Sunday 26 March 2023

त्योहार की खुशी - एक गीत

 

कमी तो स्नेह के व्यवहार की है।
खुशी होती न अब त्योहार की है॥

मिलाकर हाथ घिस डालीं लकीरें,
मिलाया दिल नहीं हमने किसी से।
जुबां से खूब रस वर्षण किया है,
गए पर घर नहीं मिलने किसी से॥
खबर सब ओर से बीमार की है।
खुशी होती न अब त्योहार की है॥

गरीबी बीनती खेतों में बाली,
अमीरों की सहेली है दिवाली।
बचाना है हमें होली पे पानी,
ठिठोली कर कहाँ रंगती है साली॥
कहानी पर्व पर बाजार की है।
खुशी होती न अब त्योहार की है॥

बहुत मॅंहगा हुआ रक्षा का धागा,
बहाना है पढ़ाई का न आना।
सजे कमरों में सब बैठे अकेले,
मॅंगा कर खा रहे बाहर से खाना॥
फसल हमने नई तैयार की है।
खुशी होती न अब त्योहार की है॥

*** डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.

Sunday 19 March 2023

एक ग़ज़ल - बहारों के शह्र में

 



सोचा था जा रहे हैं बहारों के शह्र में
हमने बिताई रात शरारों के शह्र में

हर शख़्स ख़ुद से ही लगे रूठा हुआ सा क्यों
आया नज़र न कोई नज़ारों के शह्र में

सूरज ने क़ैद कर लिया हर एक जुगनू को
संगीन कल थी रात सितारों के शह्र में

बस इश्क़ करने वाले ही रह सकते हैं वहाँ
हम भी लुटे हैं जाके इशारों के शह्र में

ईंटों ने लड़ के नींव से घर कर दिया मकां
मेरा भी एक घर था दरारों के शह्र में

अरसा हुआ कहे सुने दो मीठे बोल, हम
फूलों को छोड़ बस गए ख़ारों के शह्र में

साया भी साथ दे तो गनीमत ही है रजत
जीते हैं सब अकेले हज़ारों के शह्र में

*** गुरचरन मेहता 'रजत'

Sunday 12 March 2023

गीत - नेक काम करते रहना है

 



नेक काम करते रहना है, हम सबको रोज़ाना,
पाया दुर्लभ मानव तन ये, नाहक नहीं गँवाना।

प्रतिदिन का अभ्यास दिलाता, बड़ी सफलता भाई,
सिद्धि-प्रसिद्धि मिला करती है, जीवन में सुखदाई।
मान बढ़ाना कुल समाज का, कुछ करके दिखलाना,
पाया दुर्लभ मानव तन ये, नाहक नहीं गँवाना

परसेवा, उपकार न भूलो, यह जीवन का हिस्सा,
ज़िंदा रहते ही बन जाओ, प्रेरक रोचक किस्सा।
सिर्फ नहीं करते रह जाओ, खाना और कमाना,
पाया दुर्लभ मानव तन ये, नाहक नहीं गँवाना

प्रतिदिन हरि की करो वंदना, उनसे लगन लगाओ,
हिय को अपने निर्मल करके, सच्चा सुख तुम पाओ।
अंत समय तुमको हे भाई, पड़े नहीं पछताना,
पाया दुर्लभ मानव तन ये, नाहक नहीं गँवाना

*** राजकुमार धर द्विवेदी

Sunday 5 March 2023

होली आई - एक गीत

 



रंग रॅंगीली होली आई, नाच उठा मन-मोर।
रवि ने प्राची को रॅंग डाला, हुई गुलाबी भोर।।

झूम-झूम कर गाती सरसों, चुनर उड़ाती पीली।
पुष्प-पुष्प से गंध चुराती, बहती पवन नशीली।
झनक-झनक झाॅंझरिया झनके, उस पर किसका जोर।
रंग रॅंगीली होली आई, नाच उठा मन मोर।।

यौवन के गालों से छलके, बिना रंग के लाली।
श्याम बावरे हुए सभी हैं, हर राधा मतवाली।।
तटबंध टूटते जब लेता, मानस-उदधि हिलोर।
रंग रॅंगीली होली आई, नाच उठा मन मोर।।

हर कपोल पर सजी हुई है, रंग रॅंगीली रंगोली।
भीग गए पीतांबर सारे, भीगी है हर चोली।।
अंग-अंग ने भंग पिया है, हुआ मदन बरजोर।
रंग रॅंगीली होली आई, नाच उठा मन मोर।।

*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...