Sunday, 5 July 2020

प्रीति पर कुछ दोहे


1.
प्रीति समर्पण-भाव है, वह है सिंधु अथाह।
पूछो राधा-श्याम से, जिनमें सच्ची चाह।।
2.
प्रीति-प्राण पाषाण में, डालो मेरे मीत।
हो जाता है प्रीति से, उर निर्मल, नवनीत।
3.
होती पुष्पित-पल्लवित, मर्यादित हर रीति।
प्रीति बिना संसार में, बढ़ती सदा अनीति।।
4.
छल, प्रपंच सब तज चलो, आज प्रीति के गाँव।

जहाँ तप्त उर को मिले, वट-सी शीतल छाँव।।
5.
प्रीति बिना भाते नहीं, सावन अरु मधुमास।
 जहाँ प्रीति बसती वहाँ, फैले सदा सुवास।।
6.
पड़ती रहनी चाहिए, उर में प्रीति-फुहार।
रहे प्रीति की चाह जो, मन लो सदा बुहार।।


*** राजकुमार धर द्विवेदी ***

1 comment:

  1. रचना के चयन और यहां प्रकाशन के लिए शत-शत नमन, आदरणीय सपन साहब।

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