Sunday 25 September 2022

"सबके दाता राम" - एक गीत

 

सत्य वचन कह गये मलूका, सबके दाता राम,
चाकर बन मत रहना जग में, करना प्रभु का काम।

छिपी गूढ़ता इन बातों में, होता यह आभास,
कर्म करो तुम अपना भाई, बनना नहीं ख़बास।
नहीं गुलामी करो किसी की, कितना भी हो खास,
बन सकते तो बन कर रहना, केवल प्रभु का दास।

ज्ञानी जी की इन बातों को, समझ न भाई आम,
सत्य वचन कह गये मलूका, सबके दाता राम।

अजगर की फुर्ती तुम देखो, जब वह करे शिकार,
भोजन हित पंक्षी को देखो, मिहनत करे अपार।
होता है श्रम का फल मीठा, जान रहा संसार,
करो अगर निष्काम कर्म तो, देता फल दातार।

सच्चे सौदे का मिलता है, सुन्दर समुचित दाम,
सत्य वचन कह गये मलूका, सबके दाता राम।

मन में रख विश्वास राम का, जब हम करते कर्म,
आत्मशक्ति संवर्धन होता, है जीवन का मर्म।
जीव जन्तु पादप गण सब ही, कुदरत की संतान,
जन्म मृत्यु सब उनके कर में, राम रखे सब ध्यान।

भटक जाय यदि भक्त मार्ग से, प्रभु लेते कर थाम,
सत्य वचन कह गये मलूका, सबके दाता राम।

*** शशि रंजन 'समदर्शी'

Monday 19 September 2022

निज भाषा - सरसी छंद

 

निज भाषा के द्वारा मानव, खोले मन का द्वार।
व्यक्त विचारों को करने का, भाषा है आधार।।
आज विश्व में होती सब की, भाषा से पहचान।
किसी देश की भाषा से ही, हो विकास अनुमान।।

अंग्रेजी की चकाचौंध में, हिंदी से हम दूर।
उच्च ज्ञान के हित अंग्रेजी, पढ़ने को मजबूर।।
निज भाषा में सभी पढ़ाई, देना है अंजाम।
बने राष्ट्र की भाषा हिंदी, तभी बनेगा काम।।

***चंद्र पाल सिंह "चंद्र"

Sunday 11 September 2022

एक गीत - और न कोई चाह


जगा हृदय विश्वास लेखनी, सहज लगेगी राह।
नेक समर्पण चाहत अपनी, और न कोई चाह।

ज्ञानी ध्यानी विज्ञ चिरंतन, करते आये शोध।
इक नैया में करें सवारी, भार बने जो बोध।
आशा छोड़ निराशा भर दें, व्यर्थ विगत उर दाह
नेक समर्पण चाहत अपनी, और न कोई चाह।

एक नदी दो अलग किनारे, धारा देती जोड़़।
उठती गिरती लहरें देकर, तरल विरल इक मोड़।
कड़ी न टूटे उम्मीदों की, सुंदर हो निर्वाह।
नेक समर्पण चाहत अपनी, और न कोई चाह।

खोल नयन प्रिय रहें नहीं अब, भाग्य भरोसे सुप्त।
आशा नित्य जगानी होगी, स्वप्न न होगें लुप्त।
बंद मुष्टिका रेत रुके कब, "लता" भरें मत आह।
नेक समर्पण चाहत अपनी, और न कोई चाह।


*** डॉ. प्रेमलता त्रिपाठी 

Sunday 4 September 2022

क्षमा पर्व

 


वाणी से कर दे क्षमा, वही नेक इंसान ।
नत-मस्तक होता वही, बनता सदा महान ।।
बनता सदा महान, वृक्ष ऊपर उठ झुकता ।
करता रहे घमण्ड, किसी की वह कब सुनता ।।
हुआ किसी को कष्ट, भले कोई हो प्राणी ।
क्षमा करेंगे आप, सभी सुन मेरी वाणी ।।

भूषण मानव का क्षमा, वीरों की पहचान ।
कायर करता घात है, वीर क्षमा का दान ।।
वीर क्षमा का दान, करे उसकी सज्जनता ।
दीन-हीन को लूट, दिखाते कुछ दुर्जनता ।।
मिले भूल से कष्ट, नहीं दो उसको दूषण ।
सन्तों का सन्देश, क्षमा मानव का भूषण ।।

भूले भटके ही सही, दिया अगर हो घात ।
क्षमा मुझे करना जरा, भूल पुरानी बात ।।
भूल पुरानी बात, मधुर सम्बन्ध बनाएं ।
कटुता के ये भाव, दिलों से आज हटाएं ।।
करने मेल-मिलाप, प्रेम का झूला झूले ।
क्षमा पर्व पर आज, चलो अब कटुता भूले ।।
 
 *** लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...