Sunday 28 May 2023

मत्तगयंद सवैया छंद

 

विधान - ७भगण+गुरु गुरु=२३ वर्ण प्रति चरण
चार चरण समतुकांत।


नाव फॅंसी भवसागर में प्रभु आप बिना अब कौन उबारे।
खेवनहार तुम्हीं जग-तारक नाथ सभी हम आप सहारे।
मोह तरंग उठे निशि-वासर कौन हमें भव पार उतारे।
कौन डुबाय सके हमको जब राघव खेवनहार हमारे।।


सिंधु अथाह यथा जगजीवन राघव पार करो मम नैया।
तारनहार तुम्ही भवसागर आप बिना प्रभु कौन खिवैया।
ग्राह अजामिल दैत्य अनेकन तार दिए पय - सिंधु बसैया।
आज यही प्रभु 'चंद्र' निवेदन तारहु मत्तगयंद लिखैया।।

*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

Monday 22 May 2023

चन्द्रमुख से आवरण सरकाइए - गीत

 

चन्द्रमुख से आवरण सरकाइए।
रश्मिघट भर चाँदनी बरसाइए।
सुरमई सी रात काली कोठरी है।
जलद घन में दामिनी दमकाइए। 
 
नैन भींचे आप कितना बोलती हैं
बिन छुए मन अर्गला को खोलती हैं।
मनस दर्पण मौन, कैसे आ गई यों।
पंख खोले व्योम मन पर छा गई यों।
चित्त विस्मित, और मत बहकाइए।
चन्द्रमुख से आवरण सरकाइए। 
 
आप का सानिध्य मंजुल अल्प सा है।
एक मुट्ठी पल समेटे कल्प सा है।
मौन है ऋतुराज रूठी वेदना क्यों।
ऊष्म श्वासों में पिघलती चेतना ज्यों।
चाँदनी सित हिमानी ढलकाइए।
चन्द्रमुख से आवरण सरकाइए। 
 
तू अमा को ओढ़ बैठी है निगोड़ी।
बाँध डोरी ज्योति में है ज्योति जोड़ी।
घूँघटा खोलो प्रिये फैले जुन्हाई।
हो रही क्यों विरह के स्वर की बुनाई।
पार्श्व से आखेट कर मत जाइए।
चन्द्रमुख से आवरण सरकाइए।
*
*** सुधा अहलुवालिया

Sunday 14 May 2023

सांध्य की शोभा निराली - एक गीत

 

सांध्य की शोभा निराली स्वर्णमय प्रति पर्ण है।
घट रजत उल्टा पड़ा बिखरा चतुर्दिक स्वर्ण है।

पूर्ण दिन श्रमशील रह दिनकर जगत हित साधते,
कर्म का संदेश दे खुद कर्म ही आराधते,
चित्त आनन्दित रहे मन है युवा नहि जर्ण है।
सांध्य की शोभा निराली स्वर्णमय प्रति पर्ण है।

हों उदित सविता बिखेरें रश्मियाँ पाटल रचित,
जागते हैं प्राणिजन व्यवसाय वे साधें उचित,
मुस्कराते पुष्प अरु उद्यान मय सब वर्ण है।
सांध्य की शोभा निराली स्वर्णमय प्रति पर्ण है।

देख कर अवसान वेला का विभव जन-मन चकित,
खेद किंचित भी नहीं रवि की किरण सोना खचित,
मुस्कराहट युग अधर से है खिची आकर्ण है।
सांध्य की शोभा निराली स्वर्णमय प्रति पर्ण है।

*** डॉ. राजकुमारी वर्मा

Sunday 7 May 2023

जीवन की दशा पर एक गीत

 

धूप न देखी दीप न जोया, श्वेत हो गए बाल,
छाॅंव गाँव में कटी दुपहरी, बदन हो गया लाल।
जन्म लग्न में राहु पड़ा है, भाग्य लग्न में केतु,
मंगल दंगल करे केन्द्र में, टूटा जीवन सेतु,
कालसर्प ने रस्ता रोका, दोष गिनाये लाख,
अघटित योग बने अपयश के, बची हाथ में राख।

घर के दरवाज़े से भैय्या, फूटा अपना भाल,
धूप न देखी दीप न जोया, श्वेत हो गए बाल।

शुक्र बनाता योग कभी शुभ, एक ऑंख से देख,
बनने लगती है हाथों में, धनागमन की रेख,
तभी उच्च का बुध आकर के, दे जाता है ज्ञान,
भाग न तू लक्ष्मी के पीछे, दे पुस्तक में ध्यान।

रबड़ी मान राबड़ी खाई, फँसा दाढ़ में गाल,
धूप न देखी दीप न जोया, श्वेत हो गए बाल।

ढैय्या रोते - रोते उतरा, मुख आई मुस्कान,
लगी नोचने साढ़े साती, लेकर जाऊँ जान,
बारह आठ चार खाने में, ग्रह युतियों का मेल,
हार- जीत का खेल न खेले, बना रहे हैं रेल।

दया- धर्म- सेवा की बातें, खींच रही है खाल,
धूप न देखी दीप न जोया, श्वेत हो गए बाल।

क्रूर ग्रहों की अशुभ दृष्टि से, बचा रहे थे चन्द्र,
छिपे मेघ के पीछे जाकर, मुस्काकर के मंद्र,
गुरु ने कुछ वक्री होकर भी, ख़ूब निकाला तोड़,
अब शीर्षासन लगे कराने, सूर्य देव घर फोड़।

देशी घी में छोंक हींग का, फिर भी गली न दाल,
धूप न देखी दीप न जोया, श्वेत हो गए बाल।
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डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...