Sunday 26 July 2020

जल-प्रलय




न आकाश की समझ
न धरा की,
अक्सर नहीं दिखाई देता
किनारा कोई।
हर साल, बार-बार,
जिन्दगी यूँ भी तिरती है,
कहां समझ पाता है कोई। 

सुना है दुनिया बहुत बड़ी है,
देखते हैं, पानी पर रेंगती
हमारी इस दुनिया को,
 कहाँ मिल पाता है किनारा कोई।

सुना है,
आकाश से निहारते हैं हमें,
अट्टालिकाओं से जाँचते हैं
इस जल- प्रलय को।
जब पानी उतर जाता है
तब बताता है कोई।

विमानों में उड़ते
देख लेते हैं गहराई तक
कितने डूबे, कितने तिर रहे,
फिर वहीं से घोषणाएँ करते हैं
नहीं मरेगा
भूखा या डूबकर कोई।

पानी में रहकर
तरसते हैं दो घूँट पानी के लिए,
कब तक
हमारा तमाशा बनाएगा हर कोई।

अब न दिखाना किसी घर का सपना,
न फेंकना आकाश से
रोटियों के टुकड़े,
जी रहे हैं, अपने हाल में
आप ही जी लेंगे हम
न दिखाना अब
दया हम पर आप में से कोई।

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कविता सूद, हिमाचल प्रदेश

Sunday 19 July 2020

वीर (आल्हा) छंद आधारित रचना






आर-पार की ठनी लड़ाई,
जानें क्या होगा अंजाम।
गहरे मित्र रहे हैं दोनों,
साथ रहे ये आठों याम।।


दुनिया को देते थे शिक्षा,
कभी बढ़ाना मत तकरार।
बैर-भाव जब भी बढ़ जाए
जीना हो जाता दुश्वार।।


आज बने हैं दोनों दुश्मन,
खींच रहे दोनों तलवार।
समझ नहीं आया क्यों इनके,
बढ़ी दिलों में कुटिल दरार।।


साझे के धन्धे में होती,
ऐसी बातें बारम्बार।
सही कहा है विद्वानों ने,
करो नहीं साझा व्यापार।।

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*** मुरारि पचलंगिया ***

Sunday 12 July 2020

सरसी या कबीर छंद



पाँच कदम वह आगे बढ़ता, पीछे जाता तीन।
हरदम धोखा देता रहता, नहीं भरोसा चीन।।
यही किया था उसने अपनी, घाटी में गलवान।
उसे खदेड़ा अब फिर पीछे, भारत वीर जवान।।


सजग रहो सब सीमा प्रहरी, नहीं करो विश्वास।
हथियारों से लैस रहो तुम, जब भी जाओ पास।।
अपना निर्णय आप करो तुम, देश तुम्हारे साथ।
आँख दिखाये अगर चीन जो, कर लो दो-दो हाथ।।


*** चन्द्र पाल सिंह "चन्द्र" ***

Sunday 5 July 2020

प्रीति पर कुछ दोहे


1.
प्रीति समर्पण-भाव है, वह है सिंधु अथाह।
पूछो राधा-श्याम से, जिनमें सच्ची चाह।।
2.
प्रीति-प्राण पाषाण में, डालो मेरे मीत।
हो जाता है प्रीति से, उर निर्मल, नवनीत।
3.
होती पुष्पित-पल्लवित, मर्यादित हर रीति।
प्रीति बिना संसार में, बढ़ती सदा अनीति।।
4.
छल, प्रपंच सब तज चलो, आज प्रीति के गाँव।

जहाँ तप्त उर को मिले, वट-सी शीतल छाँव।।
5.
प्रीति बिना भाते नहीं, सावन अरु मधुमास।
 जहाँ प्रीति बसती वहाँ, फैले सदा सुवास।।
6.
पड़ती रहनी चाहिए, उर में प्रीति-फुहार।
रहे प्रीति की चाह जो, मन लो सदा बुहार।।


*** राजकुमार धर द्विवेदी ***

रीति निभाने आये राम - गीत

  त्रेता युग में सूर्य वंश में, रीति निभाने आये राम। निष्ठुर मन में जागे करुणा, भाव जगाने आये राम।। राम नाम के उच्चारण से, शीतल जल ...