमान।।
उदित तरणि को देख कर, विहँसे सारे लोग।
नमस्कार कर के हुए, मानव सभी निरोग।।
*** वसंत जमशेदपुरी ***
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