Sunday 30 January 2022

अभी मुक्त करना बाकी है

 



अब तक मुक्त किया भारत को लड़कर सब गद्दारों से।
अभी मुक्त करना बाकी है जयचन्दी मक्कारों से ।।

पौरष हो या भले सिकन्दर जीत न पाए भारत को।
अफगानी, तुर्की भारत की, समझे नहीं महारत को।
आंको हमको मौर्यकाल की सीमा के विस्तारों से।
अभी मुक्त करना बाकी है जयचन्दी मक्कारों से ।। 1।।

तक्षशिला, नालंदा से हम विश्व गुरू कहलाते थे।
दुनिया भर के छात्र तभी तो भारत पढ़ने आते थे।
मगर आज के छात्र हिन्द के वंचित निज अधिकारों से।।
अभी मुक्त करना बाकी है जयचन्दी मक्कारों से ।। 2।।

नालन्दा प्राचीन हिन्द का ज्ञानकोश कहलाता था।
भारत का इतिहास जगत में, तब तो गौरव पाता था।।
नालन्दा को जला कर दिया वंचित बुद्ध विचारों से।
अभी मुक्त करना बाकी है जयचन्दी मक्कारों से ।। 3।।

मूल कथाएँ चुरा-चुरा इतिहास खोखला कर डाला।
तथ्य बिना अध्याय आज तक हमें रटाया है काला।।
लड़ा-लड़ा मंदिर-मस्जिद औ' गिरजाघर गुरुद्वारों से।
अभी मुक्त करना बाकी है जयचन्दी मक्कारों से ।। 4।।

कौन हिन्द के बासिंदे हैं कौन यहाँ घुसपैठीं हैं।
किसने नकली मूंछ मरोड़ी, किसने असली ऐंठीं हैं।।
असल नकल का भेद पूछना खून सनी तलवारों से।।
अभी मुक्त करना बाकी है जयचन्दी मक्कारों से ।। 5।।

नेता नौमी फेल जीत कर जब मंत्री बन जाता है।
डिग्रीधारी नौकर औ' वह शहनशाह कहलाता है।
भारत का दामन धूमिल है ऐसे पहरेदारों से
अभी मुक्त करना बाकी है जयचन्दी मक्कारों से ।।6।।
नव संस्कृति से रूढ़ीवादी लोग आज घबराते हैं।
इसीलिए वह संविधान से बार-बार टकराते हैंं।।
शिक्षित कभी डरा न डरेगा मूरख और गँवारों से।
अभी मुक्त करना बाकी है जयचन्दी मक्कारों से ।। 7।।

सत्ता के चाबुक ने जब-जब जन आवाज दबाई है।
लोकतंत्र ने अधिकारों की तब-तब लड़ी लड़ाई है।
जर्रा-जर्रा तक वाकिफ है आजादी के नारों से।।
अभी मुक्त करना बाकी है जयचन्दी मक्कारों से ।। 8।।

उठो देश के युवा सैनिको अधिकारों की मांग करो।
संविधान के लिए जियो या संविधान के लिए मरो।।
संविधान का कभी समर्थक डरा नहीं ललकारों से।
अभी मुक्त करना बाकी है जयचन्दी मक्कारों से ।। 9।।

जनगण मन अधिनायक जय हे जब-जब 'गौतम' गाएगा।
भारत माँ का बच्चा-बच्चा, इंकलाब फिर लाएगा।।
भारत वंचित भगतसिंह-से नहीं हुआ सरदारों से।
अभी मुक्त करना बाकी है जयचन्दी मक्कारों से ।। 10।।

रामकिशोर गौतम

Sunday 23 January 2022

कविता/ काव्य/ कृति

 




शब्द-अर्थ संयोग गत, भाव-शिल्प मय जान।
निहित अर्थ व्यंजित करे, सुन्दर काव्य महान।।

ज्यों मुख में ताम्बूल रस, दे आनन्द अपार।
वैसे ही रस चर्वणा, श्रेष्ठ काव्य आधार।।

शब्द-अर्थ गत भेद युत, काव्य अलंकृत रूप।
अलंकार द्विगुणित करें, कविता रूप अनूप।।

कथ्य काव्य का प्राण है, ज्यों धरती का शस्य।
निहित काव्य के कथ्य में, लोक मांगलिक लक्ष्य।।

सुरुचि, सुघड़, परिधान सम, कथ्य-जन्य उन्मेष।
शब्द-अर्थ में हो सृजित, मोहक शिल्प विशेष।।

