Sunday 27 February 2022

छन्न पकैया

 


छन्न पकैया छन्न पकैया, जीवन एक कहानी।
जब जी चाहे पढ़ लें इसको, होती नहीं पुरानी।।
 
छन्न पकैया छन्न पकैया, किस्सा नहीं अकेला।
थोड़े सच्चे थोड़े झूठे, शब्दों का है मेला ।।
 
छन्न पकैया छन्न पकैया, पक्की बनी सहेली।
रस ले-ले करके कथा कही, सुन्दर नई नवेली।।
 
छन्न पकैया छन्न पकैया, कुछ हैं झूठे सच्चे।।
अफ़वाह कथा के अंतर को, समझ न पाए कच्चे।।
 
छन्न पकैया छन्न पकैया, ग्रंथ बने हैं मोटे।
इतिहास कथाओं में भी हैं, धर्म बड़े या छोटे।।
 
छन्न पकैया छन्न पकैया, सुन्दर किस्सागोई।
मुंगेरीलाल सजाते हैं, स्वप्न भरी बटलोई।।
 
छन्न पकैया छन्न पकैया, सार्थक लिखें कहानी।
प्रेमचंद ने सदा लिखी है, जीवन कथा सुहानी।।
 
ऋता शेखर 'मधु'


 

Sunday 20 February 2022

बढ़े जुर्म इतने - एक गीत

 



हुई पस्त जनता हुए ध्वस्त सपने
हुआ न्याय बौना बढ़े जुर्म इतने

हैं आज़ाद लेकिन किया क्या है हासिल
जिसे देखिए वो गुनाहों में शामिल
बरी हो रहे हैं अदालत से क़ातिल
मज़े ले रहे हैं यहाँ सारे बातिल
लुटेरे हुए रहनुमा जो हैं अपने

हुई पस्त जनता हुए ध्वस्त सपने
हुआ न्याय बौना बढ़े जुर्म इतने

लिया पक्ष कमज़ोर का तो ख़ता है
ज़ुबां से अगर सच कहा तो ख़ता है
लिया हाथ में आईना तो ख़ता है
अगर प्रेम सबसे किया तो ख़ता है
यहाँ प्रीत के पक्ष में लोग कितने

हुई पस्त जनता हुए ध्वस्त सपने
हुआ न्याय बौना बढ़े जुर्म इतने

अमन के सितारों से ख़ाली गगन है
नहीं भाइचारा यही आकलन है
हुआ दौर अपराध का आजकल है
न इन्सानियत का रहा अब चलन है
लगे आदमी हैं सभी ख़ुद को छलने

हुई पस्त जनता हुए ध्वस्त सपने
हुआ न्याय बौना बढ़े जुर्म इतने

डॉ. आनन्द किशोर

Sunday 13 February 2022

मीत की छाँव में - एक गीत

 



था  अँधेरा  घना  वृक्ष  के गाँव में।
एक आभा झरी मीत की छाँव में।

मैं अकेला चला साथ आया न था।
मीत साथी नहीं  प्रेम साया न था।
व्योम गंगा बही मन भिगोती रही।
स्वर लहर गीत में मन डुबोती रही।
चेतना  खो  गई  ईश  के  पाँव  में।
एक आभा झरी  मीत की छाँव में।

है  मिला  आसरा  ईश  का  अंत में।
अब मिले मन सुमन स्नेह से कंत में।
प्रीति  माया  सभी  छूटती  जा  रही।
बंधनों   की   लड़ी   टूटती  जा  रही।
अब  रमूँ  बस  वहीं  ईश  के ठाँव में।
एक  आभा  झरी  मीत  की  छाँव में।

आज आ ही गया सिन्धु को पार कर।
ईश  ले  अंक  में  अब  मुझे तार कर।
पंथ  था  तो कठिन किंतु चलता रहा।
सुख मिले दुख सिये भेद पलता रहा।
अब  नहीं  जीवनी  है  किसी  दाँव में।
एक  आभा  झरी  मीत  की  छाँव  में।

सुधा अहलुवालिया

Sunday 6 February 2022

गीत - "छल-कपट"


विश्व पटल पर लगे हुए हैं,
छल और कपट के मेले!
सच्चाई फुटबॉल हो गई,
जिसे देखिए वह खेले!!

छल प्रपंच की सजी दुकानें,
उनके चमके हैं धंधे!
सच्चाई सब त्याग झूठ को,
क्रय करते हो कर अंधे!!
मदिरालय में पंक्ति बद्ध हैं,
गलियों में गोरस ठेले!

मक्कारी की हाट गर्म है,
मंचों से बँटते वादे!
पाँच वर्ष तक इन छलियों को,
जनता फिरती है लादे!!
धंधे में रत पढ़े लिखे हैं,
बेबस बेचें सब केले!

हरी चढ़ी है ऐनक सब के,
सब हरा दिखाई देता!
जितने ज्यादा चलें मुकदमें,
बनता है वही विजेता!!
सच्चाई बीमार पड़ी है,
झूठों के रेलम पेले!

विश्व पटल पर लगे हुए हैं,
छल और कपट के मेले!!

चंद्र पाल सिंह "चंद्र" 

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...