सोचा था जा रहे हैं बहारों के शह्र में
हमने बिताई रात शरारों के शह्र में
आया नज़र न कोई नज़ारों के शह्र में
सूरज ने क़ैद कर लिया हर एक जुगनू को
संगीन कल थी रात सितारों के शह्र में
बस इश्क़ करने वाले ही रह सकते हैं वहाँ
हम भी लुटे हैं जाके इशारों के शह्र में
ईंटों ने लड़ के नींव से घर कर दिया मकां
मेरा भी एक घर था दरारों के शह्र में
अरसा हुआ कहे सुने दो मीठे बोल, हम
फूलों को छोड़ बस गए ख़ारों के शह्र में
साया भी साथ दे तो गनीमत ही है रजत
जीते हैं सब अकेले हज़ारों के शह्र में
*** गुरचरन मेहता 'रजत'
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