Sunday 24 February 2019

दो क्षणिकाएँ


1.
एक फौज़ी,
लहूलुहान,
मिट कर
अमर हो गया।
पहन तिरंगा,
एक तन,
एक वतन हो गया।


2.


गोली,
बारूद,
धमाके,
लाशें चीखें,
धुयें की गर्द,
बस
सरहद के झगड़े का
यही था शेष,
कुछ ज़िंदगियों के
खामोश
अवशेष। 


*** सुशील सरना ***

Sunday 17 February 2019

एक ग़ज़ल


मिले सही हमसफ़र कठिन है मिले कोई हमनज़र* है मुश्किल 
अगर मुहब्बत न ज़ीस्त* में हो तो ज़िंदगी का सफ़र है मुश्किल 
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कभी ये सोचा जहाँ में कितने बशर ग़रीबी में जी रहे हैं 
नसीब में जिनके छत नहीं और हुआ गुज़र और बसर है मुश्किल 
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नसीब अच्छा कि है बुरा और लकीरें हाथों में आज कैसी 
रहा है ख़ुद पर जिन्हें भरोसा तो उन पे इनका असर है मुश्किल 
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मसाफ़तें* मत रखें दिलों में जतन हो सबका हयात भर ये 
वगरना मुमकिन कि आप सबका सुकूं से होना गुज़र है मुश्किल 
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बशर जतन लाख कर ले फिर भी जनम लिया तो क़ज़ा भी आनी 
अजल* से अब तक यही हुआ है किसी का होना अमर है मुश्किल 
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मकाँ क़िले या महल किसी के बिना मुहब्बत मज़ारों जैसे 
सुकून-ओ-उल्फ़त न हो जहाँ पर कहें उसी घर को घर है मुश्किल 
**
ग़ुरेज़ मेहनत से जो न करता डरे नहीं जो चुनौतियों से 
हयात में उस को फिर यक़ीनन 'तुरंत' मिलना सिफ़र* है मुश्किल
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' बीकानेरी


हमनज़र - समान विचारों वाला
ज़ीस्त - जीवन
मसाफ़तें - दूरियां 

अजल - सृष्टि कर प्रारम्भ
सिफ़र - शून्य 

Sunday 10 February 2019

प्रयाग कुम्भ



आस्थाओं का संगम है यह, संस्कृतियों का अद्भुत दर्शन,
महा-विराट यह आयोजन सप्त कोटि जनों का दिग्दर्शन,
इतना विशाल इतना महान दुनिया कहती जिसको वंडर,
शिष्टाचार समता करुणा शुध्द आचरण का मार्गदर्शन। 


यह कुम्भ नही है, स्वर्ग है ये जिसमे बहती अमृत धारा,
बहु-आयामी है यह आयोजन मीठापन सारा ही सारा,
धन्य कहाते मानव-जन जो चखते इसका स्वाद यहाँ,
स्नान करो और दूर करो सब क्रोध घृणा का जल खारा।


*** आदित्य तायल ***

Sunday 3 February 2019

मत्तगयंद सवैया


मत्तगयंद सवैया ( 23 वर्ण,  7 भगण (S। ।) के साथ 2 गुरु )
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व्याकुल दीन समाज जना पथ कंटक मौन बुना करते हैं ।
आप बड़े कुछ भी कह लें पर राह युगीन चुना करते हैं ।
कुंज करील कुरंग कराल कला अवरोध गुना करतें हैं ।
पावन पुष्प पराग पुनीत विकार हरे अधुना करते हैं ।


श्वेत घनी सदरी पहने पथ पर्वत कंत दिगंत हुए हैं ।
साधक से उजले तन पाहन लीन तपोनिधि संत हुए हैं ।
धीर अधीर पथी सिहरे ; सिहरे तरु पत्र अनंत हुए हैं ।
शीत शिकार करे जन मानस राह कटे कस हंत हुए हैं ।


*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी ***

प्रस्फुटन शेष अभी - एक गीत

  शून्य वृन्त पर मुकुल प्रस्फुटन शेष अभी। किसलय सद्योजात पल्लवन शेष अभी। ओढ़ ओढ़नी हीरक कणिका जड़ी हुई। बीच-बीच मुक्ताफल मणिका पड़ी हुई...