कभी नयन का उपमित होता,
कभी हृदय का तू उपमान।
उथल-पुथल जग में कर देता,
होय अगर तेरा अपमान।
जग भर को तू क्या-क्या देता,
करते सब तुझ पर अभिमान।
कठिनाई का है प्रतीक तू,
तरना नहीं तुझे आसान।
शोधन किया जगत ने तेरा,
हुआ न तेरा बाँका बाल।
ढूँढ थका .....
सूरज तेरा प्यारा साथी,
जल से करे मेघ तैयार।
घुमड़-बरस जग तर कर देते,
तीव्र करे नदियों की धार।
वर्षा-जल धरती छक पीतीं,
बनतीं तब कृषि का आधार।
स्वार्थ नहीं थोड़ा भी तुझमें,
पर - सेवा तेरा व्यापार।
हर नर करते पूजा तेरी,
बुलंद रहे सदा इकबाल।
ढूँढ थका .....
क्षमता जल की लख प्रभु ने,
सौंपा जग का नीर प्रभार।
तू पखारता भारत-भू-पग,
हम सब मानें तव आभार।
क्षीर-उदधि तू ही कहलाता,
शेष-शयन करते प्रभु यार।
देव-दनुज ने मथा तुझे जब,
तूने दिए अमित उपहार।
देख अवध ऐसी उदारता,
जगत बिठाए तुझको भाल।
ढूँढ थका ....
*** अवधूत कुमार राठौर 'अवध'
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