कमी तो स्नेह के व्यवहार की है।
खुशी होती न अब त्योहार की है॥
मिलाया दिल नहीं हमने किसी से।
जुबां से खूब रस वर्षण किया है,
गए पर घर नहीं मिलने किसी से॥
खबर सब ओर से बीमार की है।
खुशी होती न अब त्योहार की है॥
गरीबी बीनती खेतों में बाली,
अमीरों की सहेली है दिवाली।
बचाना है हमें होली पे पानी,
ठिठोली कर कहाँ रंगती है साली॥
कहानी पर्व पर बाजार की है।
खुशी होती न अब त्योहार की है॥
बहुत मॅंहगा हुआ रक्षा का धागा,
बहाना है पढ़ाई का न आना।
सजे कमरों में सब बैठे अकेले,
मॅंगा कर खा रहे बाहर से खाना॥
फसल हमने नई तैयार की है।
खुशी होती न अब त्योहार की है॥
*** डॉ. मदन मोहन शर्मा
सवाई माधोपुर, राज.
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