Sunday 31 May 2020

सृष्टि किसकी है


सप्तरंगी रश्मियाँ बरसीं गगन से जो-
ओस के मोती सजल-कण सृष्टि किसकी है।
हरितिमा पे ठहरती विद्युत-लता-सी वो-
मोहती-सी दृष्टि, किसकी है॥

स्वर्ण-सी प्राची दिशा है पिघलती आराधना में।
नील-मणि-सा विपुल सागर उर्मि-आँचल साधना में।
झाँकता है झरोखों से पत्र में छुप के कहीं वह।
साँकलों पे प्रगीवों की, लरजता चुपके कहीं वह।
छिद्र से हीरे झरें, तन दीप्त-से, पृष्टि किसकी है।
मोहती-सी दृष्टि, किसकी है॥

तारकों की माल ने कलियाँ पिरोईं रतजगा कर।
आरुषी की गोद भर दी है, पुष्प-स्मित रस-पगा कर।
नित्य करता है अरुण, सुरभित आरती शुचिता सनी।
मंजरी से रँगोली धरता अनिल मधु रुचिता-घनी।
सूर्या सिमटी निशि की गोद में, मन-तृष्टि किसकी है।
मोहती-सी दृष्टि, किसकी है॥

रास-राका की समेटे रवि-रथी नित करे फेरा।
शक्ति बरसा कर धरा पे, ओढ़ आँचल नेह-घेरा।
अब दिखेगा चंद्र-दर्पण में, सहज धर अमिय-अंजुल।
तप्त-शीतल ऋतु बदलतीं प्रहर के प्रति याम मंजुल।
पार्श्व में निज गात, मनसिज पुष्प-शर, वृष्टि किसकी है।
मोहती-सी दृष्टि, किसकी है॥
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पृष्टि - जिज्ञासा
सूर्या - साँझ, सूर्य की पत्नी
तृष्टि - प्यास
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*** सुधा अहलूवालिया ***

Sunday 24 May 2020

रंग काला



जाने कितने रंग सृष्टि के
अद्भुत लेकिन है रंग काला।

काली अलकें काली पलकें,
काले नयन लगें मधुशाला,
काला भँवरा
हुआ मतवाला।

काला टीका नज़र उतारे,
काला धागा पाँव सँवारे,
काली रैना चंदा ढूँढे 
अपना शिवाला।

काले में हैं सत्य के साये,
हर उजास के पाप समाए,
रैन कुटीर सृष्टि की शाला,
रंग सपनों को
भाए काला।

काले से तो भय व्यर्थ है,
इसमें जीवन का अर्थ है,
आदि अंत का ये है प्याला,
हर यथार्थ को
इसने पाला।

*** सुशील सरना ***

Sunday 17 May 2020

राह प्रभु दिखा ज़रा



हुई जटिल ज़िन्दगी, जीना हमें सिखा ज़रा।
कुछ न सूझता यहाँ, राह प्रभु दिखा ज़रा॥


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लोभ छल असत्य से, भरा समस्त है जहाँ।
फँसा है मोह में हिया, है प्रेय कामना यहाँ।
प्रकाश ज्ञान का करो, दीप्त कर शिखा ज़रा॥
कुछ न सूझता यहाँ, राह प्रभु दिखा ज़रा॥1॥


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कठिन एक पाँव भी, निकालना हुआ यहाँ।
है मौत सामने खड़ी, कुठार ले जहाँ-तहाँ।
पीयूष बूँद से मिटा, ये लेख जो लिखा ज़रा॥
कुछ न सूझता यहाँ, राह प्रभु दिखा ज़रा॥2॥


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दिन हैं मुश्किलों भरे, निशा डरावनी ठगे।
न जी सकें न ही मरें, दशा भयावनी लगे।
मिटे ये आपदा सभी, हो पूर्ण ये त्रिखा* ज़रा॥
कुछ न सूझता यहाँ, राह प्रभु दिखा ज़रा॥3॥


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(*तृषा/लालसा) 

*** कुन्तल श्रीवास्तव ***

Wednesday 13 May 2020

सोचता रह गया




टूट कर भी लगा का लगा रह गया
दिल उसी आरज़ू से घिरा रह गया

पूजता ही रहा मैं जिसे इश्क़ में
एक बुत भर मेरा देवता रह गया

मैंने सोचा था वो ही करेगा पहल
वो भी मेरी तरह सोचता रह गया

कारगर तो वहाँ बस दुआएँ रहीं
मैं हथेली पे लेकर दवा रह गया

बाद बरसों मिले अजनबी की तरह
होते होते नया वाकया रह गया

मोड़ दर मोड़ गुज़री है यूँ ज़िन्दगी
छूटता हर जगह का पता रह गया

मन्ज़िलों तक पहुँच सिर्फ़ दो ही रहे
एक मैं रह गया इक ख़ुदा रह गया
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*** मदन प्रकाश ***

Sunday 3 May 2020

कितने संकट



संकट दूर कभी होता है, संकट संकट कहने से क्या?
त्राण मिलेगा तभी आप यदि, समाधान ढूँढें संकट का।
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जीवन में खुशियाँ यदि हैं तो, संकट का भी तय है आना, 
गिरगिट जैसे रंग बदलकर, रूप दिखाता है यह नाना, 
धीरज रखकर हिम्मत रखकर, इससे मानव लड़ सकता है,
ख़ुद पर संयम रखने से ही, तय होगा संकट का जाना, 
पूरा जोर लगा दें अपना, हम भारत के लोग अगर तो,
हर संकट को दूर भगाना, काम नहीं ज्यादा झंझट का। 
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त्राण मिलेगा तभी आप यदि.....
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भौतिक सुख से क्षीण हुई है, संकट से लड़ने की क्षमता,
लोग बाँटते जाति धर्म में, इसीलिये संकट में समता,
संकट में रक्षा बंधन है, आज वसीयत के नियमों से,
दीन हीन की रहती आई, जग भर में संकट में ममता,
मानव का मानव के प्रति भी, दृष्टिकोण बदला-बदला है,
संकट से है अगर उबरना, त्याग जरूरी घबराहट का।
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त्राण मिलेगा तभी आप यदि.....
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पैसे का संकट पैसे से, एक दिवस हो जाता है हल,
मगर भावनाओं का संकट, रिश्तों का जाँचा करता बल,
रोग शोक का संकट अक्सर, वक़्त मिटा देता है लेकिन,
अपनों को खोने का संकट, हमें सालता रहता हर पल,
बुद्धिमता तो इसमें ही है, पा लें पार हरिक संकट से,
होता लेकिन काम बड़ा ही, संकट से लड़ना जीवट का।
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त्राण मिलेगा तभी आप यदि.....
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*** गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी ***

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...