झूम-झूम कर गाती सरसों, चुनर उड़ाती पीली।
पुष्प-पुष्प से गंध चुराती, बहती पवन नशीली।
झनक-झनक झाॅंझरिया झनके, उस पर किसका जोर।
रंग रॅंगीली होली आई, नाच उठा मन मोर।।
यौवन के गालों से छलके, बिना रंग के लाली।
श्याम बावरे हुए सभी हैं, हर राधा मतवाली।।
तटबंध टूटते जब लेता, मानस-उदधि हिलोर।
रंग रॅंगीली होली आई, नाच उठा मन मोर।।
हर कपोल पर सजी हुई है, रंग रॅंगीली रंगोली।
भीग गए पीतांबर सारे, भीगी है हर चोली।।
अंग-अंग ने भंग पिया है, हुआ मदन बरजोर।
रंग रॅंगीली होली आई, नाच उठा मन मोर।।
*** चंद्र पाल सिंह "चंद्र"
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