Sunday, 13 July 2025

हे जग सागर - एक गीत

 

नहिं जग में कुछ तुझसा गहरा,
जग में तुझसा नहीं विशाल।
ढूँढ थका उपमा जग सागर,
मिली जगत में नहीं मिसाल।

कभी नयन का उपमित होता,
कभी हृदय का तू उपमान।
उथल-पुथल जग में कर देता,
होय अगर तेरा अपमान।
जग भर को तू क्या-क्या देता,
करते सब तुझ पर अभिमान।
कठिनाई का है प्रतीक तू,
तरना नहीं तुझे आसान।
शोधन किया जगत ने तेरा,
हुआ न तेरा बाँका बाल।
ढूँढ थका .....

सूरज तेरा प्यारा साथी,
जल से करे मेघ तैयार।
घुमड़-बरस जग तर कर देते,
तीव्र करे नदियों की धार।
वर्षा-जल धरती छक पीतीं,
बनतीं तब कृषि का आधार।
स्वार्थ नहीं थोड़ा भी तुझमें,
पर - सेवा तेरा व्यापार।
हर नर करते पूजा तेरी,
बुलंद रहे सदा इकबाल।
ढूँढ थका .....

क्षमता जल की लख प्रभु ने,
सौंपा जग का नीर प्रभार।
तू पखारता भारत-भू-पग,
हम सब मानें तव आभार।
क्षीर-उदधि तू ही कहलाता,
शेष-शयन करते प्रभु यार।
देव-दनुज ने मथा तुझे जब,
तूने दिए अमित उपहार।
देख अवध ऐसी उदारता,
जगत बिठाए तुझको भाल।
ढूँढ थका ....

*** अवधूत कुमार राठौर 'अवध'

No comments:

Post a Comment

हे जग सागर - एक गीत

  नहिं जग में कुछ तुझसा गहरा, जग में तुझसा नहीं विशाल। ढूँढ थका उपमा जग सागर, मिली जगत में नहीं मिसाल। कभी नयन का उपमित होता, कभी हृदय ...