हुई पस्त जनता हुए ध्वस्त सपने
हुआ न्याय बौना बढ़े जुर्म इतने
हैं आज़ाद लेकिन किया क्या है हासिल
जिसे देखिए वो गुनाहों में शामिल
बरी हो रहे हैं अदालत से क़ातिल
मज़े ले रहे हैं यहाँ सारे बातिल
लुटेरे हुए रहनुमा जो हैं अपने
हुई पस्त जनता हुए ध्वस्त सपने
हुआ न्याय बौना बढ़े जुर्म इतने
लिया पक्ष कमज़ोर का तो ख़ता है
ज़ुबां से अगर सच कहा तो ख़ता है
लिया हाथ में आईना तो ख़ता है
अगर प्रेम सबसे किया तो ख़ता है
यहाँ प्रीत के पक्ष में लोग कितने
हुई पस्त जनता हुए ध्वस्त सपने
हुआ न्याय बौना बढ़े जुर्म इतने
अमन के सितारों से ख़ाली गगन है
नहीं भाइचारा यही आकलन है
हुआ दौर अपराध का आजकल है
न इन्सानियत का रहा अब चलन है
लगे आदमी हैं सभी ख़ुद को छलने
हुई पस्त जनता हुए ध्वस्त सपने
हुआ न्याय बौना बढ़े जुर्म इतने
डॉ. आनन्द किशोर
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