आरोहण-अवरोह में, चलता अविरल गान।
स्वर धारा लय से बहे, लेता कवि जब तान।।

अकस्मात मन गा उठे, होकर भाव विभोर।
सरस मनोहर काव्य दे, भिगो हृदय की कोर।।

डॉ राजकुमारी वर्मा

Sunday 16 January 2022

गीत (मकर संक्रांति)

 



धनु राशि से मिहिर मकर में होते हैं प्रवेश जब
वसुधा के प्रांगण में आते देव सहित दिनेश जब
भूगौलिक परिवर्तन ज्योतिष की भी गणना है भारी
आत्मा का उद्धार उसी क्षण मिलते हैं अखिलेश जब

संक्रांति संस्कृति शुभ अपनी पावन मंगल है वेला
कमलबंधु प्रयागराज संगम में लगा माघ मेला
पोंगल के सँग माघी का संदेश
बधाई
अति सुन्दर
अंशुमाली की कृपा दृष्टि जब मिल जाते सर्वेश तब

धनु राशि से मिहिर मकर में होते हैं प्रवेश जब
वसुधा के प्रांगण में आते देव सहित दिनेश जब

अंधकार तम नाश करें आदित्य प्रकाशित होते हैं
नया गीत ले कविता को कविराज सुशोभित होते हैं
नव ऊर्जा व नया सवेरा दिनमणि लेकर आते हैं
चहक उठें पंछी भी नभ में छा जाते नलिनेश तब

धनु राशि से मिहिर मकर में होते हैं प्रवेश जब
वसुधा के प्रांगण में आते देव सहित दिनेश जब

आशा की नवकिरण लिए जब रथ भानु का आता है
नस नस में नव रक्त बहे तो मौसम ऐसा भाता है
खिचड़ी का प्रसाद मिले तिल गुड़ से ताकत बढ़ती
शीत काल की ठिठुरन को भी दूर करें दिवेश तब

धनु राशि से मिहिर मकर में होते हैं प्रवेश जब
वसुधा के प्रांगण में आते देव सहित दिनेश जब

सूरजपाल सिंह
कुरुक्षेत्र।

Sunday 9 January 2022

नेह में सम्मान

 



हो जहाँ भय कर्म बस कर्तव्य होता है।
नेह में सम्मान प्रतिपल भव्य होता है।

है जहाँ श्रद्धा स्वयं ही शीश झुक जाता।
दर्प का तम हो जहाँ पग बुद्ध रुक जाता।
वाद औ प्रतिवाद में मन हव्य होता है।
नेह में सम्मान प्रतिपल भव्य होता है।

दीनता पर आँख भर आए करुण रस में।
अश्रु गंगा बह चले मन हो नहीं बस में।
भाव में शुचि मान संचित नव्य होता है।
नेह में सम्मान प्रतिपल भव्य होता है।

आचमन हो ज्ञान का मन पुष्प हो अर्पण।
दें स्वयं को मान हम देखा करें दर्पण।
भक्ति में सत्‌संग मंजुल स्रव्य होता है।
नेह में सम्मान प्रतिपल भव्य होता है।

*
सुधा अहलुवालिया

Sunday 2 January 2022

नववर्ष की आशा




नये वर्ष का स्वागत करने, जश्न मने हर गाँव में।
चौपालों पर चिंतन करते, तापें हाथ अलाव में।।

क्या खोया क्या पाया हमने, सीख सके कुछ भूल से।
विगत वर्ष में पिछड़े हम क्यों, हटकर जरा उसूल से।।
रुके नहीं पथ पर बढ़ने से, आकर किसी प्रभाव में।
नये वर्ष का स्वागत करने, जश्न मने हर गाँव में।।

प्रेम-भावना बढ़े दिलों में, कदम बढ़ाएँ साथ में।
बढ़े हौसला दीन-हीन का, दीप जले हर पाथ में।।
नहीं दिलों से नफरत झलके, दीनों से बर्ताव में।
नये वर्ष का स्वागत करने, जश्न मने हर गाँव में।।

जोश दिलाएँ नव-युवकों को, गुरुवर भाव पुनीत से।
मन से स्वच्छ बनाएँ उनको, सदा सुचारू रीत से।।
घर का गौरव बढ़ा सकें सब, फँसे न किसी दुराव में।
नये वर्ष का स्वागत करने, जश्न मने हर गाँव में।। 

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...