Sunday 28 May 2023

मत्तगयंद सवैया छंद

 

विधान - ७भगण+गुरु गुरु=२३ वर्ण प्रति चरण
चार चरण समतुकांत।


नाव फॅंसी भवसागर में प्रभु आप बिना अब कौन उबारे।
खेवनहार तुम्हीं जग-तारक नाथ सभी हम आप सहारे।
मोह तरंग उठे निशि-वासर कौन हमें भव पार उतारे।
कौन डुबाय सके हमको जब राघव खेवनहार हमारे।।


सिंधु अथाह यथा जगजीवन राघव पार करो मम नैया।
तारनहार तुम्ही भवसागर आप बिना प्रभु कौन खिवैया।
ग्राह अजामिल दैत्य अनेकन तार दिए पय - सिंधु बसैया।
आज यही प्रभु 'चंद्र' निवेदन तारहु मत्तगयंद लिखैया।।

*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

No comments:

Post a Comment

श्रम पर दोहे

  श्रम ही सबका कर्म है, श्रम ही सबका धर्म। श्रम ही तो समझा रहा, जीवन फल का मर्म।। ग्रीष्म शरद हेमन्त हो, या हो शिशिर व...