Sunday, 7 May 2023

जीवन की दशा पर एक गीत

 

धूप न देखी दीप न जोया, श्वेत हो गए बाल,
छाॅंव गाँव में कटी दुपहरी, बदन हो गया लाल।
जन्म लग्न में राहु पड़ा है, भाग्य लग्न में केतु,
मंगल दंगल करे केन्द्र में, टूटा जीवन सेतु,
कालसर्प ने रस्ता रोका, दोष गिनाये लाख,
अघटित योग बने अपयश के, बची हाथ में राख।

घर के दरवाज़े से भैय्या, फूटा अपना भाल,
धूप न देखी दीप न जोया, श्वेत हो गए बाल।

शुक्र बनाता योग कभी शुभ, एक ऑंख से देख,
बनने लगती है हाथों में, धनागमन की रेख,
तभी उच्च का बुध आकर के, दे जाता है ज्ञान,
भाग न तू लक्ष्मी के पीछे, दे पुस्तक में ध्यान।

रबड़ी मान राबड़ी खाई, फँसा दाढ़ में गाल,
धूप न देखी दीप न जोया, श्वेत हो गए बाल।

ढैय्या रोते - रोते उतरा, मुख आई मुस्कान,
लगी नोचने साढ़े साती, लेकर जाऊँ जान,
बारह आठ चार खाने में, ग्रह युतियों का मेल,
हार- जीत का खेल न खेले, बना रहे हैं रेल।

दया- धर्म- सेवा की बातें, खींच रही है खाल,
धूप न देखी दीप न जोया, श्वेत हो गए बाल।

क्रूर ग्रहों की अशुभ दृष्टि से, बचा रहे थे चन्द्र,
छिपे मेघ के पीछे जाकर, मुस्काकर के मंद्र,
गुरु ने कुछ वक्री होकर भी, ख़ूब निकाला तोड़,
अब शीर्षासन लगे कराने, सूर्य देव घर फोड़।

देशी घी में छोंक हींग का, फिर भी गली न दाल,
धूप न देखी दीप न जोया, श्वेत हो गए बाल।
~~~~~~~~~
डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

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